मतदाताओं की उदासीनता: कारण और उपाय

Voters' apathy: cause and remedy

2019 के लोक सभा चुनावों के पांच चरण पूरे हो गए हैं और इन पांच चरणों में मतदान 2014 के 66.38 प्रतिशत से कुछ अधिक रहा है जो स्वतंत्र भारत में सर्वाधिक है। इन चुनावों में नौ राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में पुरूष मतदाताओं की अपेक्षा महिला मतदाता अधिक संख्या में मतदान में आयी। पूर्वोत्तर में मेघालय में सर्वाधिक महिला मतदाताएं 52.13 प्रतिशत हैं। उसके बाद मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश का स्थान है। गत सात दशकों में भारत की चुनाव प्रणाली में अनेक खामियां देखने को मिलीं और उन पर अनेक बार चर्चा भी की जा चुकी है तथा इन चुनावों में भी उन पर चर्चा की जा रही है क्योंकि इस चुनाव में सबसे कड़ा मकाबला है। इन खािमयों में अनेक कारणों से अलग अलग स्थानों पर कम मतदान प्रतिशत होना भी है तथा मतदाताओं की उदासीनता एक चिंता का विषय है। इस उदासीनता का कारण मतदाताओं का बार बार होने वाले चुनावों से खिन्न होना है। भारत में संसद, विधान सभाओं, नगर निगमों, पंचायतों के लिए चुनाव होते हैं। लोक सभा के चुनाव सारे देश में एक साथ होते हैं अन्यथा देश में हमेशा कहीं न कहीं चुनाव होता रहता है और चुनाव आयोग हमेशा व्यस्त रहता है।

मतदान एक नागरिक अधिकार है न कि एक कर्तव्य इसलिए मतदाताओं की उदासीनता सहनी पड़ेगी और इसका उपाय यह है कि निर्वाचित निकायों के सदस्यों और मतदाताओं के बीच संवाद बनाए रखा जाना चाहिए। जिस तरह से बोलने या न बोलने की स्वतंत्रता प्राप्त है उसी तरह मतदान करने की स्वतंत्रता में मतदान करना या न करना दोनों शामिल हैं। संसद और विधान सभा के चुनावों को एक साथ कराने के बारे में चुनाव सुधार के रूप में गंभीरता से चर्चा की गयी है और इसे मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता के उपाय के रूप में देखा जाता है किंतु इसे लागू करने में अनेक कठिनाइयां हैं। मतदाताओं की उदासीनता राजनीतिक अलगाव से अलग है। राजनीतिक अलगाव का कारण राजनीतिक प्रक्रिया से अलग रखने की भावना के कारण पैदा होती है। सामान्यतया किसी छोटे से समूह में यदि बड़े समूह से अलग रहने की भावना होती है तो वह अपने को अलग थलग महसूस करता है और ऐसे समूह सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक हो सकते हैं। ऐसी खबरें सुनने को मिलती है कि किसी गांव, क्षेत्र या सामाजिक समूह ने चुनावों का बहिष्कार किया है ओर यह राजनीतिक अलगाव का लक्षण है जो मतदाताओं की उदासीनता से भिन्न है।
अभी तक लोकतंत्र मे मतदान एक अधिकार है और कुछ लोकतंत्रों में यह एक नागरिक जिम्मेदारी है। कुछ लोकतंत्रों में मतदान अनिवार्य है और इसे संविधान और निर्वाचन कानूनों से विनियमित किया जाता है। इसके लिए दंड का प्रावधान भी है किंतु अधिकतर देशों में इन कानूनों के लागू न होने से स्पष्ट है कि अनिवार्य मतदान राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए केवल प्रतीकात्मक है। सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले की जीत वाली प्रणाली में अल्पमत प्राप्त करने वाला भी जनादेश प्राप्त कर लेता है तथा कम मतदान जो कई बार 50 प्रतिशत से कम होता है उसके चलते एक लोकतांत्रिक विधि के रूप में मतदान की विश्वसनीयता कम होती है। इसके लिए अनिवार्य मतदान का सुझाव दिया गया है किंतु यह एक अधिकार को एक कर्तव्य के रूप में थोपने जैसा होगा।

