कांग्रेस की ‘खुदकुशी’ कौन रोकेगा?

Who will stop the Congress' suicide

कांग्रेस की खुदकशी कौन रोकेगा? कब तक कांग्रेस खुदकशी के रास्ते पर चलेगी? प्रदेशों में खुदकशी पर खुदकशी कर रही है कांग्रेस। हर कांग्रेसी का अपना-अपना राग है। एकजुटता और एक लाइन में खड़ा होना कांग्रेसी कब के भूल चुके हैं। 

बहुसंख्यक वर्ग को आपने अपना दुश्मन मान लिया है। भाजपा से बहुंसख्यक वर्ग को वापस लाने की कोई राजनीतिक नीति कहां है? आपको अरविन्द केजरीवाल से सीख लेने की जरूरत है। अरविन्द केजरीवाल ने हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा पढ़ कर भाजपा की हिन्दुत्व की शक्ति को हीन कर दिया और आपके जैसा हिन्दुत्व को ही कोसने और अपमानित करने का काम नहीं किया।

कांग्रेस की खुदकशी कौन रोकेगा? कब तक कांग्रेस खुदकशी के रास्ते पर चलेगी? प्रदेशों में खुदकशी पर खुदकशी कर रही है कांग्रेस। हर कांग्रेसी का अपना-अपना राग है। एकजुटता और एक लाइन में खड़ा होना कांग्रेसी कब के भूल चुके हैं। कभी कांग्रेस का कोई शीर्ष नेता कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाता है, कांग्रेस को पहले जैसा सक्रिय करने की कोशिश करता है तो फिर दूसरा-तीसरा, चौथा कांग्रेसी नेता उस पर पानी फेर देता है। तेजाबी, हिंसक और आत्मघाती बयानबाजी भी कहां रूकती है। खुशफहमी भी कहां रूकती है। खुशफहमी का ऐसा प्रदर्शन कि हम तेजाबी, हिंसक और आत्मघाती बयानबाजी करेंगे, फिर भी जनता उन्हें वोट डालने के लिए मजबूर, बाध्य और नतमस्क है। सत्ता से दूर होना इन्हें स्वीकार नहीं है, सत्ता काल की मानसिकता से अलग होना इन्हें स्वीकार नहीं है, व्यवहार ऐसा कि मानो वे अभी भी केन्द्रीय सत्ता पर बैठे हैं।

ये अभी भी नरेन्द्र मोदी को अपशब्द कहने, अपमानित करने, हिंसक वाक्य विन्याश गढ़ने से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। जबकि यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेसी नरेन्द्र मोदी को जितना अपशब्द कहते हैं, जितना अपमानित करते हैं, जितना हिंसक वाक्य विन्याश गढ़ते हैं, उतना ही नरेन्द्र मोदी मजबूत होकर उभरते हैं, उतना ही अधिक जनादेश प्राप्त कर सामने आते हैं। इन सब कारणों से कांग्रेस के आम कार्यकर्ता बेबश हैं, लाचार है जबकि कांग्रेस के नेता भी दिग्यभ्रमित हैं, उन्हें तो यह मालूम ही नहीं होता कि कब उनके राजनीतिक मुद्दे और राजनीतिक अभियान पर कौन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पानी फेर देगा, यह निश्चित नहीं है। जब अनुशासन की बागडोर कमजोर होती है, विचार धारा जब स्पष्ट नहीं होती हैं, सक्रियता के राजनीतिक मुददों पर लाभ-हानि का विचार नहीं होता है तब कोई राजनीतिक संगठन कमजोर ही होता है, लगातार पतन की ओर ही जाता है, चुनावों में हार को ही प्राप्त करता है। कांग्रेस में ऐसा ही होता चला आ रहा है।

अभी-अभी दिल्ली में कांग्रेस शुन्य की कमजोर स्थिति तक पहुंच गयी। दिल्ली जहां पर कांग्रेस का पन्द्रह साल तक शासन रहा था, जहां पर कांग्रेस के विरासत में विकास की बहुत बडी राजनीतिक पूंजी थी वहां पर कांग्रेस का शून्य तक पहुंच जाना बहुत बड़ा वैचारिक प्रश्न खड़ा करता है, कांग्रेस की जड़ों में ही कमजोरी को स्पष्ट करता है और यह संकेत देता है कि कांग्रेस के अंदर में कमजोरियों को दूर करने के लिए अभी तक कोई सीख विकसित नहीं हुई है। लोकतंत्र में ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है कि राजनीतिक शून्यता को प्राप्त करने के बावजूद भी खुशियां मनायी जाती है, खुशियां व्यक्त की जाती है।

