जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले पन बिजली परियोजनाओं के निर्माण की राह में बाधा खड़ी करने की पाकिस्तान की कोशिशों को करारा झटका लगा है। विश्व बैंक ने सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान के एतराजों को दरकिनार करते हुए, भारत को पश्चिमी नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु पर पनबिजली परियोजना बनाने को सही ठहराया है। इस वैश्विक संस्था ने हाल ही में एक फैक्टशीट जारी करते हुए कहा कि भारत जिन रूपों में नदियों का पानी इस्तेमाल कर सकता है, उसमें पनबिजली परियोजनाएं भी शामिल हैं।
सिंधु जल संधि के तहत भारत को झेलम और चिनाब की सहायक नदियों पर कुछ शर्तो के साथ पनबिजली संयंत्रों के निर्माण की अनुमति है। विश्व बैंक ने सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की वार्ता खत्म होने के बाद यह जानकारी दी। यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान को किशनगंगा पनबिजली परियोजना मामले में भारत से मुंह की खानी पड़ी है,
बल्कि इससे पहले भी हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने साल 2013 में सुनाए अपने एक महवपूर्ण फैसले में भारत का पक्ष लेते हुए कहा था कि किशनगंगा पनबिजली परियोजना के लिए किशनगंगा नदी का जलमार्ग बदलने का भारत को अधिकार है और उसने अपनी इस परियोजना के लिए सिन्धु जल समझौते के सभी प्रावधानों का पालन किया है। लिहाजा भारत विद्युत उत्पादन के लिए किशनगंगा-नीलम नदी से पानी के प्रवाह की दिशा मोड़ सकता है।
गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच इस विवाद में विश्व बैंक मध्यस्थ की भूमिका में है। पाकिस्तान ने पिछले साल भारत स्थित जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन पर सवाल उठाते हुए विश्व बैंक का दरवाजा खटखटाया था। पाकिस्तान का भारत पर इल्जाम है कि इन संयंत्रों की तकनीकी डिजाइन, संधि का उल्लंघन है।
लिहाजा पाकिस्तान की मांग थी कि एक पंचाट गठित किया जाए, जो दोनों संयंत्रों की डिजाइन को लेकर उसकी चिंताओं पर गौर करे। जबकि भारत का कहना था कि पाकिस्तान की आपत्ति महज तकनीकी है। लिहाजा एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाए, जो इस मामले की पड़ताल करे। बहरहाल इस मुद्दे पर जुलाई के आखिरी हफ्ते में भारत-पाक के बीच सचिव स्तरीय वार्ता हुई, जिसमें मध्यस्थता विश्व बैंक ने की।
इस वार्ता के बाद विश्व बैंक ने भारत के पक्ष को सही ठहराया। इससे पहले दोनों देशों ने मार्च में पाकिस्तान में हुई स्थायी सिंधु आयोग की बैठक में भी दोनों प्रोजेक्टों पर चर्चा की थी। लेकिन तब कोई नतीजा नहीं निकला था। किशनगंगा परियोजना झेलम की सहायक नदी जबकि रातले परियोजना चेनाब नदी से जुड़ी हुई है। भारत-पाक के बीच हुए सिंधु जल समझौते के मुताबिक समझौते में दोनों नदियों को पश्चिमी नदी के तौर पर परिभाषित किया है और पाकिस्तान इन नदियों के पानी का असीमित इस्तेमाल कर सकता है।
संधु जल समझौता, अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिस पर भारत और पाकिस्तान ने साल 1960 में दस्तखत किए थे। इस संधि के लिए दोनों देशों के बीच करीब नौ साल तक लंबी वार्ता चली। चूंकि वार्ता में विश्व बैंक ने मदद की थी, लिहाजा इस संधि पर विश्व बैंक के भी हस्ताक्षर हैं। यही नहीं विवाद की सूरत में विश्व बैंक को मध्यस्थता का अधिकार है। यह समझौता तभी से अमल में है। भारत-पाक में तीन बार युद्घ के बावजूद यह संधि नहीं टूटी।
समझौते के मुताबिक सिंधु घाटी की छह नदियों को पूर्वी व पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया था। पूर्वी पाकिस्तान की तीन नदियों व्यास, रावी और सतलज का नियंत्रण भारत के पास है। जबकि सिंधु, चेनाब, झेलम का नियंत्रण पाक के पास है। समझौते में दोनों देशों के बीच सिंधु नदी के जल के इस्तेमाल को लेकर साफ-साफ दिशा निर्देश हैं। समझौते के तहत भारत पश्चिमी नदियों मसलन सिंधु, झेलम और चिनाब और उनकी सहायक नदियों के पानी का उपयोग घरेलू, विशेषीत कृषि कार्य और पनबिजली परियोजना हेतु कर सकता है और बाकी बचे पानी को पाकिस्तान के लिए छोड़ेगा। जाहिर है कि भारत ने पनबिजली परियोजनाओं पर अपना जो भी काम आगे बढ़ाया, वह सिंधु जल समझौते के मुताबिक ही है।
