दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना

Kaithal News
PMFBY: खरीफ फसलो का 31 जुलाई से पहले करवा ले फसल बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान अनुकूल बदलाव को तत्पर

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। कृषि मंत्रालय हाल के जलवायु संकट और तीव्र प्रौद्योगिकीय उन्नति के मद्देनजर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) में किसान-अनुकूल बदलाव करने के लिये तत्पर है। कृषि और किसान कल्याण सचिव मनोज आहूजा ने कहा कि खेती जलवायु संकट का सीधा शिकार होती है इसलिये यह जरूरी है कि प्रकृति के उतार-चढ़ाव से देश के कमजोर किसान समुदाय को बचाया जाये। फलस्वरूप, फसल बीमा में बढ़ोतरी संभावित है और इसीलिये हमें फसल तथा ग्रामीण/कृषि बीमा के अन्य स्वरूपों पर ज्यादा जोर देना होगा, ताकि किसानों को पर्याप्त बीमा कवच उपलब्ध हो सके। आहूजा ने कहा कि वर्ष 2016 में पीएमएफबीवाई की शुरूआत के बाद, यह योजना सभी फसलों और नुकसानों को समग्र दायरे में ले आई। इसके तहत बुवाई के पहले के समय से लेकर फसल कटाई तक की अवधि को रखा गया है। पहली वाली राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित योजना में इस अवधि को नहीं रखा गया था।

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उन्होंने कहा कि 2018 में इसकी समीक्षा के दौरान भी कई नई बुनियादी विशेषतायें इसमें जोड़ी गईं, जैसे फसल के नुकसान की सूचना देने का समय 48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे कर दिया गया। इसमें इस बात को ध्यान में रखा गया कि स्थानीय आपदा आने पर नुकसान के निशान 72 घंटे के बाद या तो विलीन हो जाते हैं या उनकी निशानदेही नहीं हो पाती। इसी तरह, 2020 के संशोधन के उपरान्त, योजना में वन्यजीव के हमले के बारे में स्वेच्छा से पंजीकरण कराने और उसे शामिल करने का प्रावधान किया गया, ताकि योजना को अधिक किसान अनुकूल बनाया जा सके।

आहूजा ने कहा कि पीएमएफबीवाई फसल बीमा को अपनाने की सुविधा दे रही है। साथ ही, कई चुनौतियों का समाधान भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संशोधित योजना में जो प्रमुख बदलाव किये गये हैं, वे राज्यों के लिये अधिक स्वीकार्य हैं, ताकि वे जोखिमों को योजना के दायरे में ला सकें। इसके अलावा किसानों की बहुत पुरानी मांग को पूरा करने के क्रम में सभी किसानों के लिये योजना को स्वैच्छिक बनाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुछ राज्यों ने योजना से बाहर निकलने का विकल्प लिया है। इसका प्राथमिक कारण यह है कि वे वित्तीय तंगी के कारण प्रीमियम सब्सिडी में अपना हिस्सा देने में असमर्थ हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यों के मुद्दों के समाधान के बाद, आंध्रप्रदेश जुलाई 2022 से दोबारा योजना में शामिल हो गया है। आशा की जाती है कि अन्य राज्य भी योजना में शामिल होने पर विचार करेंगे, ताकि वे अपने किसानों को समग्र बीमा कवच प्रदान कर सकें। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ज्यादातर राज्यों ने पीएमएफबीवाई के स्थान पर क्षतिपूर्ति मॉडल को स्वीकार किया है।