क्या यह सही नहीं कि दिल्ली में अपनी हार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता खुश थे। कोई कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यह कहता है कि हमें तो भाजपा को सत्ता में दूर होने पर खुशी है, कोई कांग्रेसी नेता कहता है कि हमें तो अरविन्द केजरीवाल की जीत पर खुशी है। भाजपा सत्ता लूटने में असफल रही, यह तो सच है पर अरविन्द केजरीवाल की जीत पर आपको क्या प्राप्त हुआ? अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस सत्ता को ही हरा कर अपनी सत्ता कायम की थी। अब तो अरविन्द केजरीवाल जितना मजबूत होगा उतना ही आप यानी कांग्रेस कमजोर होगी? सबसे बड़ी बात यह है कि जब आपको अरविन्द केजरीवाल की जीत पर खुशी है तो फिर दिल्ली में आप ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और दिल्ली के प्रभारी चाको से इस्तीफा क्यों लिया? आम जनता यह समझी कि सुभाष चोपड़ा और चाको से इस्तीफा लेना मात्र बलि का बकरा बनाना जैसा ही है।

लोकतांत्रिक राजनीति में अति सक्रियता, अभियानी सक्रियता, हिंसक सक्रियता नुकसान देने वाली होती है। राजनीतिक सक्रियताओं में मुद्दे की पहचान जरूरी होती है, जिस मुद्दे पर आपकी सक्रियता है उस मुद्दे पर जनता की राय कितनी स्पष्ट है, कितनी गहरी है, यह महत्वपूर्ण होता है। इस कसौटी पर देखेंगे तो फिर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की राजनीतिक नीति और दृष्टि बहुत ही कमजोर है, आत्मघाती है, समस्या के प्रति हिंसक होने के प्रति ही संकेत देता है। दो-तीन तत्कालिक राजनीतिक मुद्दे बड़े ही महत्वपूर्ण रहें है, जिन पर कोई चाकचैबंद राय बनाने की जरूरत थी। जैसे नागरिक अधिकार संशोधन विधेयक, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और धारा 370। इन तीनों राजनीतिक मुद्दों पर कांग्रेस की अल्पसंख्यकवादी सोच विकसित हुई। धारा 370 के संशोधन का विरोध करना इन्हें भारी पड़ गया। अभी-अभी कांग्रेस ने नागरिक अधिकार संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मुददे पर कांग्रेस ने आक्रामक विरोध किया है, यह भी परिलक्षित है। ये दोनों राजनीतिक मुद्दे अभी भी गर्म हैं। पर कांग्रेस का इस पर आधारित रहना है, इस पर आधारित होकर अपनी जमीन मजबूत करने की राजनीति कितनी अच्छी है, इस पर भी नजर डालने की जरूरत होनी चाहिए।

शाहीन बाग का कांग्रेस ने समर्थन किया है। जहां-जहां हिसक प्रदर्शन हुए वहां-वहां राहुल गांधी-प्रियंका गांधी जाकर समर्थन में खड़ा हो रहे हैं। यह अच्छी बात है कि अगर किसी पर पुलिस जुल्म हुआ है, सरकार अगर किसी पर उत्पीड़न कर रही है, किसी के साथ भेदभाव कर रही है तो फिर उसका विरोध होना जरूरी है, राजनेताओं को उनके पास पहुंच कर उन्हें लाभ देना, हौसला देना भी एक अच्छी बात है। पर विरोध प्रदर्शनों को हिंसक बनाने, हिंसा को हथकंडा बनाना, राष्ट्रीय संपत्ति का नुक्सान करने की मानसिकता पर खामोशी पसार लेना भी अस्वीकार है।

यह सही है कि भाजपा लगातार अपने पतन की ओर जा रही है, वह लगातार प्रदेशों में हार रही है। पर कांग्रेस भाजपा के विकल्प के तौर पर खड़ी क्यों नहीं हो रही है? महाराष्ट, झारखंड जैसे प्रदेशों में जहां भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी वहां पर भी कांग्रेस प्रथम स्थान हासिल क्यों नहीं कर पायी, वहां क्षेत्रीय दलों की लटकन क्यों बन गयी? बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस अपनी दयनीय स्थिति से कब ऊपर उठेगी? यह कोई नहीं बता सकता। बिहार और उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की पिछलगू होना पड़ रहा है। प्रियंका गांधी का अवतार भी कांग्रेस के लिए वरदान साबित नहीं हुआ।

