एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड का मामला तूल पकड़ रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संकेत दिया है कि राम मंदिर, सीएए, ट्रिपल तलाक और अनुच्छेद 370 तो हो गया, अब कॉमन सिविल कोड की बारी है। भारतीय जनता पार्टी के मूल उद्देश्यों में तीन मुद्दे प्रखर हैं। भारत में फिलहाल संपत्ति, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामलों के लिए हिंदू, ईसाई, जोरेसटरीयन और मुसलमानों का अलग-अलग पर्सनल लॉ है। इस कारण एक जैसे मामले को निपटाने में पेचीदगियों का सामना करना पड़ता है। देश में लंबे अरसे से समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर बहस होती रही है। खासकर भाजपा जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाती रही है, लेकिन कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसका विरोध करते रहे हैं। राजनैतिक दलों की भी अपनी-अपनी विभिन्न सोच है। दो मूल उद्देश्य लागू कर दिये गए हैं। पहला राम मंदिर निर्माण और दूसरा कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर, वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाकर अलगाववाद को रोका गया।
राम मंदिर भूमितल का सुप्रीम कोर्ट का 2:2 का फैसला था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का वीटो निर्णय था। अब समान नागरिक संहिता लागू करने की बात है, जिसकी राह बननी जरूरी है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि, सामान नागरिक संहिता की जरूरत लागू करने का सही वक्त आ गया है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि आर्टिकल 44 में जिस यूनिफार्म सिविल कोड की उम्मीद जताई गई है, अब उसे हकीकत में बदलना चाहिए। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा, भारतीय समाज में धर्म, जाति, विवाह आदि की पारंपरिक बेड़ियां टूट रहीं हैं। युवाओं को अलग-अलग पर्सनल लॉ से उपजे विवादों के कारण शादी और तलाक के मामले में संघर्ष का सामना न करना पड़े। ऐसे में कानून लागू करने का यह सही समय है। हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है।
समान नागरिक संहिता का अर्थ है, देश के हर नागरिक पर एक समान कानून लागू होना, फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए नियम समान होंगे। ‘एक देश, एक कानून’ के तहत समान नागरिक संहिता को किस प्रकार, विभिन्न जातियां, धर्म, समुदाय स्वीकार करेंगें, इस बारे में अभी कुछ कहना कठिन है, लेकिन देश को इस ओर जरूर बढ़ना चाहिए। भारतवर्ष में विभिन्नता में एकता तो है, परंतु समान नागरिक संहिता को राजनैतिक चश्मे से लागू करने का प्रयास करना सही तरीका नहीं होगा। भारत की नई पीढ़ी बदल चुकी है, उसे सम्प्रदाय व जाति के बंधन से मुक्त कर समान कानून के दायरे में लाने की जरूरत है। समान नागरिक संहिता महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों व संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगी।
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