जब परमपिता जी ने फरमाया ‘‘लगे रहो, अपना तो काम ही यही है’’

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सतगुरु का हर क्षण मानवता को समर्पित रहता है। एक बार राजस्थान (param pita shah satnam ji) में श्रीगंगानगर जिले के पक्का सहारणा गांव में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने रूहानी सत्संग फरमाया। उस वक्त पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां बाल रूप में थे तो सेवादारों ने पूजनीय परमपिता जी के समक्ष अर्ज की कि पिता जी ये श्री गुरुसर मोडिया के नम्बरदार जी के बेटे हैं और इतनी छोटी उम्र में भी ट्रैक्टर-ट्राली भर-भर कर नाम लेने वाले जीवों को लेकर सत्संगों में पहुंचते हैं।

इस पर बाल स्वरूप को निहार सच्चे दाता, रूहानी रहबर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने वचन फरमाया कि ऐसा करते रहो, अपना तो काम ही ये है। उस वक्त शायद इन वचनों को बाल रूप सतगुरु के अलावा कोई समझ नहीं पाया था, लेकिन इसका रहस्योद्घाटन बाद में उस वक्त हुआ जब 23 सितंबर 1990 को पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा की पवित्र मर्यादा अनुसार चमकीले फूलों का एक सुन्दर हार अपने पवित्र कर-कमलों से पूज्य गुरु जी को पहनाया और अपनी पाक-पवित्र दृष्टि का प्रशाद (हलवे का प्रशाद) दिया जो उस पवित्र अवसर पर विशेष तौर पर तैयार किया गया था।

इस शुभ अवसर पर साध-संगत में भी वह पवित्र प्रशाद बांटा गया। इस अवसर पर पूजनीय परमपिता जी ने साध-संगत में फरमाया, ‘‘अब हम जवान बनकर आए हैं। इस बॉडी में हम खुद काम करेंगे। किसी ने घबराना नहीं। ये हमारा ही रूप हैं। साध-संगत की सेवा व संभाल पहले से कई गुना बढ़कर होगी। डेरा व साध-संगत और गुरुमंत्र लेने वाले जीव दिन दोगुनी रात चौगुनी, कई गुणा बढ़ेंगे। किसी ने चिंता, फिक्र नहीं करना। हम कहीं जाते नहीं, हर समय तथा हमेशा साध-संगत के साथ हैं।

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