जब परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जींद में सत्संग करने पधारे…

Shah Satnam Singh Ji Maharaj
जब परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जींद में सत्संग करने पधारे...

बहन शकुन्तला इन्सां पत्नी कर्मजीत सिंह इन्सां पुत्र अजमेर सिंह, निवासी संगरूर शहर जिला संगरूर से अपनी सास शीला देवी पर हुई पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की रहमत का वर्णन इस प्रकार करती है:- मेरे मायके जींद में हैं। सन् 1977 में मैं तब पांच वर्ष की थी। जब परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जींद में सत्संग करने पधारे। तब आपजी की गाड़ी हमारे घर के पास आकर रुकी। जब पूजनीय परमपिता जी गाड़ी से उतरकर उतारे वाले घर जा रहे थे, तो उस समय हम भी (कुछ बच्चे) परमपिता जी के पीछे-पीछे संगत के साथ चल रहे थे। उस दिन परमपिता जी का उतारा नम्बरदार रामधारी के घर पर था। जब परमपिता जी ने घर के अंदर जाने के लिए दहलीज पर पांव रखा, तभी वापिस उठा लिया। परमपिता जी कहने लगे कि गलत है।

दोबारा फिर पांव रखने लगे, तो फिर से उठा लिया। कहने लगे कि गलत है। इस तरह तीन बार कहकर पीछे लौट पड़े। फिर पूजनीय परमपिता जी प्रेमी नानूं के घर चले गए। कहा जाता है कि नम्बरदार रामधारी के घर उस दिन जो पेटी में शराब की बोतल रखी हुई थी, वह उन्होंने किसी पूजा में चढ़ावा चढ़ाने के लिए रखी थी। उस दिन जींद में धूमधाम से सत्संग हुआ। सत्संग उपरांत जब परमपिता जी नामाभिलाषी जीवों को नाम देने लगे तो मैं तथा मेरे माता-पिता भी नाम लेने वालों में बैठे थे। परमपिता जी ने नाम देते समय कपड़ा अपने मुख पर लिया और फिर हटा दिया। परमपिता जी ने दो आदमियों की तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘खड़े हो जाओ, तुमने शराब पी रखी है। बाहर चले जाओ।’ उनके बाहर जाने के बाद ही पूजनीय परमपिता जी ने नामाभिलाषी जीवों को नाम की दात बख्श दी।

उसके बाद मेरी शादी संगरूर (पंजाब) में हो गई। सन् 1994 की बात है। मैं तब गर्भवती थी। उस समय मुझे नौवां महीना लगा हुआ था। मेरी सास पिछले एक साल से बीमार चल रही थी। उन दिनों में तो वह और भी अधिक बीमार हो गई थी। वह न तो कुछ खा रही थी और न ही कुछ चाय-पानी आदि पी रही थी। वह बोलती भी नहीं थी। उस समय मेरी सास और मुझे संभालने के लिए मेरी नानी सास को बुला लिया गया था। सुबह के समय मेरी नानी सास अपने सतगुरु पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से अरदास करने लगी कि पिता जी, मैं दोनों को कैसे संभालूंगी! आप जी ही अपनी रहमत बरसाओं तथा मुझे शक्ति दो जी। मैं उस समय रसोई में खाना बना रही थी। मेरी सास एकदम ऊंची आवाज में बोली, पिता जी आ गए! पिता जी आ गए! मैं, मेरा पति और नानी सास जल्दी से उनके पास अंदर गए। वह अपने दोनों हाथ जोड़कर बैठी हुई थी। वह कई दिनों से कुछ नहीं बोल रही थी।

वह एकदम साफ बोलने लगी। हमें अहसास हुआ कि इन्हें पूज्य पिता जी ही दर्शन देने आए हैं। फिर हमने उसे चाय और मेथी की रोटी दी, जो उसने खा ली, जबकि वह कई दिनों से कुछ भी खा-पी नहीं रही थी। बाद में भी उनको पूजनीय परमपिता जी के दर्शन होते रहते थे। जब पूजनीय पिता जी सामने आते तो वह हंसने लगती, जब पिता जी अदृश्य हो जाते तो वह रोने लगती। सांतवें दिन मुझे प्रसव-पीड़ा शुरू हो गई। उधर मेरी सास की हालत भी ज्यादा खराब हो गई। मेरी नानी सास परेशान हो गई कि दोनों को कैसे संभालूंगी! फिर नानी सास ने पूजनीय परमपिता जी के स्वरूप आगे अरदास की कि हे पिता जी, इसको (मेरी सास को) आठ दिन का समय और बख्श दो, ताकि मैं जच्चा को अच्छी तरह संभाल सकूं। फिर मेरी सास को आराम आ गया। वह आराम से लेटी रहती। उसी रात मुझे बेटे की दात प्राप्त हुई। फिर पूरे आठ दिन बाद रात के एक बजे मेरी सास माता जी मालिक-सतगुरु के चरणों में जा समाए। इस तरह पूजनीय परमपिता जी ने अपने जीवों की स्वयं संभाल की। सतगुरु प्यारे का देन दिया ही नहीं जा सकता। अब पूजनीय सतगुरु जी के मौजूदा स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपनी हर खुशी बख्श रहे हैं जी।

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