कुरुक्षेत्र युद्ध में विजय पाने की खुशी में पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञ समाप्त होने पर चारों तरफ पांडवों की जय-जयकार हो रही थी। तभी एक नेवला आया। उसका आधा शरीर सुनहरा था और आधा भूरा। वह यज्ञ भूमि पर इधर-उधर लोटने लगा। उसने कहा, ‘तुम लोग झूठ कहते हो कि इससे वैभवशाली यज्ञ कभी नहीं हुआ।’ लोगों ने कहा, ‘क्या कहते हो, ऐसा महान यज्ञ तो आज तक संसार में हुआ ही नहीं’। नेवले ने कहा, ‘यज्ञ तो वह था जहां लोटने से मेरा आधा शरीर सुनहरा हो गया था।’
लोगों के पूछने पर उसने बताया, ‘एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। एक बार वहां अकाल पड़ गया। कई दिन तक परिवार में किसी को अन्न नहीं मिला। कुछ दिनों बाद उसके घर में कुछ आटा आया। ब्राह्मणी ने उसकी रोटी बनाई और पूरा परिवार भोजन करने बैठा। लेकिन तभी दरवाजे पर एक अतिथि आ गया। ब्राह्मण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि को दे दी, मगर उससे अतिथि की भूख नहीं मिटी।
तब ब्राह्मणी ने अपने हिस्से की रोटी उसे दे दी। इससे भी उसका पेट नहीं भरा तो बेटे और पुत्रवधू ने भी अपने-अपने हिस्से की रोटी दे दी। अतिथि सारी रोटी खाकर आशीष देता हुआ चला गया। उस रात भी वे चारों भूखे रह गए। उस अन्न के कुछ कण जमीन पर गिरे पड़े थे। मैं उन कणों पर लोटने लगा तो जहां तक मेरे शरीर से उन कणों का स्पर्श हुआ, मेरा शरीर सुनहरा हो गया। मगर वैसा दूसरा यज्ञ मैंने आज तक नहीं देखा जिससे मेरा बाकी शरीर भी सुनहरा हो सके।’ उसका आशय समझ युधिष्ठिर लज्जित हो गए।
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