आज के युग में आदमी रातों-रात अमीर होने के सुनहरे सपने देखता है और फिर अनैतिक कार्यों को अंजाम देना शुरू कर देता है। आज पूरा देश जहरीले सिंथेटिक दूध की लपेट में आ गया है। शिशुओं को प्रदूषित दूध पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे भयानक बीमारियों के पनपने का खतरा बना हुआ है।
विशेषज्ञों का कहना है जहरीला दूध रिफाइंड तेलों, कास्टिक सोडा, यूरिया और डिटरजेंट के मिश्रण से बनाया जाता है गर्भवती महिलाएं, बूढ़े लोग, दिल की बीमारियों से पीड़ित रोगी इस दूध के सेवन से प्रभावित हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में 6 करोड़ 30 लाख टन दूध का उत्पादन होता है, जिसमें 3 करोड़ 80 लाख टन संगठित क्षेत्र से आता है
और शेष दूध का निर्माण अनैतिक ढंगों से किया जाता है। सिंथेटिक दूध बनाने का कारोबार हरियाणा के कुछ धोखेबाज लोगों ने आरंभ किया था लेकिन अब भारत में पूरी तरह फैल चुका है। पंजाब में उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाला 40 प्रतिशत दूध ऐसा ही होता है जो प्राय: जहरीले पदार्थों से ही बनाया जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार शुद्ध प्राकृतिक दूध में 86 प्रतिशत पानी होता है बाकी हिस्सा ठोस पदार्थों का होता है। भैंस के दूध में 6 प्रतिशत वसा होती है, जबकि गाय के दूध में वसा 3 प्रतिशत तक होती है।
प्रोटीन, विटामिन और पोर्टेशियम-कैल्शियम के खनिज लवणों की मात्रा 9 प्रतिशत होती है। कच्चा दूध गर्मियोें में शीघ्र खराब हो जाता है यदि उसे उबाल न दिया जाए तो दो-तीन घंटों के भीतर-भीतर इसका प्रयोग करना पड़ता है।
सिंथेटिक दूध बिल्कुल वास्तविक दूध की तरह दिखाई देता है, लेकिन इसका स्वाद अलग सा होता है यह पौष्टिक होने की बजाय हानिकारक होता है। कपड़े धोने वाले डिटरजेंट का प्रयोग इमल्सीफाई करने में किया जाता है। इसके विलयन को पानी में मिलाकर झाग पैदा की जाती है और पूरा घोल दूध जैसा बना दिया जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सिंथेटिक दूध तैयार करने में 2 रुपये प्रति लीटर खर्च आता है। सिंथेटिक दूध निर्माण में सस्ते खाद्य तेल का प्रयोग किया जाता है इसमें यूरिया, चीनी, असली दूध के प्रोटीन, विटामिन, और खनिज लवण का स्थान लेते हैं और तेल वसा का स्थान लेता है। इसे कई बार प्राकृतिक दूध के साथ मिलाकर ऊंचे रेटों पर बेचा जाता है। विशेषज्ञों की राय है कि दूध के वसा और तेल के वसा के अंतर को विशेष उपकरणों के द्वारा ही पता लगाया जा सकता है।
मिलावट को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है जागरूकता, न्याय की गुहार, उसके लिए दबाव और संघर्ष ही मिलावट के खिलाफ सबसे बड़ी गारंटी होते है। दूध की गुणवत्ता चैक करने के लिए पंजाब में केवल दो लैबारेट्री है जब कि शीघ्र रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए जिला हैडक्वार्टर पर लैब स्थापित की जानी चाहिए।
स्वास्थ्य विभाग में व्यापक भ्रष्टाचार होने के कारण पंजाब में मिलावट का सिलसिला जारी है। दूध के सैंपल के पश्चात रिपोर्ट को लगभग एक महीना लग जाता है। अत: कानूनी कार्रवाई में बहुत देरी लगती है।
भारत को यूरोपीय देशों का अनुसरण करते हुए फूड सैफ्टी कमीशन प्रणाली को अपनाना चाहिए। ऐसा करने से देश में मिलावट को रोकने में सहायता मिलेगी। लालची लोग ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए गाय-भैंसों को आक्सीटोक्सिन के टीके लगाते हैं, यह भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। स्वास्थ्य विभाग पर दृष्टि डाली जाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे।
प्रत्येक जिले में तैनात जिला अफसर और फूड इंस्पेक्टर मिलकर दोषियों, हलवाइयों और दुकानदारों से महीना वसूलते हैं और उसके एवज में मिलावटी दूध और मिलावटी वस्तुएं बेचने की खुली छूट दे देते हैं।
यदि किसी का दूध का सैम्पल भर भी लिया जाता है तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों/ कर्मचारियों के लैब में लिंक होने के कारण सैम्पल मोटी रकम देकर पास करा लिए जाते हैं। जब रक्षक ही भक्षक बन जाएंगे तो देश के भविष्य का क्या होगा। अत: हमारी सरकारों को इस मिलावटखोरी के धंधे की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
-सुभाष आनंद
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