जानें, कब हुआ था राज्यसभा का गठन?

सदन की गरिमा के अनुकूल आचरण करें राज्यसभा सदस्य :नायडू

नई दिल्ली। राज्य सभा के सभापति और उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने सांसद सदस्यों से सदन की गरिमा के अनुकूल आचरण करने का आह्वान करते हुए कहा है कि यह सदन राष्ट्रीय हित और जनकल्याण के अनेक मुद्दों का साक्षी रहा है। नायडू ने शनिवार को राज्य सभा दिवस के अवसर पर यहां जारी एक संदेश में कहा कि सदन ने अपनी गंभीर विचार विमर्श के जरिए राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है।

Gender Discrimination

सभापति ने कहा कि आज तीन अप्रैल के दिन ही 1952 में भारतीय संसद के उच्च सदन, राज्य सभा का गठन हुआ था। तब से यह सदन राष्ट्रीय हित और जन कल्याण के विषयों पर अनेक सार्थक विमर्श का साक्षी रहा है, अपने प्रबुद्ध विमर्श से राष्ट्र की प्रगति में योगदान करता रहा है। उन्होंने कहा कि काउंसिल आॅफ स्टेट्स के रूप में यह सदन देश की लोकतांत्रिक मयार्दाओं को दृढ़ता प्रदान करता रहा है और देश के संघीय ढांचे को प्रतिबिंबित करता है। नायडू ने कहा, ‘आज के इस सुअवसर पर राज्य सभा के सभी माननीय सदस्यों से आग्रह करता हूँ कि वे वरिष्ठों के इस सदन की प्रतिष्ठा के अनुरूप, विमर्श में अपना सकारात्मक योगदान दें।

जानें, भारत की संसद का इतिहास

भारत की संसद (अथवा पार्लियामेंट) भारत देश की विधानपालिका का सर्वोच्च निकाय है। यह द्विसदनीय व्यवस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन- लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्यसभा (राज्यों की परिषद) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारतीय संसद का संचालन ‘संसद भवन’ में होता है। जो कि नई दिल्ली में स्थित है। राज्यसभा को उच्च सदन एवं लोकसभा को निम्न सदन कहा जाता है। परंतु यह केवल व्यवहार मे कहा जाता है। क्योंकि भारतीय संविधान मं कही भी लोकसभा के लिए निम्न सदन एवं राज्य सभा के लिए उच्च सदन शब्द का प्रयोग नही किया गया है।

आपको बता दें कि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 में भारत की संविधान सभाको पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न निकाय घोषित किया गया। 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को उस सभा ने देश का शासन चलाने की पूर्ण शक्तियां ग्रहण कर लीं। अधिनियम की धारा 8 के द्वारा संविधान सभा को पूर्ण विधायी शक्ति प्राप्त हो गई। किंतु साथ ही यह अनुभव किया गया कि संविधान सभा के संविधान-निर्माण के कार्य तथा विधानमंडल के रूप में इसके साधारण कार्य में भेद बनाए रखना जरूरी होगा।

संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बनी

संविधान सभा (विधायी) की एक अलग निकाय के रूप में पहली बैठक 17 नवम्बर 1947 को हुई। इसके अध्यक्ष सभा के प्रधान डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान अध्यक्ष पद के लिए केवल श्री जी.वी. मावलंकर का एक ही नाम प्राप्त हुआ था। इसलिए उन्हें विधिवत चुना हुआ घोषित किया गया। 14 नवम्बर 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रारूप समिति के सभापति बी॰आर॰ अम्बेडकर ने पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत था।

26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हो गया। इसके कारण आधुनिक संस्थागत ढांचे और उसकी अन्य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय प्रणाली स्थापित हो गई। संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गई। वयस्क मताधिकार के आधार पर पहले आम चुनावों के बाद नए संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही।

आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए

नए संविधान के तहत पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए। पहली चुनी हुई संसद जिसके दो सदन थे, राज्यसभा और लोकसभा मई, 1952 में बनी; दूसरी लोक सभा मई 1957 में बनी; तीसरी अप्रैल 1962 में; चौथी मार्च 1967 में; पांचवी माच 1971 में; 6 मार्च 1977 में; सातवीं जनवरी 1980 में; 8 जनवरी 1985 में; नवीं दिसंबर 1989 में, दसवीं जून 1991 और ग्यारहवीं 1996 में बनी। 1952 में पहली बार गठित राज्यसभा एक निरंतर रहने वाला, स्थायी सदन है। जिसका कभी विघटन नहीं होता। हर दो वर्ष इसके एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं।

 

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