हर साल की तरह इस साल भी दिल्ली व आसपास के क्षेत्र में धुंए का प्रदूषण बेहद गंभीर बना हुआ है। इस बार उच्चतम न्यायलय ने भी आदेश जारी किए थे कि दीपावली पर लोग 10 बजे के बाद पटाखे नहीं चलाएं। परन्तु यहां न्यायलय के आदेशों से पहले ही आमजन चिंतित था कि दीपावली के दिनों में वह कैसे सांस लेगा जब पंजाब व हरियाणा में किसान धान की पराली को भी आग लगा रहे होंगे। आमजन ने अपनी समस्या को देखते हुए दीपावली पर ज्यादा पटाखे नहीं फोड़े बल्कि समाजसेवी संस्थाओं व स्कूली बच्चों ने ग्रीन दीपावली का संदेश दिया जो काफी सफल भी रहा। बावजूद इन सब प्रयासों के दिल्ली को सांस नहीं आ रही। हवा में धुंआ ही नहीं धूल के भी गुब्बार हैं।
पंजाब व हरियाणा में सरकार की सख्ती के चलते किसानों ने पराली को भी कम जलाया है चूंकि प्रशासन ने जिला से ग्राम स्तर तक इस बार प्रदूषण रोकने के लिए किसानों को चेतावनी, समझाइश व व्यक्तिगत निरीक्षण का पूरा अभियान चलाया, ये अभियान भी काफी सफल रहा है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश में आपदा आने पर ही हाथ-पांव क्यों चलाए जाते हैं?
क्यों नहीं प्रशासन, सरकार व आमजन एक दीर्घ योजना बनाकर समस्याओं का निराकरण करने की चेष्ठा करते। देश में यूं भी आबादी बेतहाश बढ़ चुकी है, इस आबादी के भरण-पोषण के लिए देश में युद्ध स्तर पर निर्माण व उत्पादन कार्य दिन-रात चल रहे हैं, जिससे दिल्ली जैसे घनी आबादी क्षेत्र के लिए मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। दसियों साल हो गए हैं, दिल्ली में अभी तक साफ पीने का पानी, सफाई, रोशनी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की ही माकूल व्यवस्था नहीं हो सकी है।
उस पर अब प्रतिदिन बढ़ रहा प्रदूषण देश की राजधानी के अस्तित्व पर काले बादल की तरह मंडराने लगा है। देश में दिल्ली ही नहीं कमोबेश सभी बड़े महानगर प्रदूषण की भयंकर मार तले आ गए हैं। इस प्रदूषण में हवा व पानी का प्रदूषण जानलेवा हो चला है। अत: देश को अब प्रदूषण मुक्त करने के लिए दीर्घावधि योजनाओं पर काम करना होगा, इसमें बढ़ रहा शहरीकरण रोकना, ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का विकास करना, कृषि क्षेत्रों में फसल के अवशिष्ट का निस्तारण,
शहरी सीवरेज का मुकम्मल हल, ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करना, देश में से र्इंधन की अनावश्यक खपत पर रोक, यातायात साधनों में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा एवं सबसे महत्वपूर्ण बढ़ रही आबादी को थामना होगा, अन्यथा देश के वातावरण के साथ-साथ मानवीय व जीव प्राणियों का जीवन भी प्रदूषण निगल जाएगा जिसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
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