AQI Delhi: दुनिया के एक बड़े क्षेत्र में हमने फिर से बाजी मार ली है। इसके लिए हम किसी को बधाई तो नहीं दे सकते, लेकिन सोचने के लिए मजबूर जरूर हो सकते हैं। अब जिस क्षेत्र में हम पूरे विश्व भर में अव्वल रहे हैं, वह क्षेत्र है वायुमंडलीय प्रदूषण। बदलते मौसम के कारण बनी परिस्थितियों हो या फिर खुद मानव द्वारा ऐसी स्थिति बना दी गई हो। पर आज हम प्रदूषण के मामले में नंबर वन बन गए हैं।
दिवाली के एक दिन बाद दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 999 तक पहुंचना किसी विश्व रिकॉर्ड से कम नहीं है। ऐसा भी तब हुआ जब पूरे देश भर में ग्रीन पटाखे को छोड़कर सभी प्रकार के पटाखे बनाने बेचने व फोड़ने पर पाबंदी लगी थी। लेकिन जरा सोचिए क्या ऐसा किया गया? जवाब मिलेगा नहीं। पटाखे फोड़ने वालों पर कितनी कार्रवाई हुई? इस पर भी अभी चुप्पी है। Air Quality Index
वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 रहा
हाँ इस दौरान पराली जलाने वाले किसानों पर जरूर कार्रवाई हुई है। यहां एक बात समझ में नहीं आ रही की पराली सिरसा में जलाई जा रही थी और वायु का गुणवत्ता स्तर दिल्ली का खराब हुआ। वह भी गंभीर स्थिति से कहीं ऊपर उठकर@999। पर्यावरण विज्ञान व मेडिकल साइंस भी यह कह रही है कि यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 से ऊपर है तो वह गंभीर श्रेणी में आता है तो जिस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 रहा, वहाँ के लोग कैसे जी पाए? कैसे उन्होंने सांस लिया होगा? सोचने की बात है। पर यहाँ यह बात भी ध्यान रहे मीडिया में जो दिखाया जाता है या छपता है, वह जिस वक्त वायु गुणवत्ता सूचकांक अधिकतम होता है। उस वक्त के आंकड़े बताए हुए छापे जाते हैं।
बदलता रहता है वायु गुणवत्ता सूचकांक
भौगोलिक प्रक्रिया के अनुसार वायु गुणवत्ता सूचकांक कभी भी स्थिर नहीं रहता। वह एक मिनट के अंतराल में बदलता रहता है। यदि इतनी गंभीर स्थिति जहरीली हवा की स्थाई रूप से 24 घंटे भी बन जाए तो मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन मंथन इस विषय पर करने की जरूरत है कि आखिर प्रदूषण बढ़ क्यों रहा है? सरकारों से लेकर देश के सुप्रीम कोर्ट तक इस विषय पर चिंता जाहिर कर चुके हैं, लेकिन उसके बावजूद भी वायुमंडलीय प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। इसकी वास्तविक स्थिति पर शोध करने की जरूरत है।
वायुमंडलीय प्रदूषण पर हो चुके शोध | Air Quality Index
भारत का आईआईटी कानपुर व यूएसए के विश्वविद्यालय इस दिशा में शोध भी कर चुके हैं, लेकिन उस शोध में जो सामने आया उस पर काम करने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा। भारत में सरकारी विभागों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की नॉन गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन प्रदूषण रोकने की दिशा में काम कर रही है। पर उनका यह काम कागजों से बाहर निकले तब जाकर बात बने।
नहीं तो यह वायु प्रदूषण इसी प्रकार से बढ़ता रहेगा और मानव जीवन इसी प्रकार खतरे में पड़ता रहेगा। यदि ऐसा ही रहा तो भविष्य में भारत में अस्थमा व श्वांस के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाएगी। इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे भ्रूण पर भी इस वायु प्रदूषण का सीधा असर पड़ेगा। यही कारण है कि दिल्ली सरकार ने एक एडवाइजरी जारी कर मॉर्निंग में इवनिंग वॉक सहित फिजिकल एक्सरसाइज भी न करने की सलाह दी है। विशेष कर गर्भवती महिलाओं को अपने घरों में ही रहने के लिए कहा गया है। लेकिन ऐसा कब तक होगा?
आमजन को समझना होगा | Air Quality Index
जब तक आमजन नहीं समझेगा, तब तक भारत में प्रदूषण इसी प्रकार फैलता रहेगा। इस दिशा में जहाँ भारत सरकार के प्रदूषण नियंत्रण विभाग व राज्य सरकारों के प्रदूषण नियंत्रण विभाग को काम करने की जरूरत है। सिर्फ नियम बनाने से काम नहीं चलने वाला, बल्कि से मूर्त रूप से कड़ाई से लागू करना होगा। ऐसा कब तक होता रहेगा कि देश का सुप्रीम कोर्ट आदेश देता रहेगा और तब जाकर सरकारें जागती रहेंगी। दिल्ली की केजरीवाल सरकार का सबसे बड़ा उदाहरण सामने है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पर प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए जब केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कहा कि हमें सिर्फ आपके आदेशों का इंतजार है।
तब सुप्रीम कोर्ट ने फिर से टिप्पणी करनी पड़ी कि हमारे आदेशों का ही इंतजार क्यों? सरकार अपने स्तर पर खुद भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए आगे बढ़ सकती है। इस बात में कोई दो राय नहीं देश की राजधानी दिल्ली में जिस क्षेत्र में केंद्रीय मंत्रालय, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन तथा मंत्रियों व सांसदों के निवास स्थान है, वहाँ इतनी स्वच्छता रहती है कि कहने सुनने से पर की बात है। यदि इतनी ही व्यवस्था सभी स्थानों पर की जाए तो प्रदूषण का नामों-निशान तक मिट सकता है। पर इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति का होना व ब्यूरोक्रेसी में उस कानून को लागू करने की चाहत होनी जरूरी है।
तम्बाकू का कहीं जिक्र नहीं!
सबसे खास व चिंता की बात है कि सरकार ने अगरबत्ती व मच्छर भगाने वाली क्वायल जलाने पर तो रोक लगा दी। लेकिन जिस धूम्रपान से (बीड़ी, सिगरेट व तंबाकू से खतरनाक प्रदूषण फैल रहा है, उसका कहीं जिक्र नहीं है। क्या बीड़ी सिगरेट में विभिन्न प्रकार का तंबाकू ऑक्सीजन देता है? ऐसा नहीं है। पर यह सब सरकार को रेवेन्यू प्रदान करते हैं। आखिर इन पर रोक लगे भी कैसे? बीड़ी-सिगरेट का स्वास्थ्य विभाग से लेकर सरकारों को भी पता है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
तम्बाकू कैंसर को बढ़ावा देता है | Air Quality Index
सिगरेट के पैकेट पर सिर्फ यह लिख देने से कि तंबाकू के सेवन से कैंसर होता है, क्या प्रदूषण रुक जाता है? क्या इसे गंभीर बीमारियां रुक जाती हैं? ऐसा भी नहीं है। आखिर इसके पीछे वजह क्या है? इस पर गंभीर मंथन करने की जरूरत है। जब अगरबत्ती पर रोक लगा सकती है तो बीड़ी सिगरेट व तंबाकू पर क्यों नहीं? यह सबसे बड़ा सोचने का सवाल है?
डॉ संदीप सिंहमार।
व्यंग्य लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।
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