सबसे पहले 1893 में बेल्जियम की नेशनल असेंबली में अनिवार्य मतदान शुरू किया गया था। उसके बाद 1921 में वहां के प्रांतीय चुनावों में भी इसे अनिवार्य किया गया और 1989 में यूरोपीय संसद में भी इसे लागू किया गया। आरंभ में इसे पुरूषों के लिए लागू किया गया था किंतु 1948 में महिलाओं के लिए भी लागू किया गया और जो लोग बिना उचित कारण के मतदान नहंी कर पाते उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है या उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है। अर्जेंटीना में 1914 में अनिवार्य मतदान शुरू किया गया। नीदरलैंड और वेनेजुएला में भी अनिवार्य मतदान शुरू किया गया था किंतु वे पुन: स्वैच्छिक मतदान की प्रणाली अपना चुके हैं। नीदरलैंड में 1967 में और वेनेजुएला में 1993 में अनिवार्य मतदान किया गया था और उसके बाद स्वैच्छिक मतदान कराया गया तो मत प्रतिशत गिर गया। चिली ने भी कुछ वर्षों तक अनिवार्य मतदान लागू किया किंतु 2012 में उसने भी छोड़ दिया। ब्राजील में अनपढ़, 16 से 18 वर्ष के युवा और 75 वर्ष से अधिक आयु के बजुर्गों को छोड़कर सभी के लिए मतदान अनिवार्य हैं और ऐसा न करने पर जुमार्ने का प्रवधान है।

सिंगापुर में मतदान न करने पर मतदाता का नाम मतदान रजिस्टर से हटा दिया जाता है और उसे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है और उसे मतदाता सूची में पुन: आवेदन करने पर ही शामिल किया जाता है। अमरीका में भी मतदान प्रतिशत कम रहता है क्योंकि वहां भी अनिवार्य मतदान प्रणाली के लिए समर्थन प्राप्त नहंी है। पीईडब्ल्यू के आंकडों के अनुसार अमरीका में 2016 के राष्ट्रीय चुनावों में 56 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया और 35 देशों की सूची में उसका स्थान 31वां था। अमरीकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार अमरीका में 18 वर्ष से अधिक आयु के 24.55 करोड़ लोग हैं किंतु उनमें से केवल 15.76 करोड़ लोग ही मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। कम मतदान प्रतिशत के उपाय के रूप में अनिवार्य मतदान पुख्ता उपाय नहंी है। इस प्रणाली में भी मतदाताओं को विकल्प दिए जाते हैं और विकल्प देने पर मतदान की प्रक्रिया जटिल बन जाती है।

भारत में भी ईवीएम मशीनों में अब नोटा का विकल्प दिया गया है और यदि यहां मतदान अनिवार्य किया गया तो नोटा मतों की संख्या बढ़ जाएगी। वैसे भी भारत में दिनोंदिन नोटा मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है और यदि नोटा वोट अधिक भी हों तो भी सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है चाहे उसे मिले मत नोटा मतों से कम क्यों न हों। भारत के अलावा यूनान, यूक्रेन, स्पेन, उत्तरी कोरिया, कोलंबिया, अमरीका के नवादा राज्य में नोटा मत की अनुमति दी गयी है। रूस में भी यह प्रणाली थी किंतु 2006 में इसे बंद कर दिया गया और बंगलादेश ने इसे 2008 में शुरू किया। भारत के आकार और यहां की विशद समस्याओं को देखते हुए यहां अनिवार्य मतदान लागू करना संभव नहंी है। यह कहा जाता है कि औसत मतदाताओं को मतदान करेन के लिए कोई प्रोत्साहन नहंी है जबकि मतदान करने में यात्रा करने में खर्च करना पड़ता है और स्वरोजगार वालों को अपनी दिहाड़ी का नुकसान उठाना पड़ता है। कुछ देशों में मत खरीदने का अभियान व्यापक पैमाने पर चलता है। भारत में आदर्श आचार संहिता के चलते मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक वाहन उपलब्ध कराने का निषेध है और यदि अनिवार्य मतदान किया गया तो पैसे के बदले वोट और चुनावी उपहार के मामले बढ़ते जाएंगे। इसलिए हमें इस अव्यावहारिक सुझाव पर विचार बंद करना चाहिए और चुनाव प्रक्रिया को भ्रष्ट पद्धतियों से मुक्त करना चाहिए। इससे मतदाताओं की उदासीनता स्वत: कम हो जाएगी।
डॉ एस सरस्वती

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