रूस में पुतिन से बेहतर कौन

Vladimir Putin, Agreement with Turkey

रूस की 78 फीसदी जनता ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि रूस की उन्नति और तरक्की के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को साल 2036 तक राष्ट्रपति पद पर कार्य करना चाहिए। पुतिन के राष्ट्रपति पद का दूसरा कार्यकाल साल 2024 में पूरा होने वाला था, लेकिन अब संविधान संशोधन के बाद वे साल 2036 तक पद पर बने रह सकते हंै। अगर पुतिन 2036 तक इस पद पर रह पाते हैं, तो वे रूस की सत्ता पर सबसे लंबे समय तक रहने वाले नेता बन जाएंगे। इससे पहले जोसफ स्टालिन तीन (1922-1953) दशक तक सत्ता में रहे थे।

वर्तमान संशोधन के लागू होने से पहले तक रूसी संविधान में इस बात की व्यवस्था की गयी थी कि कोई व्यक्ति लगातार दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता है। पुतिन 2000 से 2008 तक दो बार राष्ट्रपति रह चुके हैं। बाद में उन्होंने अपने नजदीकी मेदवेदेव को राष्ट्रपति पद सौंप कर, खुद प्रधानमंत्री बन गए । इस बीच संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया। पुतिन 2012 में फिर से राष्ट्रपति बने। 2018 के आम चुनाव में भी उनकी शानदार जीत हुई और वे चौथी बार रूस के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। संवैधानिक प्रावधानों के चलते 2024 के बाद पुतिन का राष्ट्रपति पद पर बने रहना मुश्किल था। लेकिन अब संशोधन प्रस्ताव के पारित हो जाने के बाद पुतिन को दो और कार्यकाल के लिए पद पर रहने की मंजूरी मिल जाएगी और वह 2036 तक राष्ट्रपति पद पर बने रह सकेंगे।

हालांकि पुतिन रूसी परंपराओं की पालना करने वाले ऐसे राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं, जो संविधान को भावुकता व जल्दबाजी में बदलने के विरोधी रहे हैं। वे अक्सर इस बात का दंभ भरते रहे हैं कि वे रूस के ऐसे इक्लौते राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने संविधान में कोई बदलाव नहीं किया। लेकिन अब कोरोना संकट के बीच उन्होंने जिस तरह से संविधान में महत्वपूर्ण परिर्वतन किए हंै, उसे देखते हुए प्रश्न यह उठ रहा है कि इन संशोधनों के जरिए पुतिन क्या प्राप्त करना चाहते हैं। एक सवाल यह भी है कि जब रूस की संसद व संवैधानिक न्यायलय ने संशोधन प्रस्तावों को पास कर दिया था, तो पुतिन को जनमत संग्रह की आवश्यकता क्यों पड़ी।

दरअसल, पुतिन जिस वक्त अपने संविधान संशोधन के विचार पर आगे बढ़ रहे थे उस वक्त उनके दिलो-दिमाग में यह सवाल जरूर रहा होगा कि साल 2024 में जब उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा तब रूस का क्या होगा। हो सकता है, पुतिन इस बात को लेकर भी शंकित रहे हो कि जिस मेहनत और लगन से उन्होंने नए रूस की रचना की है, उसको उनके उत्तराधिकारी उस रूप में बनाए रख पाएंगे या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं हो कि कमजोर नेतृत्व के अभाव में सुपर पॉवर रूस एक बार फिर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में सिमट कर रह जाए। पश्चिमी शक्तियों के साथ रूस की तनातनी को देखते हुए पुतिन की चिंता जायज भी है।

संशोधन प्रस्तावों पर जनमत संग्रह का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि संशोधनों के जरिए पुतिन देश के भीतर अपनी लोकप्रियता का अनुमान लगाना चाहते हैं। मार्च 2018 में न्यूनतम मजदूरी व पेंशन सुधार कानून लागू किए जाने के बाद पुतिन की अनुमोदन रेटिंग लगातार घट रही थी। इसके अलावा संविधान के मौजूदा प्रावधान उनके सत्ता विस्तार के विचार में कहीं न कहीं बाधा बन रहे थे, अब संशोधनों के जरिए उन्होंने उन बाधाओं को दूर कर लिया है।

