यदि कूटनीति अन्य साधनों के माध्यम से किया जानेवाला युद्ध है, तो युद्ध कपटपूर्ण साधनों से बड़ी कमाई करना है। जब कूटनीति असफल हो जाती है और राष्ट्रों के बीच युद्ध छिड़ जाता है, तो हथियार कारोबारी, निमार्ता और सरकार की ओर से माहौल बनानेवाले अंधेरे तहखाने से बाहर निकलते हैं और कमाई के लिए मौत की मशीनें बेचते हैं। उनकी कीमत अरबों में होती है और उसे दुख व मौत से चुकाया जाता है।
अब जब तालिबान अपनी बंदूकों और विचारों के साथ लौट आये हैं, ऐसा लगता है कि कालाबाजारी से खरीदे गये हथियारों से लड़ा गया आतंक के विरुद्ध युद्ध थम-सा गया है। साल 1939 के बाद पहली बार यूरोप को युद्ध की कगार पर लानेवाला रूस-यूक्रेन तनाव हथियार कारोबार से जुड़ा सबसे कपटी प्रकरण है। इसके खिलाड़ी रूस और अमेरिकानीत नाटो हैं। अधिकतर नाटो देशों में बड़ी हथियार कंपनियां हैं, जो ऐसे देशों को साजो-सामान निर्यात करती हैं, जिन्होंने न कभी युद्ध लड़ा है और न ही भविष्य में ऐसा होने की संभावना है। संघर्ष भौगोलिक सीमाएं बदल देता है और युद्ध साम्राज्य के धन को कई गुना बढ़ा देता है।
सैन्य खर्च के मामले में 2020 में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश था। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का हमेशा से अघोषित शीत युद्ध रहा है, पर कारगिल के बाद इसका कोई संघर्ष नहीं हुआ है। फिर भी भारत का रक्षा व्यय लगभग 75 अरब डॉलर हो चुका है, जो 2016 में 56 अरब डॉलर था। वैश्विक सैन्य खर्च में अमेरिका की 39 फीसदी, चीन की 13 फीसदी और भारत की 3.7 फीसदी हिस्सेदारी रही थी। अमेरिका ने लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अफगानिस्तान और पश्चिमी एशिया में युद्धों पर खरबों डॉलर खर्च किया है। अफगानिस्तान में वह जिन लोगों को खत्म करना चाहता था, उन्हीं के पास ढेर सारे हथियार और लड़ाकू जहाज छोड़कर अफगानिस्तान से उसे शर्मिंदगी के साथ पीछे हटना पड़ा।
युद्ध और जनसंहार बहुत लाभप्रद व्यवसाय है। निजी सुरक्षा कंपनियां आतंकियों और छोटी सरकारों से लड़ने के लिए पूर्व सैनिकों को नियुक्त करते हैं। निजी सैन्य व सुरक्षा कंपनियों के बनाये समूहों को शोधकर्ता अदृश्य सेना की संज्ञा देते हैं। माना जाता है कि निजी सेनाओं का कारोबार 200 अरब डॉलर का है। साल 2011 में अमेरिका ने देश के बाहर ऐसी तैनातियों पर 120 अरब डॉलर से अधिक खर्च किया था। लगता है कि जब सीमा पर तैनात सैनिक नशे में होते हैं या सोये होते हैं या उन्हें घूस दे दी जाती है, तब दुनियाभर में आतंकियों को हथियार पहुंचाये जाते हैं। युद्ध ऐसा कारोबार है, जो कभी सोता नहीं है।
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