सबसे बड़ी बात यह है कि जो अल्पसंख्यकवादी नीति कांग्रेस ने अपना रखी है उसकी बिसात पर अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ क्यों नहीं हैं? दिल्ली में अल्पसंख्यक केजरीवाल के साथ क्यों गये? बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों में अल्पसंख्यक क्षेत्रीय दलों के साथ हैं । अल्पसंख्यक राजनीति की सीमा सत्ता तक पहुंचाने की गारंटी नहीं दे सकती है। बहुसंख्यक वर्ग की चिंता आपमें निहित नहीं है।

बहुसंख्यक वर्ग को आपने अपना दुश्मन मान लिया है। भाजपा से बहुंसख्यक वर्ग को वापस लाने की कोई राजनीतिक नीति कहां है? आपको अरविन्द केजरीवाल से सीख लेने की जरूरत है। अरविन्द केजरीवाल ने हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा पढ़ कर भाजपा की हिन्दुत्व की शक्ति को हीन कर दिया और आपके जैसा हिन्दुत्व को ही कोसने और अपमानित करने का काम नहीं किया। अगर अरविन्द केजरीवाल भी आपकी तरह हिन्दुत्व को कोसता और सरेआम अल्पसंख्यक नीति का सिरमौर बनने की कोशिश करता तो फिर दिल्ली में भाजपा को आने से कोई रोक ही नहीं सकता था। आगे भी कांग्रेस खुदकशी करती रहेगी? अभी भी कांग्रेस की प्रथम श्रेणी के नेताओं में ऐसी दूरदृष्टि ही नहीं है जो कांग्रेस की खुदकशी को रोक पाने की शक्ति रखते हों। कांग्रेस के प्रादेशिक नेता और कार्यकर्ता तो अपनी बड़ी श्रेणी के नेताओं की खुदकशी की मानसिकता के शिकार हैं।

लोकतंत्र में विरोध की राजनीति तब शक्तिशाली होती है जब भाषा सभ्य होती है, आंकडे महत्वपूर्ण होते हैं, तथ्य और मुद्दे स्पष्ट होते हैं। तथ्य और मुद्दे अगर स्पष्ट हैं तब भी रक्तरंजित भाषा और अस्वीकार भाषा लाभ हासिल करने से रोक देती है। जब कांग्रेस के शीर्ष श्रेणी का नेता कहते हैं कि हम सावरकर नहीं है जो मांफी मांग लेंगे, हम मर जायेंगे पर मांफी नहीं मांगेंगे। पर जनता देखती है कि आप सुप्रीम कोर्ट में गलत तथ्य देने पर एक बार नहीं बल्कि कई बार माफी मांग चुके हैं। फिर जनता में आपकी छवि सभ्य और मजबूत नेता की नहीं बनती है। जनता के बीच जगहसांई ही होती है। जनता के बीच कोई एक बार नहीं बल्कि बार-बार जगहसांई आपने खुद करायी है।

जब आप बोलते हैं कि बेरोजगारी से त्रस्त लोग मोदी की पिटाई करेंगे तब मोदी यह कह कर सहानुभूति लूट लेते हैं कि हम अपनी पीठ मजबूत कर रहे हैं, आप आइये और हम पर लाठियां बरसाइये। यानी आपके हथकंडे से ही आपके ऊपर वार करने में नरेन्द्र मोदी सफल हो जाते हैं। दूसरी, तीसरी और चौथी श्रेणी के कांग्रेस नेता ही नहीं बल्कि जनाधार विहीन कांग्रेसी नेता जब नरेन्द्र मोदी को अपमानित भाषा का शिकार बनाते हैं, नरेन्द्र मोदी को विनाशक कहते हैं, नरेन्द्र मोदी को हिटलर कहते हैं तब पूरी कांग्रेस पार्टी अराजक श्रेणी में खड़ी हो जाती है। कांग्रेस पार्टी एक राजनीतिक पार्टी नहीं दिखती है बल्कि अभियानी संगठन के तौर पर खडी दिखती है।

विष्णुगुप्त

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