समाज कम पढ़ा लिखा है तब भी महिला का उत्पीड़न कर रहा है, समाज अच्छी सुविधाओं में रहता है व बेहतरीन स्कूलों में पढ़ रहा है तब भी महिला का उत्पीड़न कर रहा है क्यों? देश में घटित दो घटनाओं एक में दिल्ली के नामी स्कूल के 15-16 साल के लड़कों का इंस्टाग्राम ग्रुप है ‘ब्वायज लॉकर रूम’ व दूसरी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की घटना है, जिसमें तीन महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया, उनके कपड़े फाड़ दिए एवं सबसे घिनौना कृत्य यह कि उक्त तीनों महिलाओं को मानव मल घोलकर जबरन पिलाया गया। गांवों-शहरों, स्कूलों, परिवारों में कब ऐसी शिक्षा मिलने लगेगी कि जो सिखाए कि महिलाएं समाज का आधार हैं, महिलाओं की इज्जत की जाए।
यूं तो दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा चरम पर है, परन्तु भारतीय अपना ही घर ठीक कर लें तो यह भी बहुत बड़ी बात होगी। दिल्ली की घटना, जिसमें आरोपित लड़के अपनी सहपाठिन लड़कियों से गैंगरेप की प्लानिंग कर रहे हैं, उनकी निर्वस्त्र फोटोज शेयर कर हंसी-ठिठोली कर रहे हैं, इस पर कुछ लोग ‘बच्चों की बात’ कहकर इस अपराध को खारिज करने की कोशिशें कर रहे हैं। लेकिन उन बच्चों का बचाव करने वाले यह क्यों नहीं समझते कि महिला उत्पीड़न कोई मजाक का विषय नहीं है, यह एक किस्म का दर्द होता है जो किसी महिला व उसके मां-बाप, भाई-बहन को जीवन भर सताता है। बिहार की घटना तो हद दर्जे का पागलपन है, पीड़ित तीनों महिलाओं को इसीलिए बुरी तरह पीटा गया व मानव मल पिलाया गया कि उनमें से भूत निकाला जा रहा था। निश्चित रूप से हमारे समाज में बहुत बड़ी आबादी की पूरी मनोदशा ही विकृत हो चुकी है।
देश में सामाजिक शिक्षा में समाज के मानसिक विकास पर जरा भी काम नहीं हो रहा। हमारी स्कूली व परिवारिक शिक्षा में व्यक्ति के व्यवहार एवं उनसे निकलने वाले परिणामों को मामूली बातें समझकर खारिज करने की आदत यहां तक पहुंच गई है कि गंवार एवं सुशिक्षित, गरीब व अमीर किसी भी धर्म में महिला सम्मान की कोई झलक तक नहीं रही। ऐसा क्यों? भारतीय समाज की यदि बात करें तब यहां नैतिक शिक्षा का पतन हो चुका है, वहीं व्यवहार कला लोग सीख नहीं रहे। तभी घरों, ऑफिस, खेतों, कारखानों, स्कूलों, बाजारों में हर वस्तु, हर उग्र में महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है। दिल्ली व बिहार में घटित घटनाएं पहली दफा नहीं है, यह सब बहुत पहले से समाज में होता आ रहा है, बस उत्पीड़न के तौर-तरीके व माध्यम बदल रहे हैं। देश को बदलते परिवेश में महिलाओं के प्रति व्यवहार कला सिखाने व पढ़ाने के लिए संस्थागत रूप से प्रयास करने होंगे। पुरूष व महिलाएं समान हैं, कोई किसी का उत्पीड़न या अपमान नहीं कर सकता। यह अच्छी तरह पढ़ाया व सिखाया जाए कि वह कौन सी आदतें या व्यवहार हैं जो सामान्य दिखने पर भी अपमानजनक, हिंसक, उत्पीड़त करने वाले हैं।
देश व समाज को समझना होगा कि व्यक्ति धन, कपड़े, अच्छे घर, नामी स्कूलों में पढ़ने से अच्छा या गांव, देहात, गरीबी व सामान्य स्कूलों में पढ़ने या अनपढ़ रहने से बुरा नहीं होता बल्कि एक समाज अपने बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं से कैसा व्यवहार करता है उससे तय होता है कि वह कैसा है। किसी समाज की खुशी व तरक्की परिवारिक-सामाजिक मूल्यों से स्पष्ट होती है, अफसोस भारत के शहर व गांव अभी इसमें फिसड्डी हैं।
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