धान की खरीद के लिए निकाला जाए रास्ता

Paddy procurement sachkahoon

केन्द्र सरकार ने पंजाब-हरियाणा में धान की खरीद एक अक्तूबर की बजाय 11 अक्तूबर से करने का ऐलान कर दिया है। केन्द्र की दलील है कि दोनों राज्यों में बरसात अधिक होने के कारण फसल में नमी की मात्रा ज्यादा होने से अभी खरीद संभव नहीं है। नमी की मात्रा 17 फीसदी रहने तक ही खरीद किए जाने का नियम है। खरीद रोके जाने से किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि फसल तैयार है और मंडियों में लाखों टन धान पहुंच चुका है। केन्द्र के इस निर्णय से वह किसान भी प्रभावित होंगे, जिनको 7-10 अक्तूबर तक धान की फसल मंडियों में लेकर आनी थी। अगर किसान धान खेत से घर लाते हैं तो उसकी ढुलाई के खर्च में विस्तार होता है। धान की फसल को देरी से काटने पर गेहूं की बिजाई पिछड़ सकती है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है।

मामला केवल धान की खरीद का ही नहीं बल्कि गेहूं की बिजाई और उत्पादन का भी है। किसान पहले ही सरकार के साथ धान की बिजाई तय तारीख अनुसार करके सहयोग करते आ रहे हैं, इस परिस्थिति में फसल पकने में किसानों की भी मदद करने की आवश्यकता है। अच्छा हो अगर सरकार धान और नमी के नियम में ढ़ील दे या फिर बोनस का ऐलान करे। बेशक मौसम के लिए न ही सरकार कसूरवार है और न ही किसान, लेकिन इस परेशानी का सामना केवल किसानों को ही करना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में किसानों को अपने हाल पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। फसलों की खरीद संबंधी परिस्थितियों ने हमारे कृषि ढांचे को बेहद कमजोर साबित कर दिया है। मौसम के मुताबिक किसान के पास इतना प्रबंध भी नहीं कि वह अपने घर या खेत में फसल को सुखा सकें।

अगर फसल की कटाई और देरी होती है तो बरसात होने से पक्की खड़ी फसल के खराब होने का खतरा बना रहता है। पहले ही बेमौसमी बारिश ने खड़ी फसल का बहुत नुक्सान किया है। ऐसी परिस्थितियों में नमी के नियमों में छूट देने के अलावा कोई और चारा भी नजर नहीं आ रहा। असल में यह समस्या किसान की नहंी बल्कि भंडारण की है। भंडारण के लिए आधुनिक तकनीक विकसित करके कोई ठोस हल निकाला जाना चाहिए। पैदावार किसी देश की पहली आवश्यकता होती है और भंंडारण के लिए पूरे प्रबंध किए जाने चाहिए। देश के लिए अनाज पैदा करने वाले किसान को मौसम की मार के सामने अकेला नहीं छोड़Þना चाहिए। किसान के नुक्सान की भरपाई की कोई तरकीब निकालनी होगी।

 

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