Chandrayaan-3 Mission: इस वक्त पूरी दुनिया में इसरो और चंद्रयान-3 की चर्चा है, हर तरफ इन्हें लेकर चर्चा की जा रही है। बता दें कि इसरो देश के लिए तो नये कीर्तिमान हाशिल कर ही रही है लेकिन दुनिया के कई दुसरे देश भी अपने लिए सैटेलाइट लॉन्च करा रहे हैं। इसरो की ताकत देख रूस ने भारत को एक बड़ा ओफर दे दिया।
मजे की बात ये है कि रूस का ओफर अमेरिका के बाद आया है। यानि इसरो के साथ काम करने के लिए रूस और अमेरिका लड़ रहे हैं। जानकारी के लिए इसरो की काबिलियत और चंद्रयान की उड़ान देख रूस ने को ओफर दिया है। बता दें कि रूस भारत के साथ मिलकर अंतरिक्ष में कब्जा करना चाहता है।
दरअसल इसरो ने चंद्रयान-1 के मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को भी उसी क्षेत्र में उतरने के लिए भेजा गया था और अब चंद्रयान-3 भी यहीं उतरने की कोशिश करेगा। हालांकि इससे पहले दोनों मौके पर नाकामी हाथ लगी थी। चंद्रयान-1 का मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रमा की दक्षिण ध्रुव पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। जबकि chandrayaan-2 के लैंडर से सॉफ्ट लैंडिंग के आखिरी मिनट में सिग्नल मिलना बंद हो गया था। लेकिन एक बार फिर चंद्रयान-3 के साथ इसरो भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बनने की कोशिश कर रहा है।
Chandrayaan-3 Landing Update: अभी-अभी चंद्रयान-3 को लेकर आया बड़ा अपडेट
वैसे जानकारी के लिए बता दे कि 11 अगस्त को रूस द्वारा लॉन्च किया गया लूना 25 भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की तैयारी कर रहा था, जो रविवार को दुर्घनाग्रस्त हो गया है। बता दें कि पिछले 47 साल में चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने की रूस की ये पहली कोशिश है। जानकारी के लिए बता दें कि रूस ने 1976 में अपना पहला मून मिशन लॉन्च किया था। शुक्रवार को लॉन्च किए गए मिशन के तहत रूस का अंतरिक्ष यान चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा। माना जा रहा है की यहां पानी हो सकता है। रूस के मून मिशन से पहले 14 जुलाई को भारत ने चंद्रयान 3 लांच किया था। चंद्रयान 3 भी चांद की सतह पर उतरेगा। रूस के इस अभियान की पर चीन और अमेरिका के मून मिशन से भी है।
लेकिन वही इसरो को उम्मीद है कि chandrayaan-3 अपने मिशन में जरूर कामयाब होगा। बता दे की अंतरिक्ष के खोज करने वाले देशों के बीच अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने के लिए एक होड़ रही है और सौर मंडल में चंद्रमा पृथ्वी का सबसे निकटतम खगोलीय पिंड है। दरअसल चंद्रमा पर पहुंचने को लेकर अमेरिका और रूस में आपसी होड़ रही है और यह भी कहा जा सकता है कि अमेरिका और रूस के बीच अंतरिक्ष युद्ध दूसरे विश्व युद्ध के बाद शुरू हुआ था।
जानकारी के लिए बता दें कि तत्कालीन सोवियत रूस ने 1955 में सोवियत अंतरिक्ष कार्य शुरू किया था। इसके 3 साल बाद अमरीका ने 1958 में नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एजेंसी यानी नासा की शुरुआत की थी। इसके बाद 14 सितंबर 1959 को को पहला मानव निर्मित यह चंद्रमा पर उतारा तत्कालीन सोवियत रूस का लूना 2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरा और इस प्रकार लूना 2 ने चंद्रमा पर उतरने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु के रूप में इतिहास रचा।
क्या भारत बन पाएगा दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश?
दरअसल इतिहास में पहले उपलब्धि हासिल करने वाले नाम को हमेशा याद किया जाता है जैसे की रोज चंद्रमा पर अपना यह भेजने वाला पहला देश था लेकिन अमेरिका चंद्रमा पर कदम रखने वाला पहला देश बना। वहीं अब देखना यह है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने वाला भारत पहला देश बन पाएगा या नहीं, क्योंकि लोन 25 के दुर्घटनाग्रस्त होने से यह मौका अभी भी भारत देश के पास बना हुआ है। यानी चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव पर जमी हुई मिट्टी में पानी के निशान का पता लगता है, तो यह भविष्य के प्रयोग के लिए अधिक उपयोगी होगा। चंद्रमा पर पानी का पता लगाने पर उसे ऑक्सीजन बनने का विकल्प भी मिलेगा यानी मानव जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है। chandrayaan-1 और chandrayaan-2 में भी इसी तरह के प्रयास किए गए थे लेकिन अब chandrayaan-3 इतिहास रचने की तैयारी में है।