Literature : मोतीलाल का किशोर बेटा जब घर से निकल गया तो…!

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पीलीबंगा, हनुमानगढ़ (निशांत)। मोतीलाल का किशोर बेटा जब घर से निकल गया तो मोतीलाल की पत्नी निर्मला को इतना शोक लगा कि वह बुक्का फाड़कर और माथा पीट-पीटकर रोने लगी। अड़ोसी-पड़ोसी दौड़े आए और धीरज बंधाने लगे- कोई बानही, बबलू घर से ही तो गया है दो चार दिन में लौट आएगा। Literature

हाय रे! न जाने वह किस हाल में होगा? किसके हत्थे चढ़ गया मेरा लाल, न जाने कोई उसके साथ क्या करेगा? सुना है, बड़े शहरों में लोग, आदमी के अंग निकाल कर बेच देते हैं।
उसे कुछ नहीं होगा। वह पढ़ा लिखा है। समझदार है। अपनी भलाई देखेगा, वहीं रहेगा। हम उसे खोज निकालेंगे। तुम थोड़ा धैर्य रखो।
इस तरह से समझा-बुझाकर लोगों ने निर्मला को कुछ शांत किया। फिर तलाश शुरू हुई। सबसे पहले उसके मित्र-दोस्तों के घर फोन से पता किया। फिर दूर-निकट के रिश्तेदारों से फोर से पूछा। किसी ने उसकी कोई खबर नहीं दी। सबने वही कहा-हमारे यहां तो नहीं आया।

जिसे-जैसे पता चला, मोतीलाल के घर चला आया। सयानोें के भाव बढ़ गए। जो चोरी माल का या किसी गुमशुदा का पता बता दें, उसे इधर ‘सयाना’ कहा जाता है। एक के पास गए तो उसने देवी मां की जोत के लिए दो-ढाई सौ का सामान और देवी मां का एक सूट मंगवाया। जोत करके आखे देखे। बताया कि तुम्हारा लड़का ज्यादा दूर नहीं गया है। उत्तर-पूर्व के कोने में जो सड़क आती है, उस पर पांचवे गांव में गया है। गांव का नाम अ अक्षर से शुरू होता है।

जीप भर कर आदमी उस गांव गए। गांव के सब रास्तों को रोका कि हमारे आने का पता लगने पर कहीं खिसक न जाए। शेष बचे आदमी गांव की गलियों और गुवाहड़ में उसे खोजने निकले। गांव में एक जगह दस-पन्द्रह लोग ताश पीट रहे थे। उनसे हुलिया बताकर पूछा। उनमेें से एक ने कहा-हां! भाई इस तरह का एक लड़का गांव की ओर आते तो मैंने देखा था। ढृूंढने वालों का विश्वास और भी पक्का हो गया कि हो न हो ‘सयाने’ की बात सच है और लड़का इसी गांव मेें छिपा है।

फोन करके कस्बे से आदमी और बुलाए गए। अड़ोसी-पड़ोसियों की एक जीप और भरकर गई। पहरा और कड़ा किया गया। शाम के समय मंदिर के स्पीकर मेें आवाज लगा दी गई कि अपरिचित लड़के को देखें तो हमें सूचित करें। रात भर आदमी उस गांव की गलियों की खाख छानते रहे। लेकिन लड़का न मिला। सुबह थक हार कर के वापिस लौट आए। ‘सयाने’ के पास गए ‘सयाना’ अपनी हार मानने वाला कहां था? उसने जोर देकर कहा- लड़का उस गांव मेें जरूर गया है। तुम्हारे हाथ नहीं लगा तो जरूर वह तुम्हारे जाने से पहले वहां से आगे निकल गया। हां! गया वह उसी दिशा में है। घर वालों को ‘सयाने’ की बात का फिर विश्वास हो गया। उन्होंने मन ही मन कहा- उस गांव का एक आदमी भी तो कह रहा था कि हां! इस शक्ल-सूरत का एक लड़का इस गांव की ओर आ रहा था।

मोतीलाल और उसके साथी फिर उस दिशा के दूसरे गांवों मेें गए। चार-पांच दिनों तक उधर कई गांवो की खाक छानी। लड़का न मिला। किसी समझदार ने उन्हें सलाह दी कि थाने में रिपोर्ट तो दर्ज करवाओ। ऐसे कामों में पुलिस वाले बड़े उस्ताद होते हैं। लड़कों को भगाकर ले जाने वाले कई गिरोहों का उन्हें पता होता है। वे थाने गए। थाने वालों ने उन्हें डांटा- इतने दिन क्या करते रहे?

