चापलूस, बकवासी व झूठे मीडिया वर्ग को क्यों सुनना

Why listen to sycophants, rubbish and false media
मुंबई में एक न्यूज चैनल के संपादक पर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पर विवादित टिप्पणी करना व घटना के बाद संपादक पर हमला दोनों घटनाएं ही चिंताजनक हैं। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं। उक्त मामला मीडिया और राजनीति के बीच ईमानदार समन्वय नहीं होने को जगजाहिर करता है। राजनीतिक दल व मीडिया संस्थाओं की आपसी खिचड़ी कोई नई बात नहीं। झूठ-मूठ की निष्पक्षता कायम रखने का प्रयास हालांकि मीडिया का स्वार्थी वर्ग करता है लेकिन वास्तविक्ता यह है कि मीडिया और राजनेताओं की सांठगांठ इतनी गहरी हो गई है कि लोगों ने टीवी चैनलों के नाम के साथ पार्टियों का नाम जोड़ना शुरू कर दिया है।
देश के आम दर्शक भी अब यह समझने में देर नहीं लगाते कि कौन सा चैनल किस पार्टी के समर्थन में व किससे ताल्लुक रख रहा है। कुछ वक्त तक खबरों को देखने के बाद दर्शक न्यूज पढ़ने वाले की मंशा को समझ जाते हैं, जिस कारण लोगों का टीवी चैनलों के समाचारों से भरोसा उठता जा रहा है। बहुत से दर्शक टीवी बंद करने लगे हैं चूंकि लोग जान गए हैं कि फलां-फलां चैनल ने तो सरकार का गुणगान ही करना है या किसी की निंदा करनी है। चुनावों के वक्त यह सांठगांठ शिखर पर पहुंच जाती है। राजनीतिक पंडित साबित करने लगे हैं कि अब चुनाव ही मीडिया के बलबूते पर लड़ा जाने लगा है, लेकिन हद तो तब हो जाती है जब कोई चैनल बिना किसी भय व गोपनीयता के एक राजनीतिक पार्टी की भांति नजर आने लगता है और किसी पार्टी विशेष की फर्जी व घुमाफिरा कर बनाई गई खबरों से निंदा करता है। पहले देश के बुद्धिजीवी इसी कारण परेशान थे कि राजनीतिक पार्टियों में आदर्श समाप्त होते जा रहे हैं, राजनीति शासन करने की बजाय सत्ता प्राप्त करने का जरिया बन गई है।
अब मीडिया भी मीडिया न रहकर राजनीतिक पार्टियों का एक विंग बन जा रहा है। चैनल पर एक एंकर मुलाकात के दौरान किसी नेता से सवाल पूछने की बजाय उस नेता को लतियाने का प्रयास करते हैं और जब वे नेता को लपेटे में लेते हैं तब अपनी आका पार्टी के नेता से शाबाशी के फोन की उम्मीद करते हैं। अब बहस में पक्ष इस नजरिये से लिया जाने लगा है कि जवाब एंकर की पसंद का हो। राजनीतिक चम्मचागिरी के अलावा मीडिया का यही वर्ग व्यवसायिक जगत एवं अध्यात्मिक जगत के लोगों को भी बदनाम करने का निर्लज्ज प्रयास आए दिन करता रहता है। मीडिया का ये स्वार्थी वर्ग भले खुद अच्छी खासी काली कमाई कर रहा हो, लेकिन देश व समाज का ये बहुत घात कर रहा है। देश के आमजन को ही यह तय करना होगा कि वह एक तरफा, चापलूस, झूठे, बकवासी मीडिया वर्ग को सुने ही क्यों।
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