राजनीति: राजनीतिक दांवपेंच ने दोस्तों और दुश्मनों को सकते में डाला
नई दिल्ली। नीतीश कुमार ने महज 16 घंटे में पहले इस्तीफे और फिर शपथ लेकर जो रिकॉर्ड बनाया है, वैसा उदाहरण भारतीय राजनीति में दूसरा नहीं दिखता। बिहार के इस राजनीतिक घटनाक्रम से सवाल उठ रहे हैं कि अगर नीतीश को जदयू से नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाना ही था, तो उन्होंने खुद इस्तीफा क्यों दिया, जबकि उनके पास तेजस्वी यादव को बर्खास्त करने का ज्यादा आसान विकल्प था? दरअसल इसके पीछे भी एक बड़ा राजनीतिक संदेश छिपा है। नीतीश राजद को पीड़ित बनने का मौका देने के बजाय खुद को त्यागी दिखाना ज्यादा फायदे का सौदा समझते थे, इसीलिए उन्होंने सबको चौंकाते हुए अपने इस्तीफे का दांव चला।
तेजस्वी का इस्तीफा या बर्खास्तगी का था इंतजार
भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर जब जदयू और नीतीश ने कड़ा रुख अख्तियार किया तो ये साफ हो गया था कि या तो तेजस्वी यादव खुद इस्तीफा देंगे या फिर नीतीश उन्हें बर्खास्त करेंगे। बुधवार की शाम को जब जदयू ने अपने विधायक दल की बैठक बुलाई, तब सबको इसी खबर का इंतजार था कि नीतीश ने तेजस्वी को बर्खास्त कर दिया। लेकिन नीतीश ने सबको चौंकाते हुए खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
बिना इस्तीफा भी बच जाती सरकार
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक नीतीश जब राजद से अलग होने का फैसला कर चुके थे तो उनके सामने दो विकल्प थे या तो वो तेजस्वी को बर्खास्त करते या फिर खुद इस्तीफा देते। दोनों ही स्थितियों में उन्हें भाजपा का समर्थन मिलता और सरकार बची रहती। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने दूसरा विकल्प चुना, क्योंकि इसके दो राजनीतिक फायदे थे।
नीतीश ने बढ़ा लिया अपना कद
तेजस्वी को बर्खास्त करने की बजाय जब नीतीश खुद इस्तीफा देने राजभवन पहुंच गए तो उन्होंने एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने में कामयाबी हासिल की कि वो भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करेंगे भले ही इसके लिए उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़े। नीतीश ने राजभवन के बाहर आकर जो बयान दिया वो भी उनके राजनीतिक एजेंडे के बारे में बहुत कुछ कह जाता है। रही सही कसर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन ट्वीट्स ने कर दी, जिसमें उन्होंने नीतीश को उनके इस्तीफे के लिए बधाई दी।
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