850 मेगावट की रातले पनबिजली परियोजना, जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में चिनाब नदी पर बन रही है। जिसमें दो संयंत्र हैं। 25 जून, 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी आधारशिला रखी थी। जिसका निर्माण साल 2018 तक पूरा किया जाना है। जबकि किशनगंगा नदी पर बन रही किशनगंगा पनबिजली परियोजना भारत की महवाकांक्षी परियोजना है।
परियोजना उत्तरी कश्मीर में बांदीपुरा के निकट गुरेज घाटी में स्थित है। नेशनल पावर कारपोरेशन द्वारा इस परियोजना का काम साल 1992 में शुरू किया गया था। 330 मेगावट की इस परियोजना की लागत कोई 3 हजार 6 सौ करोड़ रुपए है। परियोजना पूरे होने के बाद जहां उत्तरी कश्मीर के लोगों की बिजली की जरूरतें पूरी होंगी, वहीं किसानों को खेती के लिए पानी भी मुहैया होगा। केएचईपी की रूपरेखा ऐसे तैयार की गई है, जिसके तहत किशनगंगा नदी में बांध से जल का प्रवाह मोड़कर झेलम की सहायक नदी बोनार नाला में लाया जाना है।
भारत ने जब इस परियोजना पर काम शुरू किया, तो पाकिस्तान को इस पर कोई एतराज नहीं था, लेकिन जैसे ही परियोजना आकार लेने लगी, उसने अपना रुख बदल लिया और इसका विरोध करने लगा। पाकिस्तान का कहना है कि भारत की इस परियोजना की वजह से किशनगंगा नदी जल में उसका करीब पन्द्रह फीसद हिस्सा गायब हो जाएगा। पाकिस्तान के इस अचानक एतराज की वजह, दरअसल उसकी नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना है।
जो उसने भारत की किशनगंगा जल विद्युत परियोजना के बाद शुरू की थी। पाकिस्तान को लगने लगा है कि भारत द्वारा किशनगंगा नदी के बहाव को मोड़ने से उसकी नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना को नुकसान पहुंंचेगा। यही वजह है कि पाकिस्तान अब हर मंच पर किशनगंगा पनबिजली परियोजना का विरोध कर रहा है। पाकिस्तान की इस आपत्ति पर एक वक्त स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (सीओए) ने साल 2011 में इस पर अस्थायी रोक भी लगा दी थी। लेकिन साल 2013 में उसने भारत को किशनगंगा नदी के बहाव को मोड़ने की मंजूरी दे दी। अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय में हार के बाद पाकिस्तान विश्व बैंक पहुंच गया।
कुल मिलाकर पहले अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय और अब विश्व बैंक ने भारत द्वारा पश्चिमी नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु पर पनबिजली परियोजना बनाने को सही ठहराया है। इस मामले में भारत के रुख की वैधता की दोबारा पुष्टि हुई है। विश्व बैंक का हालिया नजरिया, एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि भारत, सिंधु जल समझौते का पालन करता रहा है।
अपनी परियोजना के लिए उसने कभी सिन्धु जल समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया है। पाकिस्तान ने विश्व बैंक में भारत के खिलाफ जो भी इल्जाम लगाए थे, वे पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। पाकिस्तान का कश्मीर में झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर किशनगंगा परियोजना और चिनाब नदी पर रातले पनबिजली परियोजना के निर्माण का विरोध दुर्भावनापूर्ण है। यही वजह है कि उसे हर मंच पर हार मिल रही है और भारत को जीत। हांलाकि इस मसले पर भारत-पाक के बीच अगले दौर की बातचीत अब सितंबर में वशिंगटन के अंदर होगी, लेकिन इस वार्ता में इतना तय है कि भारत का पक्ष मजबूत रहेगा।
-जाहिद खान
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