असम में अंतरराष्टÑीय रजिस्टर आॅफ सिटीजन की दूसरी लिस्ट में 40 लाख लोगों को भारतीय नहीं माना गया। यह समाचार आते ही पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सूची में संशोधन करने की मांग की है। बात साफ है कि आगामी वर्ष लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। बांग्लादेशियों की वोटों का मामला है। इसलिए बयानबाजी होगी लेकिन मामले का हल तब तक नहीं निकलेगा जब तक समस्या को ईमानदारी के साथ नहीं समझा जाता। यह मामला इस कारण भी पेचीदा बन गया है कि गैर कानूनी तौर पर दाखिल हुए लोगों को आधी सदी का समय बीत गया है।
यह लोग केवल मतदाता ही नहीं बने बल्कि पंचायतों से लेकर विधानसभा के सदस्य भी बन गए हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ममता बनर्जी पर देश की सुरक्षा को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन सिर्फ सुरक्षा का मुद्दा उठाने के साथ इस समस्या की सही व्याख्या नहीं की जा सकती।
अगर 40 लाख लोग भारत के लिए खतरा न भी हों, फिर भी इतनी बड़ी संख्या लोगों को देश, जगह व सुविधाएं देनी देश की योजनाबद्धी के लिए चुनौती है। सीरीया व कई अन्य देशों पर हो रही हिंसा से परेशान हुए लाखों लोग अमेरिका व दर्जनों यूरोपीय देशों में गैर-कानूनी तौर पर दाखिल हो रहे हैं।
इन देशों में दाखिल हो रहे लोगों पर कोई सुरक्षा का खतरा नहीं फिर भी रोका जा रहा है। कारण वहां की सरकारें नई आबादी के लिए सभी आवश्यक प्रबंध नहीं कर सकती। इसलिए असम के मामले में न तो सिर्फ सुरक्षा का शोर मचाना सही है व न ही बांग्लादेश से आए लोगों की वोटों का मोह करना उनकी आंखें बंद कर समर्थन करना सही है। गैर-कानूनी प्रवासी भारत से लेकर अमेरिका तक की समस्या है, जिससे निपटने के लिए दूर-दृष्टि से विभिन्न देशों को मिल बैठ कर इस समस्या का हल निकालना चाहिए।
रोहिंग्या के मामले के प्रकाश में भी इस बात का हल निकाला जा सकता है। भूटान से निकाले गए रोहिंग्या को आखिर बांग्लादेश ने वापिस लेने की घोषणा कर दी है। रोहिंग्या-बांग्लादेश से अन्य देशों में गैर-कानूनी तौर पर दाखिल हुए हैं। गैर-कानूनी प्रवास के बावजूद इस मामले का एक मानवीय पहलु भी है, जिस संबंधी सोचने की जिम्मेवारी भारत सहित बांग्लादेश व संयुक्त राष्टÑ की भी है। राजनीतिक पार्टियों को इस गंभीर मुद्दे पर अपने स्वार्थ साधने से बचना चाहिए। केन्द्र व राज्यों की राजनीतिक पार्टियां ईमानदारी के साथ इस मामले पर विचार करें।
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