जिस बात की दुनिया को चिंता सता रही थी आखिर वही होने लगा है। रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया है और यूक्रेन के लेवान्स्क व दोनेत्सक को अलग देश घोषित कर उनकी स्वतंत्रता की रक्षा की खातिर फौजी कार्यवाई कर रहा है। पश्चिम एवं अमेरिका इसे रूस की दादागिरी के तौर पर देख रहे हैं। रूस की अपनी चिंताए हैं, जो वह काफी समय से पश्चिम को बता रहा था। रूस की चिंता है कि यूक्रेन को पश्चिम व अमेरिका नाटो सैनिक गठबन्धन का हिस्सा बनाना चाह रहे हैं। इससे रूस की सरहद तक अमेरिका के अस्त्र-शस्त्र तैनात हो जाएंगे, जिसे रूस अपने लिए खतरा मानता है, और बात-बेबात रूस यूक्रेन में घुसने का अपना स्वार्थ साधने में लगा है। वैश्विक कानूनों एवं सन्धियों को देखा जए तब यूक्रेन एक स्वतंत्र देश है।
यूक्रेन अपने हितों के लिए अपने लोगों के लिए फैसले लेने के लिए सम्प्रभु है परन्तु यूक्रेन की यह सम्प्रभुता रूस को शायद भा नहीं रही क्योंकि किसी जमाने में यूक्रेन रूस का हिस्सा रहा है। यूक्रेन का झुकाव अब अमेरिका व पश्चिम की ओर बढ़ रहा है। यूक्रेन के भीतर भी एक बड़ा वर्ग है जो रूसी भाषा, संस्कृति का है इसमें बहुत बड़ी संख्या क्रीमिया में बसती है जिसे कि रूस 2014 में यूक्रेन से छीन चुका है। अब लेवान्स्क व दोनेत्सक की बारी है। रूस इन प्रदेशों को अब स्वतंत्र राष्टÑ घोषित कर पहले इन्हें यूक्रेन से अलग करेगा तत्पश्चात वहां जनमत संग्रह करवा कर हो सकता है रूस में शामिल कर ले। परन्तु दुनिया में इस तरह एक देश का दूसरे देश में दखल नैतिक, सामाजिक, कानूनी तौर पर सही नहीं है। इससे बेमतलब यहां हजारों लोग मारे जाते हैं, वहीं कमजोर देशों का आर्थिक तौर पर दीवाला निकल जाता है और लम्बे समय तक ऐसे देश गरीबी, अपराध, भुखमरी व पिछड़ेपन से जूझते रहते हैं। अमेरिका व पश्चिम नेटों का प्रसार करने के बहाने रूस को लड़ने पर उकसा रहे हैं।
उधर रूस में भी लोगों को भड़काया जा रहा है कि पुतिन तानाशाह है और उसे हटाकर ही रूस को समृद्ध बनाया जा सकता है। बड़े देशों की अपनी नीतियां व स्वार्थ हैं जो छोटे देशों के विनाश का कारण बन रहे हैं। यहां अमेरिका को नाटो को भंग करवाना चाहिए चूंकि नाटो का अब कोई औचित्य ही नहीं है, अत: नाटो अब शांतिप्रिय देशों को आंतकित करने का काम कर रही है। रूस को भी चाहिए कि वह पश्चिम से बेवजह चिंतित नहीं हो और पड़ोसी देशों को अपने में मिलाने की नीति पर नहीं चले। युद्ध में आमजन को बहुत ही क्षति उठानी पड़ती है, लोग मारे जाते हैं, बच्चे अनाथ व अपंग हो जाते हैं, व्यापार चौपट हो जाते हैं, शहर ढह जाते हैं, युद्धों से किसी को कुछ हासिल नहीं होता। दुनिया पहले ही कोरोना की महामारी से उभर नहीं पायी है। अमेरिका व रूस को चाहिए कि वह मिल बैठकर अपनी शंकाएं मिटा लें।
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