अगर आपको बच्चे को भी पढ़ने-लिखने, सुनने-बोलने में परेशानी आ रही है तो सावधान होने की जरूरत है, क्योंकि बच्चा आॅटिज्म की चपेट में भी हो सकता है। बच्चे इस बीमारी की चपेट में न आए, इसके लिए हर साल 2 अप्रैल को दुनियाभर में आॅटिज्म अवेयरनेस डे मनाया जाता है। आज के दिन लोगों को ऑटिज्म से जुड़े फैक्ट्स की जानकारी दी जाती है, ताकि समय रहते इसका इलाज हो सके। वहीं पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की बेटी ‘रूह दी’ हनीप्रीत इन्सां ने ट्वीट के जरिये आॅटिज्म अवेयरनेस के बारे में बताया है।
It is imperative to break down the barriers that prevent individuals with autism from reaching their full potential. Also, it’s equally important to appreciate their respective strengths and create a more compassionate & inclusive world for them.#WorldAutismAwarenessDay
— Honeypreet Insan (@insan_honey) April 2, 2023
क्या होता है ऑटिज्म
डॉक्टर सौंदर्य कहती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर नामक विकारों के समूह का एक हिस्सा है ऑटिज्म, जिसे बच्चे के मस्तिष्क के बढ़ने और पर्यावरण के साथ बातचीत शुरू करने पर देखा जाता है। इसमें मुख्य रूप से बच्चे के विकास में बाधा और बदलते परिवेश में सामंजस्य बैठाने में कठिनाई आती है। इस विफलता के कारण बच्चे में विशेष बिहेवियर संबंधी असामान्यताएं होती हैं।
ऑटिज्म के लक्षण क्या हैं
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के रूप में बताया गया है जो कम उम्र में ही दिख जाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में दूसरों के साथ सोशल कम्यूनिकेशन में कमी, सामाजिक बातचीत में दिलचस्पी ना होना, आई कॉन्टैक्ट ना बना पाना और एक ही चीज को बार-बार दोहराना शामिल है। इन बच्चों को अपने रूटीन में बदलाव बर्दाश्त नहीं होता है। ये बच्चे बड़े होकर आसानी से दोस्त नहीं बना पाते हैं और इन्हें अकेले ही खेलना पसंद होता है। इन्हें खिलौनों, खाने या अपनी एंजॉयमेंट को शेयर करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है।
ऑटिज्म बच्चों को घर पर ऐसे करें ट्रीट
नेगेव और सोरोका मेडिकल सेंटर के बेन-गुरियन विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक दूसरी तिमाही में रूटीन प्रीनेटल अल्ट्रासाउंड की मदद से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के शुरुआती लक्षणों की पहचान की जा सकती है। इसके अलावा प्रीनेटल एमआरआई स्कैन से भी गर्भ में पल रहे शिशु में ऑटिज्म का पता लगाया जा सकता है। गर्भवती महिलाएं अपने प्रीनेटल चेकअप के दौरान ही यह जान सकती हैं कि उनका बच्चा ऑटिज्म से सुरक्षित है या नहीं।
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