जल दिवस पर जल संकट को भूले राज्य

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पंजाब, हरियाणा, तामिलनाडु, केरल व कर्नाटक नदियों के पानी बांटने को लेकर अदालत में केस लड़ रहे हैं। यदि विश्व जल दिवस पर इन सभी राज्यों की जल संबंधी सरगर्मियां देखें तो लगता नहीं कि यहां कोई जल संकट है। किसी भी राज्य ने जल दिवस पर जल की बर्बादी संबंधी कोई बयानबाजी नहीं की। पानी के लिए खून बहाने वाले इन राज्यों में जल को लेकर चिंता नहीं दिखी।

हालात यह हैं कि जल दिवस 22 मार्च को हरियाणा के जिला चरखी-दादरी के दो गांवों सांजरवास और फौगाट के लोगों ने जलघर में जल संकट को लेकर दादरी-रोहतक रोड़ जाम कर दिया। कुछ ऐसे हालात ही पंजाब में हैं।

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू तो केपटाउन शहर के हालातों की राह पर चल रहा है। पंजाब विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। नशा तस्करी और अन्य मुद्दों पर विधायक एक दूसरे के गले पकड़ने तक के लिए तैयार थे।

जल की किसी ने चर्चा नहीं की। यदि सदन में जल की संभाल व संयम से प्रयोग का कोई सर्वसमिति से प्रस्ताव पारित हो जाता है तो यह संदेश आम जनता के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता था। जल संकट केवल सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण रोकने से ही समाधन नहीं होगा बल्कि राज्य में रोजाना बर्बाद हो रहे करोड़ों लीटर पानी को भी बचाना होगा।

हर गली व घर में लोग पाइपों से स्कूटर, मोटरसाइकिलों, कार व जीप को धोने के लिए जरूरत से ज्यादा पानी को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे लगातार जल संकट गहरा रहा है। जल की कमी की दुहाई देने और किसी भी कीमत पर पानी दूसरे राज्य को न देने के नारे लगाने वाले नेता जल दिवस को भूल ही गए। हरियाणा के लिए सतलुज-यमुना नहर का निर्माण ही जल संकट का एकमात्र समाधान नहीं।

कभी स्वच्छ जल के लिए प्रसिद्ध घग्गर नदी आज फैक्ट्ररियों के गंदे पानी का निकासी नाला बन गयी है। घग्गर के किनारे बसते गांवों का जीना दूर्भर हो गया है। लोग शिकायतें कर करके भी थक गए हैं लेकिन इस नदी की शुद्धता के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहा। सतलुज में बह रहे दूषित पानी को दक्षिणी पंजाब के लोग पीने के लिए मजबूर हैं।

राज्य सरकारों का पानी के मुद्दे पर अपना-अपना नजरिया हो सकता है लेकिन पानी के लिए मर मिटने वाले लोगों को ही पानी की संभाल के लिए गंभीर होना होगा, नहीं तो नारेबाजी केवल एक राजनैतिक पैंतरा ही है। दोनों राज्य कृषि प्रधान हैं लेकिन कोई भी राज्य धान की कृषि को घटाने व जल प्रयोग को घटाने वाली तकनीकें अपनाने में कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सका।

निरंतर घरेलू प्रयोग में जल खपत बढ़ रही है, लेकिन प्राकृतिक स्रोत सीमित हैं। यदि जल प्रयोग के साथ साथ बर्बादी इसी तरह बढ़ती रही तो किसी भी तरीके से संकट का समाधान नहीं होगा। जल की संभाल के लिए राजनैतिक मोर्चे के अलावा भी बहुत कुछ करना होगा, जिसे अस्वीकार करना आसान नहीं।

 

 

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