नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। देश के जानेमाने मधुमक्खी विशेषज्ञों और कीट वैज्ञानिकों ने कृषि की प्रगति के लिए मधुमक्खी पालन को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि परागण से फसलों के उत्पादन में भारी वृद्धि के साथ ही औषधीय आवश्यकताओं की भी पूर्ति की जाती है। मधुमक्खी विशेषज्ञ गुरजंत सिंह गटोरिया ने विश्व मधुमक्खी दिवस पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मधुमक्खी के द्वारा परागण से खाद्यान्नों का उत्पादन 35 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। मधुमक्खी के एक बॉक्स से जितने मूल्य के शहद का उत्पादन होता है उससे 20 प्रतिशत अधिक फसलों को लाभ होता है। उन्होंने कहा कि परागण से फूल वाले पौधों को सबसे अधिक फायदा होता है। मधु रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और मधुमक्खी पालन ईको फ्रेंडली भी है।
मधुमक्खी पालन में एंटीबायोटिक का उपयोग न करे
डॉ. गरोरिया ने कहा कि किसानों को अधिक से अधिक गुणवत्तापूर्ण शहद उत्पादन के लिए हरेक साल जायदा से जायदा रानी मक्खी पैदा करना चाहिए। रानी मक्खी का गुण बॉक्स के सभी मधुमक्खियों को प्रभावित करता है। उन्होंने मधुमक्खी पालन में एंटीबायोटिक का उपयोग नहीं करने तथा मधुमक्खी के बॉक्स को हर तीन साल में बदलने की सलाह दी। एक सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि मोबाइल टावर का कुप्रभाव मधुमक्खी पालन पर नहीं देखा गया है।
बिहार कृषि विश्विद्यालय सबौर के कुलपति आर के सोहने ने मधुमक्खी पालन में बिहार के पहले स्थान पर आने का संकल्प व्यक्त करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के कारण मधुमक्खी पालन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। किसानों को मधुमक्खी के बॉक्स को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने में कठिनाइयों का सामना करना पर रहा है ।
संक्रमण काल के दौरान शहद के उत्पादन पर भी असर
डॉ. सोहने ने कहा कि संक्रमण काल के दौरान कुछ हद तक लीची की पैदावार भी प्रभावित हुई है और इसके कारण शहद उत्पादन पर भी असर हुआ है। उन्होंने कहा कि तकनीकी तौर पर बिहार मधु उत्पादन में चौथे स्थान पर है लेकिन केंद्रीय स्तर पर इसे ठीक किया जाय तो यह दूसरे या तीसरे स्थान पर आ सकता है। बिहार में सालाना चार से पांच लाख मधुमक्खी बॉक्स का वितरण किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भूमिहीन किसानों और श्रमिको को मधुमक्खी बॉक्स देने में प्राथमिकता देने का निर्णय किया है । इसके साथ ही प्रशिक्षण सुविधा बढ़ने तथा शहद प्रसंस्करण सुविधाओ का विस्तार करने का भी निर्णय किया गया है । जाने माने कीट वैज्ञानिक रामाशीष सिंह ने कहा कि बिहार के लीची से तैयार होने वाले शहद की मांग विदेशों में बहुत अधिक है। उन्होंने किसानों को गुणवत्तापूर्ण बॉक्स दिए जाने का सुझाव दिया।
मधुमक्खी पालन से किसानों की आय बढ़ सकती है
अटारी पटना के निदेशक अंजनी कुमार ने कहा कि कोरोना संकरण के दौरान लोगों ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए शहद उत्पादों का उपयोग किया है। मधुमक्खी के विष को कई प्रकार की बीमारियों के उपचार में कारगर पाया गया है और बाजार में इसका बहुत अधिक मूल्य भी मिलता है। बिहार के कृषि सचिव एन श्रवण कुमार ने कहा कि बहुत कम लागत में मशरुम और मधुमक्खी पालन कर भूमिहीन किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है।
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