मेघालय की एक कोयला खदान में 15 मजदूर 14 दिनों से फंसे हुए हैं। खदान में 70 फुट तक पानी भरने से चिंताजनक हालात बने हुए हैं। पिछले माह थाईलैंड में 14 बच्चों को सुरंग से बचाने वाली भारतीय कंपनी किर्लोस्कर ने मदद की पेशकश की है। दुखद : बात यह है कि मजदूरों के प्रति केंद्र सरकार का रवैया नकारात्मक ही है। किसी भी केंद्रीय नेता ने समय पर इस घटना पर कोई बयान तक नहीं दिया। दरअसल पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को आने के बाद केंद्र सरकार में अफरा-तफरी मची हुई है। परिणामों से दो दिन बाद में यह हादसा घटता है लेकिन इस घटना का कहीं जिक्र तक नहीं हो रहा। विशेष तौर पर भाजपा 2019 के चुनावों को लेकर चिंता में है और 2019 के चुनावों की तैयारियों के लिए रणनीति बना रही है।
मीडिया में मजदूरों का मामला उछलने से इसकी चर्चा शुरू हुई है। राजनेता राजनैतिक पैंतरेबाजियों में उलझे हुए हैं, जिसे सरकारों का संवेदनहीनता ही कहा जा सकता है कि संसद में इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हो रही। नि:संदेह थाईलैंड की सुरंग के हालात कोयला खदान से अलग हैं फिर भी सरकार ने किर्लोस्कर कंपनी से संपर्क न साधना सरकार के गैर-जिम्मेदाराना रवैये का प्रमाण है। गैर-कानूनी तरीके से खदान चला रहा व्यक्ति फरार है। मेघायल सरकार गैर-कानूनी माइनिंग के मुद्दे के कारण बदनामी के डर से सक्रिय नहीं हुई, जिसका खमियाजा मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार काफी देर से जागी है, इस बात की भी चर्चा है कि कोयला खदान के रेट होल के तरीके से चल रही थी और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल 2014 में इन होल खदानों पर प्रतिबंध लगा चुका है। यूं भी गैर-कानूनी माइनिंग का धंधा रोकने में सरकारें नाकाम रही हैं। न केंद्र व न ही मेघालय सरकार के किसी मंत्री या अधिकारी ने गैर कानूनी खदानों को रूकवाने के लिए दौरा करने की कभी जहमत उठाई। पूर्व-उत्तर एक कठिन सफर वाला क्षेत्र है जहां पहुंचने की हिम्मत कोई मंत्री व अधिकारी नहीं करता। यदि कानून कायदे लागू किए जाते तो यह हादसा न होता। दरअसल माइनिंग के लिए जारी निर्देशों को लागू करने की कोशिश नहीं की जाती। परन्तु अब केंद्र व राज्य सरकारों को मजदूरों की जान बचाने के लिए हर संभव कदम उठाने की जरूरत है।
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