डब्लूएचओ बन गया हाथी के दांत। डब्लूएचओ को आप कागजी शेर भी कह सकते हैं। सिर्फ दिखाने के लिए ही डब्लूएचओ का अस्तित्व है, वास्तव में उसके पास न तो संकटकाल से लड़ने और संकट काल से बाहर निकलने के लिए कोई कार्यक्रम हैं और न ही सशक्त नीतियां हैं। डब्लूएचओ के बड़े-बडे अधिकारी सिर्फ अपने भाषणों और समिनारों में ही रोगों से लड़ने और रोगों से जीवन बचाने की वीरता दिखाते हैं। दुनिया के अमीर देशों के खरबों रुपए हासिल कर उनका इस्तेमाल सिर्फ एशोआराम करने और सुविधाएं भोगने के लिए करते हैं। गंभीर बीमारियों के प्रति सिर्फ रिपोर्ट का प्रकाशन मात्र से अपने कर्तव्य का इतिश्री मान लेने की खतरनाक परम्परा डब्लूएचओ में वर्षों से जारी है।
अगर ऐसा नहीं होता तो कोरोना सक्रमण जैसी गंभीर, जानलेवा बीमारी से लड़ने के लिए डब्लूएचओ के पास कोई न कोई बचाव के कारगर उपाय जरूर होते और पूरी दुनिया में जहां भी कोरोना का ताडंव जारी है वहां पर डब्लूएचओ की उपस्थिति जीवनदायनी की तरह होती। ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, स्पेन, जर्मनी आदि जहां पर कोरोना का भयंकर ताडंव जारी है, प्रतिदिन हजारों लोगों की जानें जा रही हैं, हजारों लोग नये संक्रमित पाये जा रहे हैं वहां पर डब्लूएचओ की कोई राहतकारी भूमिका नहीं है। जब कोरोना जैसी बीमारी के भयानक तांडव काल में डब्लूएचओ के पास कोई बचाव कार्यक्रम तक नहीं है तो फिर ऐसे संगठन पर खरबों रुपए खर्च करने की क्या आवश्यकता है? दुनिया के अमीर देश अपनी अर्थव्यवस्था से अर्जित खरबों डॉलर हर वर्ष डब्लूएचओ को सहायतार्थ देते हैं। जाहिरतौर पर ये खरबों डॉलर आम जनता की भलाई को सीमित कर दिये जाते हैं। खरबों रुपए डब्लूएचओ पर खर्च करने के उद्देश्य अब बईमानी साबित हो रहा है। क्या डब्लूएचओ को मिल रही खरबों डॉलर की सहायताएं बंद होनी चाहिए? कोरोना सक्रमण से निजात पाने के बाद पूरी दुनिया से ऐसी मांग और ऐेसे विचार कैसे और क्यों नहीं उठेगे?
डब्लूएचओ अब अपनी छवि को कैसे संरक्षित कर सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ को दुनिया के सामने नंगा कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप की बहुत सारी बातों और एक्शन को दुनिया पंसद नहीं करती है, गंभीर संज्ञान में नहीं लेता है। इसलिए कि डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ अपने देश के हित की बात को प्राथमिकता देते हैं और उनकी कई बातें विरोधी देशों और संगठनों को डराने-धमकाने जैसी मानी जाती हैं। लेकिन डब्लूएचओ को जिस प्रकार से आलोचना की है और तर्क आधारित डब्लूएचओ को घेरा हैं उससे डोनाल्ड ट्रंप की दुनिया के सामने छवि चमकी है, यह संदेश गया है कि जहां सारे देश डब्लूएचओ और चीन की भूमिका पर खामोश हैं और सिर्फ बर्बादी देख रहे हैं वहीं डोनाल्ड ट्रंप ने केवल कोरोना सक्रमण से अपने देश को बचाने में लगा हुआ है तथा कोरोना के असली गुनहगार चीन और डब्लूएचओ को बेनकाब भी कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि चीन जैसे अति अराजक, हिंसक देश के गुनाह पर भी डोनाल्ड ट्रंप को छोड़कर किसी अन्य देश के शासक ने मुंह नहीं खोला था। डोनाल्ड ट्रंप ने सीधेतौर पर चीन को हड़काया और चीन की करतूत को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया था। डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा था। चीनी वायरस का नाम जैसे ही डोनाल्ड ट्रंप ने दिया वैसे ही चीन आगबबूला हो गया। चीनी वायरस कहने पर चीन ने धमकियां भी पिलायी पर डोनाल्ड ट्रंप पर प्रभाव तो पड़ने वाला नहीं था। आज भी डोनाल्ड ट्रंप कोेरोना को चीनी वायरस कहने पर अडिग हैं।
