बच्चे देश का भविष्य हैं तो युवा निकट भविष्यगत दशकों में जिन युवाओं (Youth) द्वारा राजनीति में प्रभावी प्रवेश लिया गया था, वे अब लगभग उम्रदराज होते जा रहे हैं। वर्तमान दौर के अधिकांश स्थापित राजनीतिज्ञ बीते समय में युवा नेता के रूप में राजनीति में वर्चस्व स्थापित किए हुए थे। समय की धारा का प्रवाह निरंतर गतिमान होता है। इस आधार पर इन दिनों राजनीति में नए स्वरूप में युवाओं की एक नई पौध आकार लेती दिखाई देती है। यही नहीं अपितु इस पौध को व्यापक रूप से जनमत के बहुमत द्वारा स्वीकार भी किया गया है। ऐसी स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि बुजुर्गवार नेता सत्ता और संगठन में अपने वर्चस्व का परित्याग करना नहीं चाहते। इसके चलते बहुत स्वाभाविक है कि विभिन्न राजनीतिक दलो में आंतरिक रूप से वर्चस्व की लड़ाई दिखाई दे। इस संदर्भ में राजनीतिक दलों का निर्णायक कदम, समय की मांग है।
वैसे भी राजनीति में सत्ता का रसास्वादन कर लेने के उपरांत कोई भी राजनेता इससे वंचित नहीं होना चाहता। यह भी एक मनोविज्ञान है कि राजनीति में एक दूसरे को धकेल कर अपनी जगह बनाने की मनोवृति दिखाई देती है। राजनीति में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ती उम्र के साथ-साथ कम नहीं होती, अपितु बढ़ती ही चली जाती है। इन दिनों विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्यों में उक्त परिस्थितियां राजनीतिक उलटफेर का कारण बनते हुए नजर आती है। ऐसा नहीं है कि यह स्थिति केवल कांग्रेस में ही है। दरअसल किसी न किसी रूप में हर किसी दल के समक्ष उक्त स्थिति निर्मित होना अवश्यंभावी है। बेहतर हो यदि विभिन्न राजनीतिक दल इन तमाम संदर्भों में अपना अभिमत ऐसा कोई संकट आने के पूर्व ही स्पष्ट रूप से घोषित कर देवें।
जहां तक योग्यता का प्रश्न है, पुरानी और नई पीढ़ी के पक्ष विपक्ष में अलग-अलग तर्कसम्मत दृष्टिकोण व्यक्त किए जा सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। दरअसल दोनों ही वर्ग में बेहतरीन तालमेल ही श्रेयस्कर होगा। इस संदर्भ में एक कदम आगे बढ़कर विभिन्न राजनीतिक दलों में सक्रिय राजनीति की अधिकतम आयु सीमा सुनिश्चित कर देनी चाहिए। यही नहीं अपितु सत्ता में भागीदारी होने पर भी पृथक रूप से एक निश्चित आयु सीमा निर्धारित कर देनी चाहिए। रहा सवाल वनवास का, तो वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देशक के रूप में स्थापित किया जा सकता है । नए दौर में नई सोच की आज देश प्रदेश को जरूरत है। बीते दौर की राजनीति के पट्टी पहाड़े भी अब अप्रासंगिक सिद्ध हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में समय रहते राजनीतिक दलों को संज्ञान ले लेना चाहिए।
वैसे भी इस समय देश प्रदेश में युवा वर्ग की स्थानीय से लेकर शीर्ष स्तर तक राजनीति में सक्रिय भागीदारी नए आयाम स्थापित कर रही है। ऐसे में यदि सत्ता या संगठन का दामन संभाले बुजुर्गवार युवाओं के लिए स्थान रिक्त नहीं करेंगे, तो असंतोष तो पनपेगा ही। इस संदर्भ में यह गौर करने लायक है कि कल के युवा नेता आज वृद्धावस्था को प्राप्त करते जा रहे हैं लेकिन पदलिप्सा से उबरना नहीं चाहते। दरअसल इन्हें अपना मनोविज्ञान बदलने की जरूरत है। बेहतर हो यदि सक्रिय राजनीति में आयुबंधन हो न हो, लेकिन पदासीन होने की स्थिति में आयु बंधन का अनिवार्य रूप से पालन किया जाए। राजनीति में यह प्रयोग काफी हद तक सफल सिद्ध हो सकता है। सक्रिय राजनीति से विदाई का तरीका सम्मानजनक भी तो हो सकता है।
इस समय देश-प्रदेश में युवा वर्ग की प्रधानता है। युवा मतदाता का स्वाभाविक रुझान युवा प्रत्याशी पर ही अधिक रहता है। हालांकि राजनीतिक प्रतिबद्धता भी अपनी जगह महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। जैसे-जैसे शिक्षा का विस्तार होता जा रहा है, वैसे-वैसे युवा वर्ग महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के परिपालन में सक्षम सिद्ध हो रहे हैं। यही नहीं अपितु निरंतर परिवर्तित दौर में राजनीति के तौर-तरीकों में भी व्यापक बदलाव आया है। कहीं-कहीं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जहां अनुभव घुटने टेक देता है, वहां नई सोच कैसी भी परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम सिद्ध होती है। निश्चित रूप से तकनीकी दुनिया में युवाओं की बौद्धिक क्षमता में भी आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। विषयों को समझने की गहरी समझ युवा रखने लगे हैं। बावजूद इस सबके अनुभव के महत्व को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। ऐसे में सामंजस्य ही अंतिम समाधान हो सकता है।
कुल मिलाकर वर्तमान संदर्भों के चलते विभिन्न राजनीतिक दलों को उक्त विषय के बारे में स्पष्ट नीति घोषित कर देनी चाहिए। माना कि यह सब इतना आसान भी नहीं होगा लेकिन वर्तमान नेतृत्व को इस संदर्भ में दृढ़निश्चय करना जरूरी है। अन्यथा जो कुछ घटनाक्रम आज कांग्रेस में चलता दिखाई दे रहा है ,उसकी अन्य दलों में पुनरावृति होने की संभावना से एकदम इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि दोनों ही वर्ग को परस्पर एक दूसरे के पूरक के रूप में सक्रिय रखा जाए।
-(यह लेखक के अपने विचार हैं)