हाल ही में संयुक्त राष्टÑ की ओर से विश्व खुशहाली पर एक रिपोर्ट जारी हुई है, भारत उसमें 140वें पायदान पर है जबकि कुछ वर्ष पहले भारत 133वें पायदान पर था, हम सात पायदान नीचे गिर चुके हैं। देश में जैसे-जैसे आर्थिक तानाबाना फैल रहा है देश में खुशहाली का स्तर गिर रहा है। आखिर इस आर्थिक दौड़ का लाभ कौन ले रहा है? साफ है गरीबों को खुशहाली नहीं मिल रही बल्कि देश का उद्योगजगत अपनी सम्पति बढ़ाने में लगा हुआ है। अभी लोकसभा चुनाव हो रहे हैं एक बार फिर कांग्रेस ने नारा दे दिया है कि वह देश के 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को गरीबी से मुक्त करेगी ऐसे परिवारों के न्यूनतम छह हजार रूपये महीना व 72000 रूपये वार्षिक आय गारंटी के साथ उपलब्ध करवाएगी।
भाजपा इससे बेचैन हो उठी है, भाजपा नेता एवं वित्तमंत्री अरूण जेटली ने कांग्रेस के वादे को छोटा करने के लिए कहा है देश का हर परिवार पहले ही 106000 रूपये की निश्चित आय सब्सिडी के तौर पर ले रहे हैं। वित्तमंत्री की बात से बहुत कम लोग सहमत होंगे चूंकि ये 106000 रूपये गरीबों को नजर नहीं आ रहे। गरीबी हटाने का सर्वप्रथम नारा 1971 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने दिया था, तब से अब तक पिछले करीब 50 साल में गरीबी बहुत ही सुस्त चाल से हटी है,
बल्कि जितने परिवार गरीबी में फंस रहे हैं उसकी तुलना में बहुत कम परिवार इससे उबर पा रहे हैं। कोई भी राजनीतिक पार्टी पता नहीं क्यों उन कारणों को दूर नहीं करना चाह रही जो गरीबी को मिटने नहीं दे रहे, रह-रहकर राजनेता नगद आय या सहायता का प्रलोभन देते रहते हैं, जिससे गरीबी का एकमात्र कारण भ्रष्टाचार दिन-दोगुना रात चौगुना बढ़ रहा है। इस देश में अभी तक भी शासन व प्रशासन में भ्रष्टाचार खत्म हो इस पर कोई ईमानदार पहल नहीं हो सकी है। यही एकमात्र कारण है कि भारतीय बहुत कमा लेने के बाद भी खुशहाल नहीं हैं और यह खुशहाली भारतवासियों से सदैव दूर बनी रहेगी यदि यहां भ्रष्टाचार नहीं मिटता।
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