राजनीति में अपने बयानों से सक्रिय रहने वाले नेता कोई मौका नहीं छोड़ते। वह हर मौके पर अपना चर्चित होना ढूंढते रहते हैं जबकि सच्चाई यह है कि राजनीतिक मसलों संबंधी विचार-चर्चा, बुद्धिमता, गंभीरता व संयम की मांग करती है। भाजपा नेता सुब्रमन्नयम स्वामी ने अपनी इस पैंतरेबाजी के तहत इमरान खान की ताजपोशी मौके पाकिस्तान जाने वालों आतंकवादी करार दे दिया है। अगर ऐसी बयानबाजी के साथ हिंद-पाक के मामले सुलझते हों या पाकिस्तान का कोई नुक्सान होता हो तो फिर विदेश सचिवों की बैठकों, राजदूतवासों के खर्च सब व्यर्थ ही हैं। स्वामी के कहने से कुछ बदलने वाला नहीं लेकिन वह अपने आप को चर्चित जरूर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इमरान खान को फोन कर जीत की बधाई दी है। वैसे भी नई राजनीतिक शुरुआत पर नए हालातों का इंतजार करना पड़ता है।
स्वामी इस तरह बयानबाजी कर रहे हैं जैसे हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के साथ राजनीतिक संबंध ही खत्म हो गए हों। विवादित बयानबाजी करने वाले नेता कुछ क्षणों में किसी को देशभक्त व किसी को आतंकवादी का दर्जा दे देते हैं। पाकिस्तान के साथ बुरे संबंधों के बावजूद भारत किसी अच्छे भविष्य से निराश नहीं। सीमाओं पर अमन से पहले बातचीत न करने का हिंद का अपना निर्णय है जो जायज है फिर भी किसी व्यक्ति से रोशनी की किरण जगे तब भारत पीछे हटने वाला नहीं। विचारों की आजादी के नाम पर अनाप-शनाप बोलना देश की छवि को खराब करता है। कम से कम संसद में पहुंचे लोगों को संवैधानिक पदों की मर्यादा का ख्याल जरूर रखना चाहिए। सिद्धांतों की बातें करने वाली पार्टियां अपने नेताओं के लिए आदर्श आचरण भी लागू करें ताकि किसी भी राजनेता की बात के लिए देश को कसौटी न बनना पड़े। पार्टियां अपने नेताओं के बयानों को उनके निजी बयान कहकर अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। यह लिखना भी गलत नहीं कि देश में बहुत से दंगे-फसाद की वजह भड़काऊ व विवादित बयान ही हैं। छोटी चिंगारी ही बड़ी आग का रूप धारण करती है।
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