बदल सकता है महिला सुरक्षा का परिदृश्य

Women Security

दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद ना केवल महिला थाना खोलने की बात की गयी थी बल्कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने के लिए भी सरकार ने पुलिस बल में महिलाओं के लिए आरक्षण की बात कही थी। हमारे यहाँ ऐसे ठोस कदम उठाये जाने आवश्यक भी हैं ताकि किसी भी आम स्त्री को शिकायत लेकर पुलिस स्टेशन जाने में डर न लगे और न ही किसी तरह की परेशानी उठानी पड़े।

हाल ही में आई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 के मुताबिक बिहार में दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा महिला पुलिसकर्मी तैनात हैं। राज्य के पुलिस बल में 25.3 फीसदी महिलाएं हैं। साथ ही महिला अधिकारी वर्ग में यह हिस्सेदारी 6.1 फीसदी है। यानी बिहार में हर 4 पुलिस में 1 पुलिसकर्मी महिला है। यह वाकई गौर करने वाली बात है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के चिंतनीय आंकड़ों वाले हमारे देश के राज्य के पुलिस बल में न केवल महिलाओं की अहम भागीदारी है बल्कि बिहार में महिलाओं की पुलिस में भर्ती पर सबसे ज्यादा जोर भी दिया जाता है।

गौरतलब है कि बीते दिनों टाटा ट्रस्ट ने इंडिया जस्टिस रिपोर्ट- 2020 जारी की है जिसमें राज्यों की न्याय करने की क्षमता का पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे मानकों पर आकलन किया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार महिला पुलिस कर्मियों के मामले में पहले पायदान पर है। बिहार के बाद हिमाचल प्रदेश 19.2 प्रतिशत और तमिलनाडु में महिला पुलिस कर्मियों की संख्या 18.5 प्रतिशत हैं। रिपोर्ट बताती है कि अधिकारी वर्ग में सबसे ज्यादा महिलाएं तमिलनाडु की पुलिस फोर्स में नियुक्त हैं। वहां यह भागीदारी 24.8 प्रतिशत है जबकि मिजोरम इस मोर्चे पर 20.1 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दूसरे नंबर पर है।

दरअसल पुलिस फोर्स में महिलाओं की भागीदारी केवल आधी आबादी के रोजगार पाने या किसी एक क्षेत्र विशेष में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने भर की बात नहीं है। स्त्रियों की यह हिस्सेदारी महिला सुरक्षा का पूरा परिदृश्य बदलने वाली बात है। कानून व्यवस्था और पुलिस प्रशासन के मामले में कई मोर्चों पर हमारी व्यवस्था को लचर और असहयोगी माना जाता है खासकर महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं में अकसर निराशाजनक व्यवहार देखने को मिलता है। ऐसे में बिहार जैसे राज्य में पुलिस बल में महिलाओं का बढ़ता प्रतिनिधित्व आधी आबादी का भरोसा बढ़ाने वाला है। खासकर तब जब देश भर में ही महिला पुलिस कर्मियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले काफी कम है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अध्ययन में सामने आए तथ्यों के अनुसार भारत में हर 10 पुलिस कर्मियों में मात्र 1 महिला है, जबकि 9 पुलिसकर्मी पुरुष हैं। 2017 में देश में पुलिस की भागीदारी 7 प्रतिशत थी जो कि अब मामूली इजाफे के साथ अब 10 फीसदी तक पहुंची है। अधिकारी स्तर की बात की जाए तो हमारे यहाँ 100 में मात्र 7 पुलिस अधिकारी महिला हैं।

भारत जैसे देश में जहाँ महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के आँकड़े साल-दर-साल बढ़ ही रहे हैं, पुलिस बल में महिलाओं की कम भागीदारी चिंतनीय है। इस क्षेत्र में उनका दखल कम होना देश की आधी आबादी के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करता है। अगर थानों में महिला पुलिसकर्मी मौजूद हों तो यह अन्य महिलाओं का मनोबल बढ़ाने वाला साबित होता है। सार्वजनिक स्थानों पर भी महिला पुलिस बल की तैनाती आम स्त्रियों में सुरक्षा और सम्बल का भाव जगाती है। वर्दीधारी महिला पुलिसकर्मी की उपस्थिति से उन्हें ना केवल सुरक्षित महसूस होता है बल्कि मानसिक सम्बल भी मिलता है। इतना ही नहीं छेड़छाड़ या दुष्कर्म की शिकार लड़कियाँ महिला पुलिस अधिकारी के समक्ष अपनी बात बेहतर ढंग से रख सकती हैँ।

ऐसे हालातों में महिला पुलिसकर्मी या अधिकारी अधिक संवेदनशीलता से संभाल सकती हैं। हमारे परिवेश में अपराधी को सजा मिलने का भय नहीं है लेकिन आमजन को आज भी पुलिस से सहायता मांगने में डर लगता है। महिलायें तो अकेले थाने जाने से भी कतराती हैं। यही वजह है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में से बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी होते हैं जो रिपोर्ट ही नहीं किये जाते। वदीर्धारी महिलाओं की संख्या बढ़ी तो भय से भरी इस मानसिकता में बदलाव आएगा। महिला पुलिसकर्मियों की तादाद बढ़ने से पुलिस थानों का वातावरण बदलेगा और महिलायें आगे आकर शिकायतें दर्ज करवाएंगी।यही वजह है कि महिला पुलिस बल बढ़ने पर आमजन का पुलिस पर भरोसा भी बढ़ेगा।

खाकी वर्दी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर राष्ट्रीय पुलिस कमीशन ने 1980 में ही सिफारिश की थी कि हर पुलिस स्टेशन पर महिला कर्मियों की संख्या 10 प्रतिशत की जानी चाहिये। ऐसा होने से किसी भी तरह की क्रूरता या प्रताड़ना की शिकार महिला को अपनी पीड़ा साझा करने और रिपोर्ट दर्ज करवाते समय एक गरिमामयी माहौल और मनोवैज्ञानिक सम्बल मिल सकेगा। यकीनन महिला सुरक्षा से जुड़ी गंभीर चिंताओं के मद्देनजर ऐसा होना जरूरी भी है। देश में पुलिस बल में महिलाओं को शामिल करने का सिलसिला सात दशक पहले शुरू होने के बावजूद इनकी हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत तक ही पहुंच पाई है। गौरतलब है कि पुलिस बल में महिलाओं की यह स्थिति तब है जबकि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने की कई बार अपील की थी।

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों से निपटने के लिए महिला पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाय तो निश्चित रूप से इसके कई सकारात्मक प्रभाव सामने आयेंगे। पुलिस बल में महिलाओं की तादाद बढ़ने से ना केवल महिलाओं की रोजगार के क्षेत्र में मौजूदगी बढ़ेगी बल्कि पुलिस थानों के भीतर महिलाओं की संख्या बढ़ने से वहां सहज और सहयोगात्मक वातावरण भी बनेगा। महिला पुलिसकर्मियों की मौजूदगी काफी हद तक पुलिस बल को लैंगिक संवेदनशीलता के भाव से भी जोड़ सकती है। यह एक कदम में देश में स्त्रियों की सुरक्षा का परिदृश्य बदलने में अहम भूमिका निभा सकता है।

                                                                                                              –डॉ. मोनिका शर्मा

 

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