जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत कौन करेगा पूरा

परिवार नियोजन के प्रति लोगों का गिरता हुआ रुझान, तदुपरांत दिन-दूनी, रात-चौगुनी बढ़ती जनसंख्या इसके कारण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति बन गई है। जनसंख्या विस्फोट के कारण बहुत सारी समस्याएं सामने आने लगी हैं। वन व खेतीबाड़ी हमारे राष्ट्र के आधार हैं। वनों के होने से वर्षा होती है, और वर्षा के होने से खेती होती है। और खेतीबाड़ी से हमारा पेट भरता है, हमारा जीवन चलता है। मगर जब जनसंख्या बढ़ रही है तो लोगों के लिए रोजी रोटी और आवास की समस्या बढ़ती चली जा रही है। वनों व खेतों को नष्ट कर वहां लोगों को बसाया जा रहा है। कितनी बड़ी विडम्बना है।

बढ़ती जनसंख्या को बसाने के लिए वनों व खेतों को नष्ट किया जा रहा है तो खेती का उत्पादन कम होता चला जा रहा है। जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, खाने-पीने की चीजों, वन व खेती आधारित चीजों की कीमतें आसमान को छूती चली जा रही हैं। परिणाम स्वरूप गरीबी बढ़ती चली जा रही है। बड़ी जनसंख्या बड़े घरों तक सीमित न रहकर झुग्गी-झोपड़ियों से होते हुए सड़कों तक पहुंच गई है।

बढ़ती जनसंख्या के लिए दूध की कमी को पूरा करने के लिए रिहायशी इलाकों के बीचोंबीच डेयरी उद्योग चल रहे हैं। गाय-भैंसों को बहुतायत में पाला जा रहा है। जानवरों का मूत्र व गोबर-मल गंदगी बढ़ाते हैं इससे मच्छर-मक्खियों को न्यौता मिलता है और डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियां पनपती हैं।

अंधाधुंध बढ़ती जनसंख्या के लिए बिजली-पानी का बंदोबस्त करना सरकार के लिए मुश्किल हो गया है। सौ बीमार, एक अनार की तर्ज पर बिजली व पानी की सप्लाई सिरदर्द बनती चली जा रही है। और बहुत बढ़ती जनसंख्या के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना बेहद मुश्किल हो गया है। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी ईमानदारी से काम करने के बारे में उदास होकर प्रदूषित पानी की सप्लाई कर रहे हैं। जिससे हैजा, पीलिया, टॉयफायड जैसी बीमारियां बड़ी मात्रा में पनपती हैं।

जनसंख्या ज्यादा हो रही है और जनता की जरूरतें भी राष्ट्र के लिए समस्या बन रही हैं। लोग कुछ सुविधावश व कुछ स्टेटस वश अंधाधुंध गाड़ियों का इस्तेमाल कर रहे है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं कार्बन आईआक्साइड व कार्बनमोनोआक्साइड शहरों में जहर घोल रहे हैं। आक्सीजन कम होने लगी है, कार्बन डाईआक्साइड बढ़ने लगी है। हरियाली पर भी ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि एक तो शहरीकरण से हरियाली का सफाया हो रहा है और भाग-दौड़ की जिंदगी में लोगों के पास इतना समय ही नहीं बचता कि पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण करें एवं स्वस्थ आॅक्सीजन का आनंद लें। अस्थमा, टीबी दिमाग सम्बंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। ज्यादातर लोगों में मौसम बेमौसम नजले की समस्या भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है।

जनसंख्या के बढ़ने से लोगों की थाली या तो पूरी भरती नहीं, या छोटी हो गई है। साथ ही साथ इतनी बड़ी जनसंख्या को नियंत्रित करने में हमारा सरकारी तंत्र कभी नियंत्रण मेें रहता है तो कभी उसकी पकड़ छूट जाती है युवाओं व बेरोजगारों की संख्या में इतना ज्यादा इजाफा हो गया है कि बेकारी का परिमाण व परिणाम भयानक दिख रहा है एक नौकरी होती है तो हजारों आवेदन होते हैं।

युवा पीढ़ी तबाह होने के कगार पर पहुंच गई है। तरह-तरह की बीमारियां व विचार उसे घेरने लगे है। देश को मजबूती देने वाला युवा वर्ग कमजोर होता चला जा रहा है। लोगों का जीवन नर्क से भी भयानक बनता चला जा रहा है। फिर भी आम व्यक्ति में परिवार नियोजन को लेकर सकारात्मक धारणा नहीं बनी। वोट बैंक की खातिर सरकार व पार्टियां कठोर नहीं बन पा रही हैं। विडम्बना ही है।

बढ़ती जनसंख्या को बसाने के लिए वनों व खेतों को नष्ट किया जा रहा है तो खेती का उत्पादन कम होता चला जा रहा है। जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, खाने-पीने की चीजों, वन व खेती आधारित चीजों की कीमतें आसमान को छूती चली जा रही हैं। परिणाम स्वरूप गरीबी बढ़ती चली जा रही है।

 

आर.सूर्य कुमारी

 

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