5 राज्यों में चुनावी माहौल पूरी तरह से गर्माया हुआ है। तमाम पार्टियां व उम्मीदवार अपने आपको मजबूत करने में लगे हुए हैं। परन्तु यहां नेताओं एवं पार्टियों की ज्यादा कवायद जातिगत व धार्मिक नफरतों को उकसाकर अपना काम निकाल लेने की ज्यादा हो रही है जबकि विकास की बात न के बराबर हो रही है। पंजाब व उत्तर प्रदेश में विकास की बातें एकदम से गायब है। नेता दल बदली भी टिकट मिलने या ना मिलने को आधार बनाकर कर रहे हैं, सिद्धान्त एवं मुद्दे की राजनीति का मानों अंत हो गया है। जबकि देश का सर्वोच्च न्यायालय केन्द्र सरकार, जिसे कि अभी भाजपा चला रही है, से देश में फैली भुखमरी व कुपोषण से निपटने की जवाब-तलबी कर रहा है।
न्यायालय ने साफ कहा है कि देशभर में भूख व कुपोषण मिटाने के लिए काम क्यों नहीं हो रहा? जबकि आज चुनावी सभाओं या बहसों में कांग्रेस व भाजपा, सपा, बसपा एक-दूसरे से बढ़कर प्रतिमाह नगद सहायता, सस्ता राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त ईलाज, मुफ्त शिक्षा, मजदूरी बढ़ाने, आय बढ़ाने के दावों से भरे अपने-अपने घोषणा पत्रों को बेहतर वायदों के साथ वोटरों को लुभाने की कोशिशें कर रहे हैं। जब वोटर इन्हीं वादों पर भरोसा कर अपने-अपने प्रदेश की बागड़ोर इन पार्टियों में किसी को भी सौंप देता है तब इन पार्टियों के नेता उद्योगपतियों, माफिया लोगों, जातिगत व साम्प्रदायिक ठेकेदारों के लिए काम करने लग जाते हैं और देश प्रदेश व आमजन समस्याओं से जूझते रहते हैं। अफसोस है कि वर्तमान राजनीति व्यवसायिक गतिविधियों का रूप ले चुकी है जबकि राजनीति एक सेवा है, जो राष्टÑ एवं राष्टÑवासियों को सुदृढ़ व मजबूत बनाने का कार्य करती है।
देश का वर्तमान राजनीतिक स्वरूप जल्द से जल्द बदला जाना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में बदलाव के लिए कोई राजनीतिक दल या नेता आज तैयार नजर नहीं आ रहा, अत: राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव आमजन को ही लाना पडेÞगा। देश के वोटर को अब जातिगत नफरत, साम्प्रदायिक व अपराधिक किस्म की राजनीति करने वालों को दरकिनार करना चाहिए। राजनीतिक शुचिता का काम राजनीतिक संगठन में नेताओं के चुनाव में पहले हो। किसी भी राजनीतिक दल में संगठन की सोच, दशा-दिशा, तय करने वाले लोगों में भ्रष्ट, जातिगत, साम्प्रदायिक, झूठे-मक्कार लोगों को न टिकने दिया जाए। जो संगठन चुनावों के वक्त जितने ज्यादा लुभावने वायदे करे पहले उसके पूर्व के घोषणा पत्रों को देखा जाए, उसका रिपोर्ट कार्ड अगर अच्छा है तब उसके उन वादों पर विश्वास किया जाए जो देश व समाज का नुक्सान न करते हों।
अगर राजनेता व दल देश को नुक्सान पहुंचाने वाले वादे करते हैं फिर भले वो खुद कितने भी अच्छे हैं, उन्हें दरकिनार किया जाए। आमजन की सोच देश के विकास की बने, इसके लिए लोगों को स्वयं सवाल करना सीखना होगा, स्वयं जागरूक बनना पड़ेगा, स्वयं ईमानदार होना होगा, फिर निश्चित तौर पर देश को अच्छा नेतृत्व और सरकारें हासिल होंगी। अन्यथा देश व जनता डूबते जाएंगे व स्वार्थ एवं भ्रष्टता से भरे लोग नेता बने रहेंगे।
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