बैंक अर्थव्यवस्था को पुर्नजीवित कर पाएंगे?

Economy

बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति को समझना कठिन है। कोरोना महामारी फैलने से महीनों पहले अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही थी और यह वित्तीय वर्ष अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक नहीं रहने वाला है किंतु बैंकिंग क्षेत्र को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है और सौभाग्य से सरकार ऐसा कर भी रही है क्योंकि सरकार समझती है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट को रोकने के लिए प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। उद्योगों को उबारने की दिशा में पहले कदम के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ने ऋण पुर्ननिर्धारण कार्यक्रम उठाया है तथा ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है इससे बैेंक सामान्य कामकाज कर सकेंगे। मौद्रिक नीति समिति की हाल की बैठक में ब्याज दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय किया गया तथा आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए आवश्यक कदम उठाने पर बल दिया गया। किंतु बैकिंग प्रणाली में अतिरिक्त नकदी से अभी भी कपंनियों के लिए ऋण की लागत कम हो रही है और यह ऋण लेने वालों के लिए सहायक हो सकता है।

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष केवी कामथ की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया जो कोरोना महामारी के चलते अशोध्य ऋणों को पुनर्निर्धारित करने के बारे में बैंकों को एक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराएगा। इस समिति को ऋण सामान्य योजनाआें मे शामिल किए जाने के लिए वित्तीय मानदंडों के बारे में सिफारिश करने का कार्य सौंपा गया है। इस समिति के अन्य सदस्य एशियाई विकास बैंक के उपाअध्यक्ष दिवाकर गुप्ता, केनरा बैंक के अध्यक्ष टीएम मनोहरन, अश्विनी पारिख एडवाइजरी सर्विस के मैनेजिंग पार्टनर अश्विनी पारिख, और इंडियन बंैक एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील मेहता हैं। सुनील मेहता इस समिति के सदस्य सचिव भी हैं।

15वें वित आयोग के अध्यक्ष एमके सिंह ने सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए अगले पांच वर्षों में पुर्न पुंजीकरण हेतु पर्याप्त सरकारी परिव्यय निर्धारित करने की आवश्यकता पर बल दिया साथ ही रक्षा क्षेत्र के लिए भी अधिक परिव्यय निर्धारित करने पर बल दिया और कोरोना महामारी के प्रभाव को दूर करने हेतु सुधार प्रक्रिया में तेजी लाने की सिफारिश की। एआईएमएके के एक समारोह में वित आयोग के अध्यक्ष एमके सिंह ने सुझाव दिया कि सरकारी बैंकों के लिए एक सुधार योजना लायी जाए। उनका मानना है कि इस क्षेत्र को अत्यधिक संरक्षण दिया गया है और 1991 में अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू करने समय ऐसा नहीं किया गया। वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए विभिन्न मंत्रालयों से परामर्श कर रहा है। बैंकिंग क्षेत्र अब तक महामारी के प्रभावों से संरक्षित रहा है और इसका प्रभाव आगामी तिमाहियों में सामने आएगा जब ऋण में चूक का प्रभाव देखने को मिलेगा। फिलहाल भारतीय रिजर्व बैंक ने दिवाला कोर्ट के प्रावधानों को निलंबित कर दिया है और ऋण के कारण हुए नुकसान के लिए बैंकों के लिए अतिरिक्त राशि उपलब्ध करायी गयी है।

ऋण और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 60 प्रतिशत होना चाहिए किंतु इसके 80 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस वर्ष बैंकों की गैर-निष्पादनकारी आस्तियों मे वृद्धि होगी और इसका कारण कोरोना महामारी है इसलिए अर्थव्यवस्था मे निवेश बढ़ाया जाना चाहिए तथा निवेश बढाने में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी और उसके बाद ही घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ सकेगा। एक आकलन के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगले दो वर्षों में ब्राहय पूंजी के रूप में लगभग 2 लाख करोड जुटाने होंगे ताकि वह धनराशि की कमी की समस्याको दूर कर सके। इन बैंकों के लिए अपेक्षित अधिकतम धनराशि सरकार से आएगी हालांकि कुछ बैंक बाजार से भी धनराशि जुटाएंगे। निजी क्षेत्र के अनेक बैंकों ने पहले ही अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पूंजी जुटाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं और इस इस बात के संकेत हैं कि सरकार कुछ कमजोर बैंकों को अग्रिम धनराशि उपलब्ध कराएगी। इसके अलावा बैंकों के विलय से बैंकों की स्थिति में सुधार आएगा।

नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन योजना के अंतर्गत लगभग 700 परियोजनाओं में 110 लाख करोड रूपए निवेश की योजना है। यह निवेश परिवहन, संचार, शहरी विकास, ऊर्जा, जल आदि क्षेत्रों मे खर्च किया जाएगा। इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र और रोजगार सृजन में लगाया जाना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था पुनरुजीवित हो सके। सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत की सफलता में इन बैंकों की प्रमुख भूमिका होगी क्योंकि आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत उद्योगों के विकास और विस्तार के लिए बैंक ही धनराशि उपलब्ध कराएंगे। यद्यपि सरकार बैंकों से आग्रह कर रही है कि वे व्यवसायों के विस्तार के लिए ऋण उपलब्ध कराएं किंतु इस बात की खबर भी आ रही है कि कुछ सरकारी बैक परंपरागत रूप से ऋण उपलब्ध करा रहे हैं और उन्हें अपनी गैर-निष्पादनकारी आस्तियों में वृद्धि की आशंका है। ऐसे समय में जब सरकार आत्मनिर्भरता पर बल दे रही है तो इस कार्यक्रम की सफलता के लिए धनराशि उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण बन जाता है।

चीन के साथ हाल ही में हुए संघर्ष में सरकार ने आयात कम करने और कुछ उत्पादों का देश में विनिर्माण करने का निर्णय किया है और इसके लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होगी तथा इस संबंध में बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर विवेकपूर्ण ढंग से ऋण दिए जाएं तो गैर-निष्पादनकारी आस्तियों के बढ़ने की संभावना कम होगी। यदि ऋण समुचित जांच करने और राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना दिए जांए तो गैर-निष्पादनकारी आस्तियों में वृद्धि की संभावना न के बराबर रह जाएगी। ऋण स्वीकृत करने से पूर्व बैंकों को ऋण लेने वाले के पिछले रिकार्ड की अच्छी तरह जांच करनी चाहिए। गैर-निष्पादनकारी आस्तियों में वृद्धि का मुख्य कारण बड़े उद्यमों द्वारा ऋण का भुगतान नहीं किया जाना है और ऐसे उद्यमों को राजनीतिक समर्थन प्राप्त होता है।

इस बात की मांग की जा रही है कि ऐसे बड़े औद्योगिक समूहों के नाम सार्वजनिक किए जाएं किंतु इस संबंध में सरकार ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। नि:संदेह सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने जमीनी स्तर पर आम आदमी और गांवों तक बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोग अपने बैंक खातों में सब्सिडी या अन्य भुगतान प्राप्त कर रहे हैं। जन धन कार्यक्रम प्रशंसनीय है। इससे वित्तीय साक्षरता बढी है तथा आम आदमी को बैंक खाता खोलने मे सहायता मिली है। यह अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है और इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में इसे और गति दी जानी चाहिए। आर्थिक कार्यकलापों और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन में बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

                                                                                                             -धुर्जति मुखर्जी

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।