हालांकि विपक्ष संशोधन प्रस्तावों व जनमत संग्रह की प्रक्रिया पर लगातार सवाल उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि अपेक्षित नतीजे हांिसल करने के लिए मतदान में धांधली की गई। विपक्ष का यह भी कहना है कि जनमत संग्रह केवल औपचारिक व दिखावा मात्र था। विपक्ष के आरोपों में कुछ सत्यता भी है। प्रस्तावित जनमत संग्रह के लिए मतदान शुरू होने से कम से कम दो सप्ताह पहले ही मास्को के कई बडे बुकशॉप पर नए संशोधनों के साथ रूसी संविधान की प्रतियां बेची जा रही थीं। ऐसे में पुतिन के पक्ष में आए मतदान के आंकडे शक के घेरे में तो आते ही हैं।

साल 1952 में सेंट पीट्सबर्ग में पैदा हुए पुतिन ने अपने दो दशकों के कार्यकाल में देशवासियों को एक ऐसा रूस दिया, जो न केवल आंतरिक और बाहरी रूप से मजबूत हुआ है, बल्कि वैश्विक परिस्थितियों को भी मनचाहा रूप देने की हैसियत रखता है। सीरियाई युद्ध में पुतिन ने जिस तरह से पश्चिमी शक्तियों का विरोध करते हुए राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दिया, इससे न केवल सीरिया में बल्कि पूरे मध्य पूर्व में रूस का प्रभाव बढ़ा। इन वर्षों में पुतिन ने चीन के साथ भी संबंध मजबुत बनाये हैं। 2014 में पुतिन ने पड़ोसी देश यूक्रेन के प्रायद्वीप क्रीमिया को रूस में मिलाकर पश्चिमी शक्तियों को बड़ा झटका दिया। टाइम मैग्जीन ने उन्हें साल 2007 में पर्सन आफ द ईयर चुना। फोर्ब्स ने उनको (2013-2016) में दुनिया का सबसे शक्तिशाली नेता माना। कुल मिलाकर कहें तो आज रूस एक हद तक अमरीकी नेतृत्व वाली दुनिया को सीधे चुनौती देने की स्थिति में आ गया है।

मार्च 2000 में जब पुतिन पहली बार रूस के राष्ट्रपति बने थे उस वक्त वे 48 वर्ष के थे, आज वे 68 वर्ष के हो चुके हैं। बीते 20 वर्षों में रूस में काफी कुछ बदला है। करवट लेती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के अनुरूप रूस को वैश्विक फलक पर पुर्नस्थापित करने में पुतिन का अहम योगदान रहा है। पुतिन की छवि एक राष्ट्रवादी नेता की है, वे रूस को दुबारा महाशक्ति बनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि संवैधानिक सुधारों के जरिए वे रूस में बेहतर लोकतंत्र और अच्छी सरकार की स्थापना करेंगे।

निसंदेह पुतिन इस समय रूस के सर्वोच्च और सर्वमान्य नेता हैं। पिछले दो दशक से वह रूस पर राज कर रहे हैं। रूस की राजनीति, उसकी अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर उनकी गहरी छाप है। जनता भी पुतिन की मुरीद है, वह चाहती है कि रूस का नेतृत्व एक ऐसे शक्तिशाली और दबंग व्यक्ति के हाथ में हो जो किसी भी सूरत में पश्चिमी देशों के सामने न झुके। पुतिन इस शर्त को पूरा करने का मादा रखते हैं। वैसे भी हाल-फिलहाल रूस की जनता के सामने पुतिन से बेहतर कोई विकल्प नहीं है।

                                                                                                               – एन.के.सोमानी

 

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