शिकायतों को जल्द से जल्द दूर किया जाएगा

उन्होंने कहा कि द्रुत नवोन्मेष के युग में डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी सटीक खेती के साथ सुगमता तथा पीएमएफबीवाई गतिविधियों को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। एग्री-टेक और ग्रामीण बीमा का एकीकरण, वित्तीय समावेश तथा योजना के प्रति विश्वास पैदा करने का जादुई नुस्खा हो सकता है। हाल ही में मौसम सूचना और नेटवर्क डाटा प्रणालियां (विंड्स), प्रौद्योगिकी आधारित उपज अनुमान प्रणाली (यस-टेक), वास्तविक समय में फसलों की निगरानी और फोटोग्राफी संकलन (क्रॉपिक) ऐसे कुछ बड़े काम हैं, जिन्हें योजना के तहत पूरा किया गया है, ताकि अधिक दक्षता तथा पारदर्शिता लाई जा सके। वास्तविक समय में किसानों की शिकायतों को दूर करने के लिये छत्तीसगढ़ में एक एकीकृत हेल्पलाइन प्रणाली का परीक्षण चल रहा है।

प्रीमियम में केंद्र और राज्य के योगदान का विवरण देते हुये आहूजा ने कहा कि पिछले छह वर्षों में किसानों ने केवल 25,186 करोड़ रुपये का योगदान किया, जबकि उन्हें दावों के रूप 1,25,662 करोड़ रुपये चुकता किये गये। इसके लिये केंद्र और राज्य सरकारों ने योजना में प्रीमियम का योगदान किया था। उल्लेखनीय है कि किसानों में योजना की स्वीकार्यता पिछले छह वर्षों में बढ़ी है। सचिव ने बताया कि वर्ष 2016 में योजना के आरंभ होने से लेकर अब तक इसमें गैर-ऋण वाले किसानों, सीमांत किसानों और छोटे किसानों की संख्या में 282 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

बाढ़ आने और भूस्खलन की घटनायें भी बढ़ीं

वर्ष 2022 में महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब से अधिक वर्षा तथा मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से कम वर्षा की रिपोर्टें दर्ज की गईं। इसके कारण धान, दालों और तिलहन की फसल चौपट हो गई। इसके अलावा, अप्रत्याशित रूप से ओलावृष्टि, बवंडर, सूखा, लू, बिजली गिरने, बाढ़ आने और भूस्खलन की घटनायें भी बढ़ीं। ये घटनायें 2022 के पहले नौ महीनों में भारत में लगभग रोज होती थीं। इनके बारे में कई विज्ञान एवं पर्यावरण दैनिकों और पत्रिकाओं में विवरण आता रहा है। उन्होंने बताया कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम्स ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022 में मौसम की अतिशयता को अगले 10 वर्षों की अवधि के लिये दूसरा सबसे बड़ा जोखिम करार दिया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसम मे अचानक होने वाला परिवर्तन हमारे देश पर दुष्प्रभाव डालने में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि हमारे यहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने की जिम्मेदारी किसान समुदाय के कंधों पर ही है। इसलिये यह जरूरी है कि किसानों को वित्तीय सुरक्षा दी जाये और उन्हें खेती जारी रखने को प्रोत्साहित किया जाये, ताकि न केवल हमारे देश, बल्कि पूरे विश्व में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना

पीएफएफबीवाई मौजूदा समय में किसानों के पंजीकरण के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना है। इसके लिये हर वर्ष औसतन 5.5 करोड़ आवेदन आते हैं तथा यह प्रीमियम प्राप्त करने के हिसाब से तीसरी सबसे बड़ी योजना है। योजना के तहत किसानों के वित्तीय भार को न्यूनतम करने की प्रतिबद्धता है, जिसमें किसान रबी व खरीफ मौसम के लिये कुल प्रीमियम का क्रमश: 1.5 प्रतिशत और दो प्रतिशत का भुगतान करते हैं। केंद्र और राज्य प्रीमियम का अधिकतम हिस्सा वहन करते हैं। अपने क्रियान्वयन के पिछले छह वर्षों में किसानों ने 25,186 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा है, जबकि उन्हें 1,25,662 करोड़ रुपये (31 अक्टूबर, 2002 के अनुरूप) का भुगतान दावे के रूप में किया गया है।

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