Holi 2024: क्या आने वाली पीढ़ियों को बताना पड़ेगा, फ़ाग ऐसा होता था?

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Holi 2024: क्या आने वाली पीढ़ियों को बताना पड़ेगा, फ़ाग ऐसा होता था?

Holi 2024: सामाजिक सद्भावना के त्यौहार पर गायब रहा भाईचारा

डॉ. संदीप सिंहमार। सामाजिक सद्भावना और भाईचारे का प्रतीक के होली के त्यौहार के रंग अब फीके नजर आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आज के दौर में रंगों की कमी है, लेकिन खुद इंसान की फितरत की वजह से रंग- बेरंग हो गए हैं। होली का त्यौहार पहले भी था, आज भी है, पर अब तो इस पवित्र त्यौहार का नजरिया बदल गया है। होली का त्यौहार भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में मनाया जाता है। इसके मनाने का तरीका बिल्कुल अलग होता जा रहा है। भारतवर्ष में हरियाणा ऐसा राज्य है,जिसमें होली के अगले दिन फाग/दुलहंडी का दिन अपने आप में एक अलग अंदाज में मनाया जाता था। यह अंदाज भी अब द्वेष भावना का शिकार होकर रह गया है। Haryana News

यह एक ऐसा त्यौहार रहा है, जिस दिन रिश्ते में देवर भाभी बड़े ही प्रेम से इस त्यौहार को खेलते थे। सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार बड़े बुजुर्गों की देखरेख में इस त्यौहार को गांव के चौराहे पर आयोजित किया जाता था। आज से एक दशक पहले तक बात करें तो गांव के चौराहे के बीच में एक बड़ा कढाया यानी बर्तन रखा जाता था। उसमें गांव की लड़कियां पानी भरती थी। बड़े बुजुर्ग निगरानी के लिए चारों तरफ बैठते थे और फिर चलता था, भाभी-देवर के प्रेम का प्रतीक मस्ती का त्यौहार। देवर जहां इस बड़े बर्तन से अपनी भाभी पर पानी उड़ेलते थे तो भाभी अपनी चुन्नी या कपड़े से बना कोरड़ा बनाकर देवर पर वार करती थी।

रस्सी डालकर देवर की पिटाई करती नज़र आती

इस दौरान कोरडे मारे जाते थे, लेकिन किसी को चोट नहीं आती थी। किसी को चोटिल करना भाभी का उद्देश्य नहीं था, बल्कि एक प्रेम प्रदर्शन का ही उद्देश्य माना जाता था। पर आजकल न पहले वाली भाभी रही और ने ही पहले वाले देवर। यह प्रेम भरा रिश्ता मन मुटाव का शिकार हो गया है। रिश्ते में देवर लगने वाले युवक जहां इस पवित्र त्यौहार के दिन सुबह उठते ही शराब या अन्य नशों में धुत हो जाते हैं तो वहीं देवर ही नहीं भाभी भी अब पहले वाले कोरडे नहीं बल्कि कपड़ों के बीच बिजली के तार या रस्सी डालकर देवर की पिटाई करती नज़र आती है। Haryana News

ऐसा नहीं है की त्यौहार मनाया नहीं जाता। मनाया आज भी जाता है पर अब द्वेष भावना ज्यादा दिखाई देती है। दो दशक पहले तक हरियाणा में एक जमाना ऐसा था, जहां रिश्ते में देवर-भाभी लगने वाले हर किसी इंसान के लिए फाग खेलना अनिवार्य होता था। जो देवर अपनी भाभी के साथ फाग नहीं खेलता था। वह उसके बदले में भाभियों को लड्डू या पेड़े खिलाता था। इसका मतलब यह माना जाता था कि उसने फाग खेलने के बजाय अपनी भाभी को बड़े प्रेम से मीठा खिलाकर मना लिया है। पर अब यह परंपरा भी लुप्त होने की कगार पर है।

लोकगीतों पर झूमती थी महिलाएं | Haryana News

हरियाणा में होली फाग के दिन विशेष कर महिलाएं मस्ती में झूम कर लोकगीत गाती हुई इस त्यौहार को मानती थी। इस त्यौहार के दिन मौज मस्ती के प्रति फागण माह से संबंधित कुछ लोकगीत गाती थी। जो की एक पुरानी परंपरा माने मानी जाती थी:-इनमें में से कुछ गीत हैं-

फागण के दिन चार री सजनी…

फागण के दिन चार री सजनी
फागण के दिन चार
मध जोबन आया फागण मैं
फागण बी आया जोबन मैं
झाल उठे सैं मेरे मन मैं
जिनका बार न पार री सजनी, फागण के दिन चार।

इसी तरह एक अन्य गीत है जो एक दशक पहले तक गुगुनाय जाता था-

जब साजन ही परदेस गये मस्ताना फागण क्यूँ आया?
जब सारा फागण बीत गया तैं घर में साजन क्यूँ आया?
इस गीत के माध्यम से सुहागिनें अपने साजन के प्रति विरह वेदना व्यक्त करती नजर आती थी-

एक बड़ा ही पुराना गीत है। जिसके माध्यम से बताया गया है कि इस त्यौहार के दिन यौवन भरपूर महिला से लेकर बुजुर्ग महिला में भी मस्ती मानी जाती थी,जिसका उदाहरण है-

बूढी ए लुगाई मस्ताई फागण मैं….

कुलेरी गाँव में जारी रही परंपरा | Haryana News

फाग उत्सव के दौरान एक तरफ जहां हरियाणा प्रदेश में नशे में धुत युवकों की हुल्लड़बाजी दिखाई थी, वहीं दूसरी तरफ गाँव कुलेरी में फाग की वर्षों पुरानी हरियाणवी परंपरा जारी रही। यहाँ गाँव के चौराहे पर बड़ा कढाया रखकर पानी भरा गया। उसके बाद देवर-भाभी ने जमकर फाग खेला। खास बात यह रहेगी इस दौरान गांव के बुजुर्ग खुद नेतृत्व करते नजर आए। यहाँ एक के बाद एक देवर-भाभी ने पुरानी संस्कृति के अनुसार भाग उत्सव मनाया। देवर ने जहां अपनी भाभी पर रंग घुला हुआ पानी उड़ेला

तो भाभियों ने भी अपने देवर पर जमकर कोरडे बरसाए। उससे भी खास बात यह है कि इस विशेष खेल के अंत में विजेता रहने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया गया। कुलेरी लरी के पूर्व सरपंच राजेंद्र ने बताया कि सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाले फाग उत्सव से आपसी भाईचारा बना रहता है। जहां गांव में लोग आपसे गिले-शिकवे में भुलाकर आत्मिक रूप से फाग खेलते है। उनका प्रयास है कि हमारी पुरानी संस्कृति को बचाया जा सके और आने वाली पीढ़ियां भाईचारे के इस पर्व को याद रख सकें। Haryana News

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