…जब देश में थी दीवाली, वे खेल रहे थे होली

... when the country was in Diwali, they were playing Holi

जरा याद करो कुबार्नी: 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे अमरीक सिंह

कुरुक्षेत्र (सच कहूँ, देवीलाल बारना)। …जब देश में थी दीवाली वे खेल रहे थे होली, हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली। यह पंक्ति शहीद अमरीक सिंह पर बिल्कुल स्टीक बैठती है क्योंकि जब भारतवासी देश में दीपावली का पर्व धूमधाम से मना रहे थे। उस वक्त अमरीक सिंह व उसके साथी दुश्मनों के साथ खून से होली खेल रहे थे और अपनी छाती में गोलियों को झेल रहे थे।

1971 के भारत-पाक युद्ध में अमरीक सिंह की ड्यूटी फिरोजपुर बोर्डर पर थी। 4 नवंबर 1971 को जब 15 पंजाब यूनिट के जवान मोर्चे पर तैनात थे और दुश्मनों से लड़कर उनके दांत खट्टे करने का काम कर रहे थे। एकाएक दुश्मनों की फौज ने एक गोला भारत की तरफ गिरा दिया। जो मोर्चे पर तैनात 15 पंजाब यूनिट के जवानों पर जा गिरा जिसमें इस यूनिट के सभी जवान वीरगति का प्राप्त हो गए। जिसमें वीर सैनिक अमरीक सिंह भी शामिल थे। ऐसे में अमरीक सिंह अपनी मातृभूमि की रक्षा करते करते वीरगति का प्राप्त हो गए।

  • 1965 की लड़ाई में दिखाई बहादुरी

1962 में फौज में भर्ती हुए अमरीक सिंह में जवानी का खून देश के लिए मर मिटने के लिए खौलता था। फौज की ट्रेनिंग फिरोजपुर में करने के कुछ समय बाद ही भारत-पाक का युद्ध छिड़ गया। जिसमें अमरीक सिंह ने बड़ी बहादुरी से दुश्मनों के दांत खट्टे करने का कार्य किया। इसके लिए उन्होने रक्षा मैडल 1965 व सैन्य रक्षा मैडल देकर भी सम्मानित किया गया।

  • 6 माह पति के साथ फौज में रहना सुखद अनुभव

अमरीक सिंह की पत्नी सुरजीत कौर का कहना है कि उनकी शादी 1967 में हुई थी। उस वक्त अमरीक सिंह एक महीने की छुट्टी घर आए थे। इसके बाद 6 माह बाद 15 दिन के लिए छुट्टी घर आए। डेढ़ साल के बाद वह भी अमरीक सिंह के साथ फौज में रहने के लिए चली गई। उस वक्त उनकी ड्यूटी फिरोजपुर पंजाब में थी। उस वक्त वह लगभग 6 माह तक उनके साथ रही। यह उसकी जिंदगी का सबसे सु:खद समय था, क्योंकि इस दौरान वह जहां अपने पति के साथ रही, वहीं उन्होने फौज के तौर-तरीकों को भी भली प्रकार से जानने का अवसर मिला। लेकिन कुदरत को कुछ ओर ही मंजूर था। इस दौरान भारत-पाक का युद्ध छिड़ गया, जिस कारण उसे अपने गांव स्थित घर वापिस आना पड़ा।

  • रेडियो में सुना तो उड़ गए ग्रामीणों के होश

भारत-पाक के युद्ध के दौरान जब अमरीक सिंह वाली सिख रैजिमेंट की 15 पंजाब यूनिट पर दुश्मनों का गोला गिरा, यह समाचार सुनकर कीला फार्म के ग्रामीणों के होश उड़ गए। इस दौरान अमरीक सिंह के पिता केहर सिंह अमरीक के बारे जानने के लिए फिरोजपुर गए, जहां से मालूम पड़ा कि अमरीक सिंह अपने सभी साथियों के साथ देश की रक्षा करते हुए युद्ध के दौरान शहीद हो गए हैं। गांव में आकर जब केहर सिंह ने यह समाचार ग्रामीणों को बताया तो गांव में सन्नाट छा गया। लेकिन ग्रामीणों को अमरीक सिंह की शहादत पर गर्व था। शहीद की विधवा सुरजीत कौर बताती हैं कि आज भी उन्हे इस बात का मलाल है कि शहीद का शव तो दूर की बात उनकी अस्थियां भी घर पर नही पहुंची।

8 मई, 1944 को पंजाब के जलालपुर में जन्मे अमरीक तीन भाईयों कश्मीर सिंह व सतनाम सिंह में सबसे बड़े थे। माता मेवां कौर की कोख से जन्मे अमरीक सिंह पिता केहर सिंह की गोद में खेलकर बड़े हुए। बचपन से ही वे मिलनसार स्वाभाव के धनी थे। बड़ों का आदर करना उनके स्वभाव में शामिल था। जलालपुर से ही उन्होने 8वीं की परीक्षा पास की। इसके बाद उनका पूरा परिवार कुरुक्षेत्र जिले के गांव असमानपुर स्थित कीला फार्म में आकर रहने लगा। पिता केहर सिंह एक गुरुद्वारा में पाठी की सेवा करते थे। इसलिए पूरा परिवार ही धार्मिक प्रवृत्ति का था।

अमरीक सिंह में शुरू से ही देश सेवा का जज्बा था। जिसके चलते वे 8 मई 1962 को फौज में भर्ती हो गए। हालांकि उस वक्त मिड़ल पास करना बहुत बड़ी बात थी, लेकिन आठवीं पास करने के बाद भी फौज में सिपाही के पद पर भर्ती होना उनके देशप्रेम को दशार्ता है। फौज में उनको 2445834 आर्मी नंबर दिया गया।

  • शहीद होने के समय बेटा था एक साल का

जिस वक्त अमरीक सिंह शहीद हुए उस समय उसका बेटा अजमीत सिंह मात्र एक वर्ष का था। इसके बाद सुरजीत कौर ने कठिनाईयों के बीच अजमीत सिंह का पालन पोषण किया। आज शहीद अमरीक सिंह के परिवार में पत्नी सुरजीत कौर, बेटा अजमीत सिंह पुत्रवधू कुलवंत कौर, पोत्र कर्मजीत सिंह, पौत्री मनजिंद्र कौर व जसमीत कौर शहीद अमरीक सिंह की शहादत पर गर्व महसूस करते हैं।

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