दिल्ली के किरानी क्षेत्र में एक बहुमंजिला रिहायशी इमारत में आग लगने से 9 लोगों की मौत हो गई। इमारत की निचली मंजिल में गर्म कपड़ों का स्टोर था जिसके कारण आग लगी। यह बेहद दु:खद घटना है लेकिन देश में नागरिकता कानून व कई अन्य मुद्दों के कारण इस प्रकार की घटनाएं खबरों में सुर्खियां नहीं बन पाती। वास्तव में दिल्ली आग लगने या बहुमंजिला इमारतों के गिरने की राजधानी बन गई है, जहां कुछ दिनों बाद ऐसी कोई न कोई घटना हो जाती है। ऐसा लग रहा है कि सरकारों ने अब इस प्रकार की घटनाओं को रूटीन की घटनाएं समझ लिया है? मुआवजा देने की घोषणा कर पीड़ितों का मुंह बंद करवा दिया जाता है और फिर ऐसी घटनाओं के दोबारा घटने की कोई परवाह नहीं की जाती।
गत दिवस दिल्ली के अनाज मंडी क्षेत्र में हुए हादसे से सबक नहीं लेने का परिणाम यह है कि अब किरानी क्षेत्र में हादसा हो गया। अनाज मंडी में आग लगने से 50 व्यक्तियों की मौत हो गई थी। होना तो यह चाहिए था कि अनाज मंडी की घटना के तुरंत बाद अवैध रूप से बनी इमारतों या अवैध भंडारण को रोका जाता लेकिन विडंबना है कि सरकार व अधिकारियों ने यह नहीं सोचा कि इसके बाद भी कोई आगजनी की घटना घट सकती है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक हाजिर-जवाब हैं और वे कई मामलों में जनता की बेहतरी में बड़ी रुकावट एलजी के दखल को मानते हैं लेकिन दिल्ली स्थित इमारतों व फैक्टरियों की खामियों के खिलाफ कार्यवाही करना हालांकि दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के अधीन है।
15 दिनों में 52 व्यक्तियों की मौत हो गई जो आम आदमी पार्टी की सरकार पर सवाल खड़े करती है। देश की राजधानी में ऐसीं दुर्घटनाएं होना राजधानी की शान को कमजोर करता है। दुनिया भर में दिल्ली को गंदा महानगर माना जाता है। इसी तरह वायु प्रदूषण में भी महानगर की साख गिरी है। अब दिल्ली आए दिन के अग्निकांड के कारण ‘मौत नगरी’ बनती जा रही है। सरकार को तुरंत सुरक्षात्मक उठाने चाहिए। महानगरों की सुंदरता की अपेक्षा सुरक्षा कहीं अहम मुद्दा है। मुआवजा देने के बाद मामले के समाधान पर चुप्पी साधने की औपचारिकताओं से अब तौबा हो और भयानक हादसों के होने पर सरकार संवेदनशीलता का प्रमाण दे व अपने कर्तव्यों को निभाए।
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Why are the lessons not being taken