जाकिर के विषवमन का खतरनाक होना

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भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारें की तस्वीर को रौंदने वाले, हमेशा ही विवादों को अपने साथ लेकर चलने वाले एवं खुद को धर्मोपदेशक कहने वाले जाकिर नाइक इन दिनों मलेशिया में हैं और वहां वह भारी विवाद में घिर गए हैं। भारत में उसके खिलाफ सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने और गैरकानूनी गतिविधियां चलाने को लेकर जांच चल रही है। अभी कुछ ही दिनों पहले मलेशिया ने उन्हें स्थाई निवास की इजाजत दी थी और अब वह वहां भी उन्हीं आरोपों में घिर गए हैं, जिनके लिए वह जाने जाते हैं। ऐसे विषवमन उगलने वाले लोग पूरी दुनिया के लिये गंभीर खतरा है। लेकिन विडम्बना है कि साम्प्रदायिक आग्रहों एवं स्वार्थों के कारण दुनिया ऐसे खतरों को पहचान नहीं पा रही है और जब ऐसे लोग अपना जहर फैलाने एवं विध्वंस करने में सफल हो जाते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है, लेकिन मलेशिया विस्फोटक स्थिति में पहुंचने से पहले स्वयं को बचा सकी है।

मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने कहा है कि अगर यह साबित हो गया कि उसकी गतिविधियां मलेशिया को नुकसान पहुंचा रही हैं तो उसका स्थायी निवासी दर्जा वापस ले लिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय जांच एजेंसियों के लिए बड़ी जीत होगी क्योंकि इससे पहले महातिर यह कहते रहे हैं कि उनके देश के पास यह अधिकार है कि वह नाइक को भारत प्रत्यर्पित करे या नहीं। जाकिर नाइक एक नासूर है, दीमक की तरह है, जो न केवल लोगों के आपसी सौहार्द एवं अमन चैन को छिन लेता है बल्कि सम्पूर्ण मानवता को तहस-नहस कर देता है।

ऐसा ही उसने भारत में लम्बे समय तक विषवमन किया, जब यहां की सरकार सचेत हुई और उसके खिलाफ कार्रवाई करने को तत्पर हुई तो उसने मलेशिया में पनाह ली। वहां भी इस्लाम को बचाने के नाम पर उसने वहां रह रहे चीनी समुदाय के खिलाफ विष वमन करते हुए कहा था कि चीनी समुदाय के लोगों को मलेशिया छोड़कर चले जाना चाहिए, क्योंकि वे इस देश के नागरिक नहीं, बल्कि मेहमान हैं। पिछले दिनों उन्होंने उन हिंदुओं के खिलाफ बयान दे डाला, जो सदियों से मलेशिया के नागरिक हैं और वहां की स्थानीय संस्कृति व राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी। इस तरह उसने मलेशिया की शांति एवं अमन को खण्डित कर दिया।

जाकिर नाइक का यह मामला साबित करता है कि जो दुनिया के किसी एक देश के लिए खतरनाक है, वह पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों के लिए भी उतना ही खतरनाक है। एक दूसरा सच यह भी है कि दुनिया अभी तक इस तरह के खतरों से निपटने के रास्ते तलाश नहीं सकी है। और यह भी कि दुनिया के कुछ देश तो उसे शायद खतरा मानने के लिए तैयार भी न हों। आतंकवादियों के खिलाफ तो फिर भी एक तरह की आम सहमति दुनिया में दिख रही है, पर उन लोगों के खिलाफ कुछ नहीं हो रहा, जो समाज में वैमनस्य फैलाने, इंसानों को आपस में बांटने, साम्प्रदायिक सौहार्द को खण्डित करने के लिए जाने जाते हैं।

जाकिर नाइक को हाल ही में धर्मांतरण कराकर मुस्लिम बने लोगों के एक सम्मेलन में भाग लेना था, मगर उन्हें इस सम्मेलन में भाग लेने से रोक दिया गया। इस खबर से यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि जाकिर नाइक सिर्फ उपदेशक ही नहीं, मलेशिया में चलाए जा रहे धर्मांतरण अभियान का भी हिस्सा हैं। उन्होंने मलेशिया की साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी स्थितियों को आघात लगाया है, जबकि इन्हीं कारण मलेशिया की गिनती विश्व के उन देशों में होती है जो दक्षिण-पूर्व एशिया के महत्वपूर्ण कारोबारी केंद्र हंै, जो अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाते हैं। वहां की 60 फीसदी आबादी मलेशियाई मूल के लोगों की हैं, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम धर्मावलंबी हैं। बाकी आबादी भारतीय और चीनी मूल के लोगों की है।

जाकिर जैसे संकीर्ण, कट्टरपंथी एवं बिखरावमूलक लोग गांव से लेकर शहर तक, पहाड़ से लेकर सागर तक, देश से लेकर दुनिया तक की साम्प्रदायिक सौहार्द को खण्डित करने पर तुले है। सौहार्द एवं सद्भावना की सहज संवेदना को पक्षाघात पहुंचाने एवं लहूलुहान करने पर आमदा है, इससे पूर्व कि यह धुआं-धुआं हो, इसमें रक्त संचार करना होगा। विषवमन तो वे करते हैं जिनकी करुणा सूख जाती है।

जबकि करुणा, सौहार्द एवं संवेदना के बिना साम्प्रदायिक सौहार्द की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साम्प्रदायिक कट्टरता को निस्तेज करने के लिए इंसानियत को कौन सा रूप धारण करना होगा? भटकाव के इस चौराहे पर आवश्यकता है इंसानियत एवं साम्प्रदायिक एकता-अखण्डता की शक्तियां एक मंच पर आयें, जिनके विचारों में ही नहीं, आचरण में भी इंसानियत हो, सौहार्द एवं सद्भावना हो। तभी छोटी लाइन के बगल में बड़ी लाइन खिंचेगी, तभी जाकिर की कुचेष्ठाओं एवं त्रासदियों से मुक्ति का रास्ता निकलेगा।
– ललित गर्ग –