अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यह गलतफहमी कि नेपाल और भूटान भारत के अंग हैं, उपहास योग्य है, राजनीतिक दृष्टि से नाराजगी पैदा करने वाला है और एक कूटनायिक भूल है जिससे भारत, नेपाल और भूटान के लोग नाराज होंगे क्योंकि भारत को इन देशों के लोग बिग ब्रदर मानने लगेंगे और नेपाल तथा भूटान के लोग अपने को अपमानित समझेंगे क्योंकि स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्रों की उपेक्षा की गयी है। इस बयान से अनेक राजनेता और राजनीतिक पर्यवेक्षक नाराज होंगे और कूटनयिक दृष्टि से यह एक खतरनाक प्रवृति है। किंतु यह बयान विश्व के सबसे शकित्शाली राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष द्वारा दिया गया है इसलिए इस पर विचार किया जाना चाहिए।
ट्रंप के बयान की दो व्याख्याएं की जा सकती हैं। उनके आलोचक इसे चूक मानते हैं जबकि उनके समर्थक कहते हैं कि वे घिसे-पिटे राजनेता नहीं हैं। उनके विचार मूल और प्रमाणिक हैं, उनमें सततता है। चाहे वे कितने भी अप्रिय क्यों न हो। किंतु उनके इस विचार के प्रति मेरी उनके प्रति सहानुभूति है क्योंकि ट्रंप के एक समर्थक द्वारा मुझे उनके साक्षात्कार का एक वीडियो दिखाया गया है जो उन्होने 1988 में प्रसिद्ध टॉक शो आयोजक विन फ्रे को दिया था। इस वीडियो को देखकर और अमरीकी राजनीति के बारे में उनके विचार सुनकर मैं चकित था। इसलिए उनके विचारों में सततता है। ट्रंप अमरीकी मतदाताओं के एक विशेष वर्ग को संबोधित कर रहे थे जिन्होने उन्हें जीत दिलायी थी। चुनावों से ठीक पहले मैं अपने एक अमरीकी मित्र से बात कर रहा था जो ट्रंप की जीत को पूरी तरह खारिज कर रहे थे। किंतु अनेक राजनीतिक पंडित उनकी जीत से हैरान हो गए थे। मैंने अपने मित्र से कहा था कि ट्रंप जीत सकते हैं क्योंकि उनके पास अमरीकावासियों के लिए नए विचार हैं चाहे उनसे असहमत ही क्यों न हों।
दूसरी व्याख्या महत्वपूर्ण है कि ट्रंप मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। उनके आलोचकों ने उन्हें मस्तिष्क परीक्षण के लिए मजबूर किया। जब उनके आकलन और बातों का विरोध किया जाता है तो वे अड़ जाते हैं। उनके व्यवहार का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है और वे कुछ भी बोल देते हैं। किंतु विश्व में अनेक ऐसे राजनेता हुए हैं जो चूक करते रहे हैं और ऊल-जुलूल बातें बोलते रहे हैं। अमरीकी पत्रकार और व्यंग्यकार डेनिल कर्जमैन ने अपनी दो पुस्तकों में अमरीकियों की मजाकिया बातों को संग्रहित किया है। जब ट्रंप ने अफगानिस्तान में भारत द्वारा निर्मित पुस्तकालय भवन के बारे में मोदी का मजाक उडाया तो उनके समर्थकों ने कहा कि शायद वे पुस्तकालय भवन और संसद भवन में भ्रम कर गए हैं। ट्रंप के समर्थकों और आलोचकों द्वारा उनके बारे में बनायी गयी धारणा और उनकी बातों की व्याख्या के मद्देनजर हमें उनके इस बयान की जांच करनी चाहिए। मैं यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं उनके इस बयान का समर्थन कर रहा हूं।
किंतु शायद उन्होेने ऐसा इसलिए कहा कि नेपाल और भूटान भारत के सबसे घनिष्ठ पडोसी हैं। ये दो ऐसे देश हैं जहां पर भारतीय लोगों को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है। नेपाल और भारत सामाजिक क्षेत्र में समान हैं और राजनीतिक दृष्टि से एक दूसरे की परछायी हैं। भारत में लाखों नेपाली काम करते हैं और नेपाल में भी लाखों भारतीय काम करते हैं। दोनों देशों के लोगों का एक दूसरे के यहां व्यवसाय हैं। अनेक नेपाली कहते हैं कि उनका भारत के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता है। लोगों के नाम से आप भारतीय ओर नेपाली लोगों को अलग नहीं कर सकते हैं। मूल विशेषताओं के रूप में भी नेपाल और भारत के उतरी और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोग एक जैसे लगते हैं। हालांकि नेपाल के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक समानता नहीं है किंतु राजनीति और विदेशी मामलों में वह भारत का घनिष्ठ सहयोगी है।
