एक तरफ जहां पूरा विश्व कोविड-19 संक्रमण की वैश्विक महामारी से गुजर है। उधर स्पष्ट हो चुका है कि कोविड-19 का संक्रमण जंगली जानवरों के मांस के सेवन से मानव समाज में आया था। आज आम आदमी से लेकर सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए राजनेता भी इस संक्रमण के आगे बेबस हैं। इन सबके बावजूद कुछ देश आर्थिक लाभों के लिए अभी भी प्राकृतिक वन संपदा के साथ-साथ वन्यजीवों के शिकार के परमिट खुली बोली प्रक्रिया के माध्यम से दे रहे हैं जो कि शर्मनाक है।
आपने बोत्सवाना का नाम सुना ही होगा, यह अफ्रीका महाद्वीप में स्थित एक देश है। इसने अपने सत्तर हाथियों को ट्राफी हंटिंग के लिए मारने का लाइसेंस अभी-अभी बेच दिया है। लाइसेंस खरीदने वाले अब हाथियों के झुंड में से अपने पसंदीदा हाथी को मारकर उसके दांत को अपने ड्राइंगरूम में सजाने के लिए रख सकेंगे। हाथीदांत की सबसे ज्यादा जरूरत हाथियों को है। उससे ज्यादा और कोई हाथीदांत के महत्व को नहीं समझ सकता। लेकिन, हाथीदांत के लिए सदियों से ही हाथियों को मारा जा रहा है। इसके दांतों का आकार भी बड़ा होता है। बोत्सवाना में हाथियों की बड़ी आबादी रहती है। सरकार ने इनके शिकार पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। लेकिन, यह प्रतिबंध पिछले साल हटा लिया गया। इसके साथ ही अब ट्राफी हंटिंग के लिए सत्तर हाथियों को मारने का लाइसेंस भी जारी कर दिया गया। बहाना तो यह है कि इन्हें मारने से मिलने वाले पैसे को वन्यजीवों के संरक्षण में ही खर्च किया जाएगा।
लेकिन, यह तर्क कितना खोखला है कि वन्यपशुओं को मारने से मिलने वाले पैसे में वन्यपशुओं के लिए जीवन खरीदा जा रहा है। हाथी एक खास किस्म के सामाजिक प्राणी होते हैं, बच्चे अपने बड़ों से सीखते हैं। ट्राफी हंटिंग में जाहिर है सबसे अच्छे और बड़े आकार के हाथियों को मारने की कोशिश की जाएगी। ऐसे में बच्चे अपने बड़ों के अनुभवों से सीखने से वंचित हो जाएंगे। ऐसे में हाथियों की अगली पीढ़ी को कितना ज्यादा नुकसान होगा, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। जानवरों की निर्मम हत्या का सिर्फ बोत्सवाना तक ही सीमित होती है। यह एशिया से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक फैला हुआ है। एशिया में पाकिस्तान द्वारा हाऊबारा बस्टर्ड विशालकाय जमीन पर रहने वाले पक्षी के शिकार की अनुमति खाड़ी देशों के राजकुमारों के लिए दी गई है। यह पक्षी आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल है। खाड़ी देशों के राजकुमारों के लिए यह परमिट जारी करने का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक हित ही है। इसके माध्यम से पाकिस्तान उन्हें खुश कर कुछ आर्थिक मदद की आस लगाए बैठा है।
इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया द्वारा उंटो के शिकार की परमिट दी गई है वही कोरिया और जापान व्हेल मछली को तेल और मांस के लिए मारने में प्रयासरत हैं। बड़े पैमाने पर सिर्फ आर्थिक हितों के लिए जानवरों का शिकार करना कितना उचित है यह आप भली-भांति समझ सकते हैं। निश्चित तौर पर वैश्विक समुदाय द्वारा संबंधित देशों पर कठोर कदमों के उठाए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में जहां एक तरफ जनसंख्या विकास, औद्योगिक प्रगति, नगरीकरण आदि के कारण इनके प्राकृतिक आवासों का विनाश किया जा रहा है जिससे कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं तथा कई विलुप्त होने के कगार पर हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम विकास कार्यक्रमों को इस प्रकार आगे बढ़ाएं जिससे प्राकृतिक पर्यावरण की क्षति कम-से-कम हो।
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