एक सज्जन बड़े ही दानी थे। उनका हाथ सदा ही ऊँचा रहता था, परंतु वे किसी को नजर उठाकर नहीं देखते थे। एक दिन किसी ने उनसे पूछा, ‘‘आप सबको इतना दान देते हैं, फिर भी आँखें नीची क्यों रखते हैं? चेहरा न देखने से आप किसी को पहचान नहीं पाते, इसलिए कुछ लोग आपसे दोबारा भी ले जाते हैं।’’
इस पर दानी व्यक्ति ने कहा :
देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरैं ताते नीचे नैन।
अर्थात देने वाला तो कोई दूसरा यानि भगवान ही है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। लोग मुझे दाता कहते हैं। इस शरम के मारे मैं आँख नहीं उठा पाता।
सलाह देने वाले को समझ में आ गया कि दान देकर मिथ्या अभिमान करने वाला सच्चा दानी (True donor) नहीं होता।
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