सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मानस जन्म, मनुष्य शरीर बडेÞ भागों से, बड़े नसीबों से जीवात्मा को मिला है। यह वह शरीर है, जो इस मृत्युलोक में रहता हुआ भी अल्लाह, राम, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब के दर्श-दीदार को पा सकता है। इन्सानी शरीर में आत्मा मालिक का नाम लेकर खंडों-ब्रह्मांडों को पार करती हुई निजधाम सतलोक, अनामी में जा सकती है।
इंसान को इतना श्रेष्ठ व सर्वोत्तम शरीर मिला है
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इंसान को इतना श्रेष्ठ व सर्वोत्तम शरीर मिला है पर कितनी हैरानी की बात है कि फिर भी ज्यादातर लोगों के चेहरे लटके हुए हैं। किसी को घर-परिवार से परेशानी है तो किसी को काम-धंधे से। आज के इन्सान दो तरह का जीवन जीते हैं, गृहस्थ और त्यागी का। गृहस्थी में इंसान बहुत से झमेलों में उलझा रहता है, लेकिन जो गृहस्थी राम का नाम जपते हैं अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, खुदा, रब्ब की भक्ति-इबादत करते हैं और साथ ही कड़ा परिश्रम, मेहनत करके हक-हलाल की रोजी-रोटी खाते हैं, उनके गम, दु:ख, चिंताएं परमात्मा का नाम खुद-ब-खुद खत्म कर देता है।
आप जी फरमाते हैं कि त्यागी त्याग तो कर देते हैं पर गृहस्थी के लिए भी हाथ-पांव मारते रहते हैं। त्यागी जब किसी गृहस्थी को देखता है, किसी की शादी को देखता है तो मन में लड्डू फूटते हैं। इसकी तो शादी हो रही है मैं तो रह गया। उस तरफ ध्यान नहीं देता जो रोते हुए आते हैं। जो कहते हैं कि मर गए, लुट गए, बर्बाद हो गए, क्या दोबारा से कुंवारापन मिल जाएगा? गुरु साहिबानों के वचन हैं कि जब तक शादी नहीं होती, शादी का चाव रहता है और शादी हो जाती है तो फिर रोता-कुरलाता है। इसी पछतावे में जीवन गुजर जाता है और मौत आ जाती है। गृहस्थ आदमी, त्यागी बनने को तैयार है और त्यागी सोचता है कि शादी करके मैं भी खुश रहता। राजस्थान में लोग ऊंट की पूंछ के सारे बाल उतार कर उसे डंडे के समान बना देते हैं ताकि वह पानी की बूंदें न मार सके। इस तरह त्यागी को तो ऊंट की पूंछ की तरह होना चाहिए यानि उसे किसी बात की टेंशन नहीं होनी चाहिए।
सत्संग में भावना परमात्मा की तरफ होनी चाहिए
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब भी सत्संग में आएं, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब की याद में आएं। सत्संग में भावना परमात्मा की तरफ होनी चाहिए। कुछ लोग बड़ा ही सज-संवरकर आते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बहुत बड़ा गुनाह होता है। इससे तो अच्छा है कि आप सत्संग में न आएं। कम से कम इस गुनाह से तो बच जाएंगे। इन्सान पता नहीं किस वेश में आता है और पता नहीं उसका क्या इरादा हो।
किसी के अंदर कोई छल-कपट है तो हो सकता है कि वचनों को सुनकर अगर वह अमल कर ले तो उसका छल-कपट दूर हो जाए। अगर वह छलिया बनकर आया है तो छलिया ही बना रहेगा, दु:खी होता रहेगा, सुख-शांति उसे जिंदगी में कभी नसीब नहीं होगी। इसलिए इंसान को इंसानियत का त्याग नहीं करना चाहिए और सच्चे दिल से अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब का नाम जपना चाहिए और जहां तक संभव हो मेहनत, हक-हलाल की रोजी-रोटी खानी चाहिए।
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