मजबूर लोगों से मुनाफे के नाम पर लूट क्यों

Why Rob in the name of profit from helpless people
भारत आदिकाल से धर्मों शास्त्रों का पठन पाठन करता आ रहा है इन शास्त्रों से हर भारतीय खुद व बच्चों को दया, ईमानदारी, सच बोलना, परेशानी में फंसे मनुष्य की मदद करना, जीव-जन्तुओं को नहीं सताना प्रकृति को सहेजना जैसी बहुत सी बातें सीखता व सिखाता आ रहा है। परंतु विगत कई दशकों से भारतीयों में धर्म भ्रष्टता बढ़ रही है जोकि बेहद निर्लज्ज व नीच किस्म की हो रही है। इस निर्लज्जता के चलते यहां भारतीय घर, दुकान, सार्वजनिक दुकानों पर बहुत पूजा-पाठ करते दिखते हैं लेकिन अर्न्तमन से निपट कपटी व भ्रष्ट हो रहे हैं। धर्म व पूजा के नाम पर कारोबार तो यहां आम हो गया है वहीं देश व विदेशों तक में भारतीय अब अजीब एवं घटिया व्यवहार भी करने लगे हैं, वह है आफत में फंसे लोगों से मुनाफा कमाना।
कनाडा में कई भारतीयों ने अपने स्टोरों पर रखे माल का रेट दोगुना-चौगुना लिख दिया चूंकि लोगों में भय फैल गया कि कोरोना वायरस कि वजह से अगर कई दिनों तक कारोबार ठप्प हो गया तो वह क्या खाएंगे। स्वभाविक है लोग कम से कम तीन चार सप्ताह का राशन घर के लिए खरीद रहे हैं, परन्तु अफसोस धर्म स्थानों पर दान करने वाले, हर किसी को जरूरत के वक्त मदद का वादा करते रहने वाले लोग अब एकदम व्यवसायी हो बैठे और रातों-रात घर भर लेने की घटिया सोच के चलते दाम बढ़ा दिये। ये भी नहीं सोचा कि उनके स्टोर में बच्चों का दूध, ब्रेड, बुजुर्गों के दलिया, जूस, फ्रूट हैं, जो युवा घर चलाते हैं उनके भोजन का सामान है, बस मुनाफा कमाना है।  ईधर देश में मेडिकल स्टोरों पर रखे मास्क, सैनेटाईजर रातों-रात तीन से चार गुणा मूल्य के हो गए। गर्मी आते ही यही ढोंगी व पाखंडी भंडारे लगाने वाले, मदद का दम भरने वाले लोेग गर्मी आते ही बूंद-बूंद पानी को चांदी के भाव बेचने लगते हैं।
पिछले साल हिमाचल में शिमला के पास एक ईमारत का मलबा सड़क पर गिरा, दो दिन रास्ता बंद हुआ। मजबूरों से कमाई का हुनर रखने वालों ने पानी की बोतल 200 रुपये लीटर बेची, ढाबे वालों ने दाल-चावल की प्याली का रेट 250 रूपये कर दिया। पता नहीं क्यों यह घटियापन भारतीयों में बढ़ रहा है। केदारनाथ में बाढ़ आई, लोग लाशों पर से सोना व कपड़े लूटने दौड़ पड़े, जो श्रद्धालु बच गए उन्हें भोजन व पानी के लिए हजारों रूपये स्थानीय लोगों को चुकाने पड़े, कारोबार के नाम पर मजबूर को लूटने का यह कारोबार होने लगा है। भारतीय कभी भी मजबूरों से कमाई नहीं करते थे। परंतु जब से लोगों ने बैंकों में, सोने में, आलीशान घरों में धन का निवेश करना शुरू किया है, तब से बहुत से लोग इस ताक में रहने लगे हैं कि कब आफत टूटे और वे कमाई करें।
भारतीयों को मजबूर लोगों से कमाई करने का घटियापन छोड़ना चाहिए। यह कोई मुश्किल भी नहीं है, बस यही सोचना है कि जब कोई तकलीफ में हो भले उसे कुछ दे नहीं सकें तो उसे लूटेंगे भी नहीं। देश के व्यापारिक संगठनों, व्यापारिक एसोसिएशनों को चाहिए कि वह अपने-अपने बाजारों में इस पर मंत्रणा करें और निर्णय करें कि वह आफत में देश व देशवासियों के साथ खड़े होंगे, किसी मजबूर को मुनाफे के नाम पर नहीं लूटेंगे। क्योंकि यह धार्मिक चन्दे की रसीद कटवाने या दूर धर्म स्थानों पर भंडारा करने से ज्यादा फलदायी है।

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