देश की अर्थव्यवस्था मजबूत आंकड़ों के साए में भी सहमी सी दिख रही है। निर्यात घटने और व्यापार घाटा बढ़ने की आशंकाएं सामने खड़ी मुंह चिढ़ा रही हैं। पांच साल पहले जो काम 60 महीने यानी 2018 तक किए जाने थे, अब वे 2022 तक किए जाएंगे। इतना ही नहीं, जो काम सबसे पहले होना चाहिए था, वह कार्यकाल के अंतिम दिनों में बताया जा रहा है कि हम जल्द करेंगे। देश में खेती और किसान की हालत देखकर कृषि नीति ही सबसे पहले आनी चाहिए, उस पर अब केंद्रीय वाणिज्य मंत्री कह रहे हैं कि सरकार जल्द ही नई कृषि निर्यात नीति पेश करेगी। इसके तहत निर्यात बढ़ाने के लिए कई विशेष कृषि क्षेत्र स्थापित किए जाएंगे।
साथ ही कृषि निर्यात को मौजूदा तीस अरब डॉलर से बढ़ाकर 2022 तक साठ अरब डॉलर तक पहुंचाने और भारत को कृषि निर्यात से संंबंधित दुनिया के दस प्रमुख देशों में शामिल कराने का लक्ष्य रखा जाएगा। यदि यही किसानों को संकट से उबारने का तरीका है और अर्थव्यवस्था की मजबूती का आधार है तो फिर यह काम पहले क्यों नहीं किया गया? देश की यही विडम्बना है कि यहां जो सबसे महत्वपूर्ण है, वही प्राथमिकताओं से गायब है। किसान धरती को चीरकर अनाज उगाता है, उसके उत्पादन पर सरकारें पुरस्कार जीतती हैं, अपनी पीठ ठोकती हैं, फिर भी किसान मामूली से कर्ज के पीछे अपनी जान दे देता है।
वित्तीय वर्ष 2017-18 में देश में रिकॉर्ड कृषि उत्पादन हुआ। इस समय देश में 6.8 करोड़ टन गेहूं-चावल का भंडार है। यह जरूरी बफर स्टॉक से दोगुना है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है। भारत का फलों और सब्जियों के उत्पादन में दुनिया में दूसरा स्थान है। देश में फलों और सब्जियों का उत्पादन मूल्य 3.17 लाख करोड़ रुपए वार्षिक हो गया है। दूध उत्पादन आबादी बढ़ने की दर से चार गुना तेजी से बढ़ रही है। चीनी का उत्पादन चालू वर्ष में 3.2 करोड़ टन होने की उम्मीद है, जबकि खपत 2.5 करोड़ टन है। दावा यह है कि यह सब इसलिए संभव हुआ, क्योंकि सरकार ने उदार कृषि निर्यात प्रोत्साहन को बल दिया।
लेकिन सवाल यह है कि इसका लाभ किसे मिला? यदि किसानों को लाभ मिला होता तो वे सड़कों पर नहीं उतरते, दिन-रात मेहनत करके जो फसल उगाई उसे सड़कों पर नहीं फेंकते, दुग्ध उत्पादक दूध सड़कों पर नहीं बहाते। जाहिर तौर पर इसका लाभ किसानों के बजाय कहीं और गया है। सरकार की मुनाफे वाली नीति के चक्र में किसान कहां गायब हो जाता है, यह बड़ा रहस्य बन चुका है। हर सरकार किसानों के लिए सब कुछ करने का दावा करती है, लेकिन तिजोरियां किसी और की भरती हैं।
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