पानी से पानी-पानी हुआ देश

Water-water country

अभी मात्र एक सप्ताह पहले ही देश में सूखा व मानसून पूर्व सूखा पड़ने जैसे समाचार शीर्षक नजरों के सामने से गुजर रहे थे। चेन्नई में ग्राउंड वाटर समाप्त हो जाने तथा बिहार में जल संकट पैदा होने की खबरें प्रकाशित हो रही थीं। गोया पानी के अभाव से हाहाकार मचा सुनाई दे रहा था। इसी दौरान शायद प्रकृति ने प्यासी धरती व प्यासे लोगों की फरियाद सुन ली। नतीजतन भारत सहित लगभग पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में जबरदस्त बारिश हुई। कुछ क्षेत्रों में तो ऐसी बारिश हुई जो तबाही का मंजर साथ लेकर आई। भारत में आसाम सहित पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रों में लाखों लोग बाढ़ की विभीषिका का सामने करने के लिए मजबूर हुए। यहाँ सेना को बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद के लिए दिन रात एक कर लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा।

धुबड़ी जेल में 5 फुट पानी भर जाने की वजह से यहाँ के 409 कैदियों को अन्यत्र भेजना पड़ा। आसाम विधान सभा के सत्र को बाढ़ की विभीषिका के चलते स्थगित करना पड़ा। गौहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी ने पिछले 15 सालों का रिकार्ड तोड़ते हुए खतरे के निशान से 51.23 मीटर ऊपर बहना शुरू कर दिया। राज्य में कई लोगों के मरने का भी समाचार है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री द्वारा पारम्परिक रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर राज्य को 251. 55 करोड़ रुपए की बाढ़ सहायता राशि देने की घोषणा की गई।

इसी प्रकार बिहार में कोसी नदी के पानी में आया उफान फिर से चर्चा में है। नेपाल में हुई भारी बारिश ने एक बार फिर सीमावर्ती बिहार को जलमग्न कर दिया। मुख्यमंत्री नितीश कुमार बिहार के लगभग 26 लाख बाढ़ प्रभावित लोगों को हर संभव सहायता पहुँचाने का आश्वासन देते तथा सवा लाख बढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने का दावा ठोकते सुनाई दिए। खबरों के अनुसार पूरे राज्य के प्रत्येक जिला मुख्यालयों में इमर्जेन्सी आॅपरेशन सेंटर की स्थापना की गई है जो बाढ़ नियंत्रण कक्ष के रूप में कार्य कर रहा है।

गौर तलब है कि राज्य के सीमावर्ती इलाके के 12 जिले व इनसे सम्बंधित 78 प्रखंडों की 555 पंचायतें नेपाल से आने वाली बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। इसी क्षेत्र के लगभग 26 लाख लोगों को घर से बेघर होना पड़ा है तथा राज्य में बाढ़ व बारिश के चलते अब तक 50 लोगों की मौत होने की भी खबर है। मधुबनी सहित कई इलाकों में रेल पटरियां पानी में डूब जाने के चलते रेल यातायात बाधित हो रहा है। इसी प्रकार उत्त्तराखंड में भी भरी बारिश की वजह से तबाही होने के कई समाचार सुनाई दे रहे हैं। भूस्खलन व बारिश का मलवा व कीचड़ आदि भरी मात्रा में सड़कों पर आ जाने के चलते राज्य के गढ़वाल व कुमाऊँ क्षेत्र के 130 मार्गों पर यातायात बंद करना पड़ा।

सवाल यह है कि क्या वजह है कि हम भारतवासी प्रत्येक वर्ष इन हालात का सामना करने को मजबूर रहते हैं ? पिछले वर्ष के हालात व घटनाओं से हम,हमारी सरकार व प्रशासन तजुर्बा हासिल करते हुए अगले वर्षों में उसके अनुरूप सुरक्षात्मक प्रबंध क्यों नहीं कर पाते। हमारे योजनाकार और मोटी-मोटी तनख़्वाहें लेने वाले अभियंतागण आखिर क्यों शहरों में सड़कों व गलियों को लगातार ऊँचा करते जा रहे हैं जिसकी वजह से पूरे पूरे मोहल्ले सड़क व गली के निचले स्तर पर हो जाने की वजह से पानी में डूब जाते हैं ? पिछले दिनों अम्बाला शहर में धूलकोट स्थित बिजली विभाग के कर्मचारियों की एक कॉलोनी व कार्यालय में लगभग 5 फुट पानी का भराव हो गया। 2 दिनों तक कालोनीवासी इन्हीं हालात से जूझते रहे। प्रशासन असहाय बना रहा। आखिरकार एक मुख्य मार्ग को काट कर पानी बाहर निकाला गया।

लिहाजा सरकार को चाहिए कि सभी ऐसे सरकारी कार्यालय व कालोनियां जो मुख्य मार्गों से नीचे के स्तर पर जा चुके हैं उन भवनों की अविलम्ब ऐसी व्यवस्था हो कि पानी का जमाव या बहाव ऐसे भवनों की ओर न हो। जहाँ तकनीकी दृष्टि से यह संभव न हो सके वहां ऊँचे धरातल पर नए व मजबूत भवन निर्माण कराए जाएं। गलियों, मोहल्लों व बाजारों आदि में यहाँ तक कि गांवों में भी लगभग प्रत्येक वर्ष और कहीं कहीं तो साल में दो बार कभी सीमेंटेड गली बनने के नाम पर तो कभी इंटरलॉकिंग टाइल्स बिछाने के बहाने गलियों व सड़कों को बार बार ऊँचा किया जा रहा है।

आम लोगों के पहले से बने मकानों का स्तर सड़कों से नीचे हो रहा है। सड़कों व नाले नालियों का गन्दा पानी यहाँ तक कि कई बार तो सीवरेज का मेन होल का ओवरफ़्लो हुआ पानी भी लोगों के घरों में घुस जाता है। जगह जगह वाटर सप्लाई के लीक करते हुए पाईप भी ऐसी गन्दगी में डूबे नजर आ जाएंगे। इसलिए जरूरी है कि सड़कों व गलियों तथा नालों व नालियों को ऊँचा करने का सिलसिला तत्काल बंद किया जाए। कहीं गली सड़क बनानी है तो पुरानी सड़क खोद कर पहले के ऊंचाई के स्तर तक ही सड़क निर्माण किया जाए। इन सब के पीछे भ्रष्टाचार ही सबसे प्रमुख कारण है। इन दुर्व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को चाहिए कि वे अपनी नेक नीयती व मानवतापूर्ण सोच का परिचय देते हुए आम लोगों की बस्तियों को पानी पानी होने से बचाएं और अपनी नाकामियों को स्वीकार करते हुए स्वयं शर्म से पानी पानी हों तो ज्यादा बेहतर होगा।
निर्मल रानी

 

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