गत दिनों अमृतसर में संपन्न हुए हार्ट आॅफ एशिया के छठे मंत्रिस्तरीय सम्मलेन का केंद्र बिंदु निश्चित तौर पर आतंकवाद से त्रस्त एशिया ही था लेकिन जिस तरह रूस ने अफगानिस्तान के काउंटर टेररिज्म फ्रेमवर्क की राह में अड़ंगा लगाया और पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय कूटनीति पर प्रश्न खड़े किये उससे कुछ प्रश्नों का उठना लाजिमी है। प्रश्न यह कि आखिरकार रूस का रुख भारत के प्रति बदला-बदला नजर क्यों आ रहा है? भारत को रूस ने सलाह दी कि इस प्रकार की आपसी आक्रामकता को शांति के लिए काम करने वाले मंचों पर नहीं उठाया जाना चाहिए। रूस का यह बदला हुआ तेवर भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
गौरतलब है कि रूस पहले भी ब्रिक्स सम्मेलन में आतंक को लेकर पाकिस्तान को अलग-थलग करने वाली भारत की मुहिम को झटका दे चुका है, जबकि रूस दशकों से भारत का प्रगाढ़ मित्र है। दरअसल, पाकिस्तान की रणनीति बड़ी तेजी से बदल रही है। वह पहले से अमेरिका के निकट रहा है, जबकि इन दिनों उसने चीन और रूस के साथ भी अपनी नजदीकी बढ़ा ली है। इसका प्रभाव भी अब साफ दिखने लगा है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अभी तक चीन ही उसकी तरफदारी करता दिखता था, लेकिन अब रूस भी भारत को आंखें दिखाने लगा है। यह संकेत कुछ अच्छे नहीं है।
हालांकि सम्मलेन के मंच से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के चलते खूब खरी-खोटी सुनाई और संयुक्त घोषणापत्र में आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने पर पूरी सहमति देखी जा सकती है। फिलहाल इस सम्मेलन में अफगानिस्तान को भारत के साथ जबरदस्त दोस्ती निभाते हुए देखा जा सकता है। जिस तर्ज पर पाकिस्तान को अफगानिस्तान ने लताड़ा है उसे भारत अपनी कूटनीतिक सफलता के रूप में पेश कर रहा है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में आतंकवाद को लेकर दरारें आ रहीं थी, उससे पाकिस्तान को इस बात को लेकर पहले से ही आशंका थी कि अफगानिस्तान इस मंच से उस पर हमला कर सकता है।
इसके अतिरिक्त पाक भारत की आक्रामक कूटनीति से पहले से ही डरा हुआ है वह जानता है कि भारत किसी भी द्विपक्षीय या बहुपक्षीय मंच पर उसे घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा। शायद यही कारण था कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज एक दिन सम्बन्धों में कुछ तनाव कम करने के उद्देश्य से भारत पहुँच गए थे और उन्होंने पहले अफगानी राष्ट्रपति से मुलाकात भी की थी ,पर पर अजीज के प्रयास निरर्थक चले गये क्योंकि भारत ने तो उसे लताड़ा ही बल्कि अशरफ गनी ने भी यह तक कह डाला कि जो पांच सौ करोड़ डॉलर की मदद उन्हें पाकिस्तान दे रहा है उसे वह स्वयं आतंकवाद को खत्म करने में प्रयोग करें।
विदित हो हार्ट आॅफ एशिया अफगानिस्तान में शांति व स्थिरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2 नवम्बर, 2011 को तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में स्थापित किया गया था । दरसल अफगानिस्तान को आतंकवाद का केंद्र माना जाता था और वहां पर शांति एशिया में शांति व स्थिरता लाने का एक बड़ा माध्यम हो सकती है। एशिया के 14 देशों का यह संगठन क्षेत्रीय संतुलन साधने, समन्वय बिठाने साथ ही आपसी सहयोग बढ़ाने का भी काम करता है। 18 सहयोगी राष्ट्र और 12 सहायक और अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी इसमें शामिल हैं। अमृतसर में हुए हार्ट आॅफ एशिया का यह छठवां आयोजन था जिसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद का खात्मा है पर इस मामले में कितने कदम आगे बढ़े इसका भी लेखा-जोखा किया जाना चाहिए। इसकी खासियत घोषणापत्र में पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद का नाम शामिल मिल किया जाना है। दरअसल हार्ट आॅफ एशिया के इस छठे सम्मलेन को अपेक्षित रूप से सफल मान सकते हैं, क्योंकि हार्ट आॅफ एशिया के मंच से पाकिस्तान को साफ संदेश दे दिया गया है कि आतंकियों और हिंसक चरमपंथियों को पनाह देना शांति के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है।
इस बीच इस बात पर भी चर्चा जोरों पर है कि क्या भारत के राष्टÑीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सरताज अजीज के बीच कोई मुलाकात हुई है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बीते 3 दिसम्बर को विदेश मंत्रियों के लिए डिनर का आयोजन किया गया था। डिनर के बाद अजीत डोभाल और सरताज अजीत के बीच मुलाकात की बात कही जा रही है। पाकिस्तानी मीडिया मुलाकात होने का दावा कर रहा है जबकि भारत इससे इंकार कर रहा है। देखा जाए तो पाकिस्तानी मीडिया और पाकिस्तान सरकार समेत उसके तमाम प्रतिनिधि अक्सर बात को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते रहे हैं साथ ही अपनी शेखी बघारने में पीछे नहीं रहते। बीते दिनों पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ ने तब हद कर दी जब उन्होंने यह कह डाला कि नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें न केवल शानदार व्यक्ति कहा बल्कि पाकिस्तान को सम्भावनाओं वाला देश करार दिया जबकि व्हाईट हाउस की ओर से इस पर कोई तवज्जो नहीं दिया गया। पाकिस्तानी मीडिया किसी अपवाह तंत्र से कम नहीं है और सरताज अजीज जैसे लोग किसी भी परिस्थिति को भुनाने में तनिक मात्र भी पीछे नहीं रहते हैं।
फिलहाल हार्ट आॅफ एशिया के मंच पर पाकिस्तान की आतंकवाद के मामले में बोलती बंद हो गयी। लेकिन यह हमारे लिए चिंता का विषय है कि क्यों कुछ देशों का झुकाव पाकिस्तान की तरफ बढ़ रहा है। क्या एशिया के सभी देश अब आतंकवाद को भी अपनी कूटनीतिक चालों में शामिल कर चुके हैं। क्यों प्रत्येक मंच सभी देश खुलकर आतंकवाद के विरोध में सामने नहीं आते। यकीनन, इस पूरे परिदृश्य में अब भारतीय कूटनीतिज्ञों को समझ लेना चाहिए कि जब पाकिस्तान के साथ भारत जूझेगा, तो उसके लिए विश्व समुदाय के ताकतवर देशों में से भारत के पक्ष में कौन खड़ा होगा? अब भारत को सोचना होगा कि आखिर वह किस रास्ते चले? इसके आलावा भारत अब यह भी टटोले कि आखिरकार एशिया के दिल में क्या है। पार्थ उपाध्याय