-जब पाकिस्तान बना था उस समय पाकिस्तान के अंदर में हिन्दुओ की आबादी कोई 30 प्रतिशत के करीब थी, इसमें से कुछ लोग जो अति समपन्न थे वे विखंडन के पूर्व ही भारतीय क्षेत्र में आकर बस गये थे। लेकिन बहुत सारे हिन्दू भारत नहीं आ सके थे। आज पाकिसतान के अंदर में हिन्दू दो प्रतिशत से भी कम है। पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या का पतन क्या यह विश्वास नहीं देता कि एक इस्लामिक देश में गैर मुस्लिम आबादी के लिए कोई जगह नहीं होती है। इसके उल्टा भारत को देख लीजिये। भारत में मुसलमानों की संख्या घटने की जगह बढी है।
अभी-अभी दिल्ली में मुझे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों की एक छोटी सी बस्ती में जाने का मुझे अवसर मिला, यह बस्ती दिल्ली के प्रहलाद नगर में है जो एक अशोक कुमार सोलंकी नामक समाजसेवी ने अपनी जमीन पर बसायी है, आज से कोई नौ साल पूर्व इन्हें जंतर-मतर पर पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी मिले थे जो भूख से बिलबिला रहे थे, उनके पास आगे के जीवन के लिए कोई साधन नही था और न ही कोई आशा थी, उनका जीवन अंधकारमय ही था। समाजसेवी अशोक कुमार सोलंकी को दया आ गयी और उन्होने अपनी करोड़ों की कीमती भूमि इन्हे दान कर दिया, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इन्हें उस जमीन पर रहने के लिए प्रारंभिक जरूरी व्यवस्थाएं भी कर डाली थी।
अब इन्हें उस जमीन पर बसे हुए कोई नौ साल हो गये, ऐसे ही अन्य जगहों पर बसे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों की स्थिति है। अभी भी पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के लिए कुछ भी नहीं बदला है, हालात वैसे के वैसे हैं, इनकी बस्तियों में सरकारी सुविधा नाम की कोई चीज नहीं है, बिजली भी नहीं हैे, शौचालय भी नहीं है, सड़क भी नहीं, कोई स्कूल भी नहीं है, नालियां भी नहीं है, कहने का अर्थ है कि दिल्ली सरकार का कोई अस्तित्व ही नहीं दिखता है, सरकारों का मानवीय आधाार भी नहीं दिखता है, ये शरणार्थी हैं, शरणार्थी होने के सभी अहतार्एं पूरी करते हैं, भारत सरकार भी इन्हें घुसपैठिये नहीं बल्कि शरणार्थी मानती है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषित शरणार्थी सुविधाएं लेने के ये अधिकार रखते हैं, पर इन्हे संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषित शरणार्थी सुविधाएं क्यों नहीं मिली हैं, इसका उत्तर कौन देगा? इन्हें कौन दिलायेगा संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषित शरणार्थी सुविधाएं? ये संघर्ष करते-करते थक चुके हैं, कभी इन पर पुलिस की मार तो कभी इन पर प्रशासन की मार तो कभी इन पर जमीन माफियाओं की मार पड़ती रहती है , अब तो इन्हें जमीन माफिया भी बेघर करने पर तुले हुए हैं। ये अशिक्षित भी हैं, इसलिए शरणार्थी अधिकारों के प्रति भी इनकी जानकारी बहुत ही कमजोर है। अब तक सभी राजनीतिक पार्टियां इनके लिए किसी अर्थ की नहीं रहीं हैं।
हिन्दू शरणार्थियों की पीड़ा भी कम नहीं हैं। हिन्दू शरणार्थी कहते हैं हमने पाकिस्तान नहीं मांगा थी, जब मजहब के आधार पर पाकिस्तान बन गया, मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बना दिया गया था तब भारत और पाकिस्तान से आबादी हस्तांतरण क्यों नहीं हुआ, हमारे लिए विखंडन के पूर्व ही प्रस्तावित पाकिस्तान से भारत क्षेत्र में बसने की व्यवस्था क्यों नही हुई, हमें भेड़ियों के बीच रहने के लिए छोड़ दिया गया था।
हम लगभग 73 साल इन भेड़ियों के बीच कैसे रहे हैं, हम किस प्रकार के उत्पीड़न झेले हैं, हम किस प्रकार से प्रताड़ित हुए हैं, हमारे लाखों भाई-बहनों को किस प्रकार से अपने धर्म से विमुख होने के लिए मजबूर किया गया, अपने धर्म से विमुख होने से इनकार करने पर किस तरह से अंग-भंग किया गया, अस्मिता लूटी गयी, यह भी दुनिया से छिपी हुई बात नहीं है। ये इनके आक्रोश भर नहीं है, इस आक्रोश में सौ प्रतिशत सच्चाई है, एक मजहबी देश किस प्रकार से हिंसक होता है, किस प्रकार से अमानवीय होता है किस प्रकार से एकात्मक सोच से ग्रसित होता है, उसका प्रमाण है। विखंडन के समय कत्लेआम को कौन भूल सकता हैं।