‘ढूंढते रहे।’ ‘तो जाओ अब भी ढूंढ लो।’ Literature

वे कई देर तक मुंह लटकाए खड़े रहे तो पुलिस वालों ने बेमन से झूठी-सच्ची रिपोर्ट लिख ली।
घर आने पर उन्हें पता चला कि पड़ोस के मंदिर में एक बूढ़ी पुजारिन आई हुई है। बड़ी पहुंची हुई महिला है। कस्बे की एक डूबी हुुई आसामी को उसने मालामाल कर दिया। वह आसामी अब उसका बड़ा मान-तान करती है। उन्हीं के बुलावे पर वह अपने आश्रम से चलकर, साल में एक-दो बार यहां आती है। ठहरती यहां मंदिर में ही है।

मोतीलाल की पत्नी निर्मला अपने साथ एक अन्य स्त्री को लेकर उसके पास पहुंची। लड़के के घर से निकलने की बात कही। महिला ने थोड़ा ध्यान लगाकर कहा- कोई बात नहीं। मैं तुम्हे एक जाप देती हूं, उसका आप घर में बैठकर सात दिन तक दोहराते रहो। भगवान ने चाहा तो आपका लड़का आठवें दिन घर आ जाएगा।

सुनकर निर्मला ने सोचा- जाप यह महिला ही करे तो और अधिक उपयुक्त रहेगा क्योंकि जाप इसी का है और उसी के आराध्य देव का है। हमसे पता नहीं वह प्रसन्न हो या न हो? इसलिए उसने अपना भय महिला के सामने प्रकट किए- माई, यह जाप आप स्वयं ही करें। हमसे जाप में कोई कोर-कसर रह सकती है।
‘वह तो है ही। एक सांसारिक मनुष्य में और एक साधु पुरुष में फर्क तो है ही।’

‘तो फिर आप खुद ही चलकर हमारे घर पर जाप करो।’ बुढ़िया घर के एक कोने में, अपने ईष्ट देव की मूर्ति के आगे धूप-दीप जलाकर जाप करने बैठ गई। जाप का उच्चारण वह बहुत धीरे करती थी। बस जाप की फुसफुसाहट मात्र होती थी। ऊंची आवाज में जाप होता भी कैसे? बात सात दिन की थी। कोई पांच-सात मिनट की तो थी नहीं। बुढ़िया की धूप-दीप की थाली में, घर वालों ने सौ रुपए चढ़ा दिए थे। उन्हें देखकर जो भी घर में सान्तवना प्रकट करने आता, दस-बीस रुपए चढ़ाकर जाता। लोग कहते थे कि जिस आसामी को इसने मालामाल किया है उसने बुढ़िया को खूब दान किया है। लेकिन उसकी दुबली-पतली काया और पुराने-सुराने पहनावे को देखकर तो वह कंगाल ही लगती थी। कहने का मतलब यही कि वह बात न थी कि उसे रुपयों-पैसों की कोई परवाह नहीं थी। Literature

पांचवे दिन महिला के पास उसका एक मरियल सा चेला आया। उसने उसे कोई संदेश दिया। महिला ने घरवालों से कहा कि महात्मा ने मुझे बुलाया है। मैं तो जाती हूं। अब जाप आप खुद ही करते रहना। इतना कहकर जाप के बोल घरवालों को बताकर वह वहां से खिसक चली गई।

घर वाले कई दिन तक जाप करते रहे। एक दिन थक गए तो बंद कर दिया। बीच में ‘सयानों’ की तलाश भी चलती रही। जो भी बताता कि फलां ‘सयाना’ बड़ा पहुंचा हुआ है। वहीं पहुंच जाते। चढ़ावा चढ़ाते और लड़के का पूछते। कोई ‘सयाना’ उन्हें बच्चे के सही सलामत लौट आने की बात कहता। कोई कहता कि वह मुसीबत में है। उसे उबारने के लिए जाप करवाओ। घरवाले जाप के लिए चढ़ावा लाकर देते। ‘सयाना’ जाप करता लेकिन लड़का घर न आया। किसी ने उन्हें कहा कि सात दिन लगातार उल्टा चरखा चलाओ। इस प्रकार करने से लड़का उल्टा लौट आएगा। लड़के की मां-दादी और बहनों ने यह भी किया। लेकिन लड़का घर न लौटा।

तीन महिने बाद उनके घर किसी अनजाने व्यक्ति का फोन आया कि क्या आपका कोई लड़का घर से भागा हुआ है? उन्होंने कहा कि हां! तो उसने आगे बताया कि आपका लड़का हमारे यहां जैसलमेर में राठौड़ फैक्ट्री में मजदूरी का काम कर रहा है। मैं इस फैक्ट्री के आगे चाय की दुकान करता हूं। वह अक्सर हमारे पास चाय पीने आता है। हमें उसकी बातचीत और पहनावे से शुरू से ही शक हो चला था। इसलिए बहला-फुसलाकर हमने उससे तुम्हारे घर का फोन नंबर लिया है। तुम आकर उसे ले जाओ। घर वाले गए और उसे ले आए। शायद लड़का वहां स्वयं तंग आ गया था। उसने स्वयं ही चाय बनाने वाले के घर से फोन करने के लिए कहा था। घर आकर लड़के ने बताया कि वह रात की गाड़ी से ही जैसलमेर के लिए निकल पड़ा था। जैसलमेर को जाने वाली गाड़ी उस दिशा के ठीक विपरीत जाती थी। जिस दिशा में ‘सयाने’ ने लड़के के जाने की बात कही थी। Literature

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