भूटान जाने के लिए भारत के लोगों को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है और वहां पर भारतीय रूपए में लेनदेन होता है। भूटान में अधिकतर विकास कार्य भारत द्वारा किए गए है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा भूटान की की जो बताता है कि भारत भूटान को अपना घनिष्ठ पडोसी मानता है। भारत-भूटान और भारत-नेपाल के संबंध घनिष्ठ रहे हैं। इसलिए हमें ट्रंप के विवादास्पद और अस्वीकार्य बयान की आवश्यकता नहीं है किंतु यह बताता है कि विश्व के नेता सोचते हैं कि भारत-नेपाल और भारत-भूटान कितने अभिन्न हैं कि उन्हें लोग अलग नहीं देखते हैं और शायद इसी घनिष्ठता को देखते हुए ट्रंप ने ऐसा बेहूदा बयान दिया है।
हमें इन दोनों देशों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने चाहिए। हालांकि हाल के दिनों में चीन की शह पर ये दोनों देश भारत से दूरी बनाने लगे हैं। चीन भूटान को लुभाने का प्रयास कर रहा है। वह भूटान में अपने अधिकाधिक पर्यटक भेज रहा है और भूटान के छात्रों को चीन मे पढाई के लिए छात्रवृति दे रहा है। दिल्ली स्थित चीन के कूटनायिक भी भूटान के राजनेताओं से मिलने के लिए अनेक बार भूटान की यात्रा कर चुके हैं। जुलाई 2018 में चीन के उप विदेश मंत्री ने भूटान की यात्रा की। चीन के पास पैसे की कमी नहीं है और चीनी पर्यटक वहां खूब पैसा खर्च करते हैं। भूटान की नई पीढी नए अवसरों की तलाश में है। भूटान में बेरोजगारी दर लगभग 10 प्रतिशत है जिससे भूटान के युवा छात्र चिंतित हैं और इसलिए चीन की पेशकश उन्हें लालायित करती है।
इसी तरह चीन ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए पैसा देकर नेपाल को प्रलोभन दिया। नेपाल भी चीन से अतिरिक्त पैसा प्राप्त करना चाहता है। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत ने दिल्ली में एक संगोष्ठी में स्वीकार किया था कि भारत और नेपाल की मैत्री घनिष्ठ है किंतु नेपाल द्वारा चीन के साथ नजदीकी बढाने का कारण पैसा है। इन दोनों देशों में चीन का हस्तक्षेप भारत के लिए चिंता का विषय है। ये दोनों देश भारत और चीन के बीच बफर राज्य हैं। 1950 के बाद नेपाल का सामरिक महत्व बढ गया जब चीन ने तिब्बत को हड़प लिया था और इस तरह चीन भारत की सीमा तक पहंच गया था। इसके बाद दोनो देशों में 1962 में युद्ध हुआ और आज तक यह विवाद जारी है।
नेपाल की अस्थिर लोकतांत्रिक राजनीति के कारण वार्ता करना कठिन हो गया है। जब नेपाल में राजशाही थी तो दोनों देशों के बीच संबंध मधुर थे किंतु अब वह इतिहास बन गया है। भारत लोकतंत्र का पक्षधर रहा है और उसे नेपाल में विकसित हो रहे लोकतंत्र के साथ अच्छे संबंध बनाना सीखना होगा और उसका अभिरक्षक बनना होगा। भूटान की जनसंख्या केवल 8 लाख है और भारत को आसानी के साथ उसके साथ मधुर संबंध बनाने चाहिए। भूटान में जल विद्युत की पर्याप्त संभावनाएं है और वह भारत को सस्ती बिजली उपलब्ध कराता है। भूटान के चीन के साथ कोई कूटनयिक संबंध नहीं हैं इसलिए भारत को भूटान को चीन के प्रभाव में आने से रोकना होगा। नेपाल चीन के निकट जा रहा है और उसने पहले ही चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
भारत को नेपाल और भूटान को चीन के पाले में जाने से रोकने के लिए कूटनयिक प्रयास करना होगा। भारत के अन्य पड़ोसी देश भी ऐसा कर सकते हैं। वे अपने हितों के लिए भारत के विरुद्ध चीन को खडा कर सकते हैं। किंतु क्या भारत भी अमरीका ओर चीन के साथ ऐसा ही नहीं कर रहा है? यह नीति गुटनिरपेक्ष की नहीं है और न ही आप दोनों के साथ एक साथ कार्य कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए ट्रंप ने पहले ही पाकिस्तान की खिंचाई की है। भारत को अपने सिद्धान्तों, राजनीतिक मूल्यों और राष्ट्रीय हितों के अनुसार नीति अपनानी चाहिए। फिर इस क्षेत्र के अन्य देश स्वत: ही उसका अनुसरण करेंगे।
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