अब यहां यह प्रश्न उठता है कि डोनाल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ के खिलाफ किस प्रकार के आरोप लगाये हैं और किस प्रकार से एक्शन लेने की बात की है? क्या डोनाल्ड ट्रंप के एक्शन से डब्लूएचओ के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खडा होगा? क्या डोनाल्ड ट्रंप की तरह और भी दुनिया के शासक डब्लूएचओ के खिलाफ खड़े होंगे? डोनाल्ड ट्रंप ने सीधेतौर पर कहा कि डब्लूएचओ सिर्फ कागजी शेर है, सिर्फ बयानों और कागजों मेंं ही डब्लूएचओ बीमारियों से लड़ने की वीरता दिखाता है, हमारे डॉलर पर डब्लूएचओ के अधिकारी भोगविलास करते हैं, दुनिया की शैर कर अपनी भोग मानसिकताओं को तुष्ट करते हैं, जब हम कोरोना से लड़ रहें हैं और हमारे नागरिक अपना जीवन खो रहे हैं तो ऐसी स्थिति में डब्लूएचओ हाथ पर हाथ धर कर बैठा है। सबसे बडी बात यह है कि डब्लूएचओ पर चीन से मिलीभगत करने पर आरोप लगाया है। डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस पर चीन से हमदर्दी रखने और चीन को कोरोना करतूत के संरक्षक होने जैसे आरोप लगाये हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस चीन के समर्थन से ही डायरेक्ट जनरल बने थे। इसलिए टेडरोस अधानोम गेब्रियसस चीन के प्रति स्वामिभक्ति दिखा रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी दी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को मिलनी वाली सहायता पर वह विचार करेंगे, हो सकता है कि हम उसे रोक देंगे। आलोचना मात्र से विश्व स्वास्थ्य संगठन का कुछ नहीं बिगडने वाला था। पर सहायता रोकने की धमकी से विश्व स्वास्थ्य संगठन की हड्डियों में कंपकंपी आ गयी है, उसे अपने सक्रिय अस्त्वि पर संकट के बादल दिखायी दे रहे हैं। जानना यह भी जरूरी है विश्व स्वास्थ्य संगठन के खर्च और बजट का 30 प्रतिशत अंशदान अकेले अमेरिका करता है। अगर इतनी बडी राशि सहायता के तौर पर नहीं मिली तो फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने विशेष कार्यक्रमों और सक्रियताओं पर कटौती करनी ही पडेगी। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी चिंतित हैं और परेशान भी हैं।
इसका दुष्परिणाम तुरंत विश्व स्वास्थ्य संगठन को भुगतना पड़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेडसोस अधानोम गेब्रियसस को सफाई देने के लिए सामने आना पडा। टेडसोस अधानोम गेब्रियेसस ने एक बयान जारी कर कहा है कि कोरोना संकट काल में राजनीति नहीं होनी चाहिए, अगर दुनिया के देश इसी तरह बयानबाजी या फिर तकरार में फंस गये तो फिर कोरोना के खिलाफ हमारी लडाई कमजोर हो जायेगी, जिसका दुष्पिरिणाम मानवता झेलगी। पर इनकी इस बयानबाजी को बचकानी ही मानी गयी है और गुनाह पर पर्दा डालने जैसा ही माना गया है। ऐसा इसलिए माना गया कि डोनाल्ड ट्रंप ने जिन प्रश्नों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन को घेरा था और अपनी सहायता राशि रोकने की धमकी दी थी उन प्रश्नों पर कोई जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल नहीं दे सके। वास्तव में डोनाल्ड ट्रंप के आरोपों का जवाब देने के लिए विश्व स्वास्थ्य सगंठन के पास कोई जवाब था नहीं।
सिर्फ विश्व स्वास्थ्य संगठन ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ की कसौटी पर दुनिया में जितने भी संगठन हैं उनकी स्थिति सिर्फ कागजी शेर और उपभोग मानसिकता के परिचायक वाली ही है। दुनिया को विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस लापरवाही और चीनी स्वामिभक्ति पर संज्ञान लेना ही होगा। अगर दुनिया विश्व स्वास्थ्य संगठन पर खरबों डॉलर खर्च करी है तो फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन को जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है।
विष्णुगुप्त
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