एक बार एक व्यक्ति ने टालस्टॉय से पूछा- ‘जीवन क्या है?’ टालस्टॉय ने एक क्षण उस व्यक्ति की तरफ देखा, फिर कहा- ‘एक बार एक यात्री जंगल से गुजर रहा था। अचानक एक जंगली हाथी उसकी तरफ झपटा, बचाव का अन्य कोई उपाय न देखकर वह रास्ते के एक कुएँ में कूद गया। कुएँ के बीच में बरगद का एक मोटा पेड़ था। यात्री उसी की एक जटा पकड़कर लटक गया। कुछ देर बाद उसकी निगाह कुएँ में नीचे की ओर गई, नीचे एक विशाल मगरमच्छ अपना मुँह फाड़े उसके नीचे टपकने का इंतजार कर रहा था। डर के मारे उसने अपनी निगाह ऊपर कर ली ऊपर उसने देखा कि शहद के एक छत्ते से बूंद-बूंद मधु टपक रहा है। शहद के सामने वह भय को भूल गया। उसने टपकते हुए मधु की ओर बढ़कर अपना मुँह खोल दिया और तल्लीन होकर बूंद-बूंद मधु पीने लगा। किन्तु यह क्या? उसने आश्चर्यचकित होकर देखा, वह जटा के जिस मूल को पकड़कर लटका हुआ था, उसे एक सफेद और काला चूहा कुतर-कुतर कर काट रहे थे।’ प्रश्नकर्ता की प्रश्नसूचक मुद्रा देख टालस्टॉय ने कहा, ‘नहीं समझे तुम? वह हाथी काल था, मगरमच्छ मृत्यु था, मधु जीवनरस था और काला तथा सफेद चूहा रात-दिन। इन सबका सम्मिलित नाम ही जीवन है।’
संत दादू दयाल
दादू दयाल जी अपनी दुकान पर बैठकर कुछ पैसों की भूल निकाल रहे थे। बाहर बारिश हो रही थी। उसी समय दादू जी के गुरु वहाँ पर आ पहुँचे। उन्होंने देखा, मेरा शिष्य हिसाब में डूबा हुआ है। उनके गुरु बारिश में ही खड़े रहे। इस प्रकार आधा घंटा बीत गया। दादूजी का हिसाब-किताब ठीक हो गया। उन्होंने संतुष्टि की सांस ली और अपने बहीखाते को एक तरफ रख दिया। अब उनकी नजर बाहर की ओर गयी। अपने गुरु को बारिश में भीगते हुए देखा तो उन्हें दु:ख हुआ। वे तुरन्त दौड़कर बाहर गये। उन्हें दुकान के भीतर लाकर, चरण-स्पर्श करके पूछा- कि हे गुरु महाराज! आप कब से वर्षा से भीग रहे थे? आपने मुझे आवाज क्यों नहीं दी? गुरुजी ने कहा- दादू, तुम अपने कार्य में डूबे हुए थे। मैंने तो केवल आधा-घंटा ही इन्तजार किया है। पर परमेश्वर तो पता नहीं, कब से तेरा इन्तजार कर रहा है। हे दादू! तू अपनी बुद्धि को परमात्मा में लगा और सबको शान्ति का मार्ग बताकर सबका कल्याण कर।
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