स्वतंत्र इतिहास कार बताते हैं कि पाकिस्तान के अंदर में कोई आठ लाख से अधिक हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था, विखंडन के समय हिन्दुओं को कत्लेआम का शिकार होने या फिर अपना धर्म छोड़कर पाकिस्तान का धर्म अपनाने का विकल्प था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि लाखों हिन्दू डर कर इस्लाम को स्वीकार करने के लिए बाध्य हुए थे।
जब मैं पाकिस्तान हिन्दू शरणार्थियों की मुंह से भेड़िया शब्द सुना तब मुझे खान अब्दुल गफ्फार खान की याद आयी और उनकी चिंता और उनके शब्द याद आ गये जो मैंने इतिहास में पढा था। खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी के नाम से जाना जाता है, वे महात्मा गांधी के सहयोगी और महात्मा गांधी के सिद्धांतो के प्रति पूरी निष्ठा रखते थे और वे भारत विभाजन के विरोधी थे, उनका कहना था कि मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान कहीं से भी न्याय प्रिय वाला देश नहीं बन सकता था। सबसे पहले पाकिस्तान के खिलाफ भेड़िया शब्द का प्रयोग सीमांत गांधी ने ही किया था। उस समय महात्मा गांधी सहित अन्य नेताओं के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते हुए सीमांत गांधी ने कहा था कि हमें भेड़ियों के बीच मरने के लिए छोड़ दिया गया। जिस भेड़िया शब्द का प्रयोग सीमांत गांधी ने पाकिस्तान हुक्मरानों के लिए किया था वह भेड़िया शब्द सच साबित हुआ।
सीमांत गांधी ही नहीं बल्कि पाकिस्तान की अवधारणा में ठीक नहीं बैठने वाले का हिंसक दुष्परिणाम झेलने के लिए विवश होना पड़ा। सीमांत गांधी के अनुयायियों सहित अनेकानेक लोगों का विध्वंस हुआ। खास कर हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ, हिन्दुओं के सभी प्रतीकों को मिटाने के लिए जिहाद हुआ। यह जिहाद सिर्फ मजहबी संगठनों का नहीं था बल्कि इसके अलावा पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान की सरकार की भी बड़ी भूमिका थी। यही कारण है कि गैर मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान कब्रगाह साबित हुआ है।
प्रश्न यह नहीं है कि नये नागरिकता कानून से पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के बीच खुशी की लहर है, एक आशा का संचार हुआ है, एक पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी ने अपनी बच्ची का नाम नागरिकता भी रखा है, पाकिस्तान हिन्दू शरणार्थी द्वारा अपनी बच्ची का नाम नागरिकता रखने का प्रसंग पूरी दुनिया भर में चर्चित हुआ है पर प्रश्न यह है कि अबतक पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के प्रति संयुक्त राष्ट्रसंघ का शरणार्थी अधिनियम क्यों नहीं जागा? संयुक्त राष्ट्रसंघ इन्हें शरणार्थी के अधिकार दिलाने के लिए क्यों नहीं आगे आया?
क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ सिर्फ और सिर्फ हिंसक भस्मासुर मानसिकता वाले शरणार्थियों के आगे ही चरणवंदना करता है, उन्हें शरणार्थी अधिकार दिलाता है? पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी शांति पूर्वक रहने वाले हैं, ये हिंसा के सहचर नहीं है, ये हिंसक तौर पर किसी अन्य धर्मो के लोगों का शिकार नहीं करते हैं, ये रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह चोरी, डकैती और अन्य अपराधिक कार्य में नहीं संलग्न्न हैं, इसीलिए इनकी उपेक्षा हुई है, इन्हे शरणार्थी अधिकारों से वंचित किया गया है। मानवीय आधार पर इनकी सहायता होनी चाहिए थी। पर दिल्ली की सरकार और केन्द्रीय सरकार ने भी अभी तक कोई मानवीय पहल तक नहीं की है। अनिवार्य रूप से पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों को मानवीय सहायता की जरूरत है।
-विष्णुगुप्त
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