उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हिंसक भीड़ ने पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हिंसक भीड़ ने पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी (Violence spreading religion politics)। राज्य में कानून व्यवस्था का जनाजा निकल गया है। इस प्रकार के मामलों पर केंद्र सरकार गंभीर बयान देती है लेकिन जमीनी स्तर पर गैर-कानूनी कार्रवाईयां निरंतर बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट मॉब लिंचिंग अर्थात भीड़ द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को धर्म या जाति के आधार पर निशाना बनाने की घटनाओं पर केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है। प्रधानमंत्री नरिन्दर मोदी ने भी कानून को हाथ में लेने वालों के खिलाफ सख्त बयान दिये लेकिन यह सब कुछ कागजों तक सीमित है।
भीड़ ने धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति या समूह खिलाफ हिंसा भड़काई,
देश के विभिन्न हिस्सों में एक धर्म विशेष के लोगों की भीड़ ने धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति या समूह खिलाफ हिंसा भड़काई, जिसमें दर्जनों जानें चली गई। कई मामलों में निजी रंजिश निकालने के लिए मामले को धर्म की रंगत दी गई। भले ही केंद्र सरकार ने हिंसा की निंदा की लेकिन इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। आखिर हिंसा करने वालों के हौंसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे पुलिस अधिकारियों पर भी हमले करने लगे हैं। नि:संदेह पुलिस की किसी मामले में कार्रवाई न होने पर रोष प्रदर्शन किया जा सकता है।
कार्रवाई नहीं होने के कारण पुलिस अधिकारी अदालतों के चक्कर भी काट रहे हैं,
अधिकतर मामलों में कार्रवाई नहीं होने के कारण पुलिस अधिकारी अदालतों के चक्कर भी काट रहे हैं, कई सजाएं भी भुगत रहे हैं लेकिन पुलिस अधिकारी की हत्या कानून-व्यवस्था पर हावी होने की निशानी है। दरअसल जब तक सरकार में किसी कानून को लागू करने की इच्छा शक्ति पैदा नहीं होती तब तक कोई भी घोषणा लागू नहीं हो सकती। सरकार को सही नीयत से अपनी घोषणाओं पर काम करना चाहिए। पुलिस ही हिंसा का शिकार हो गई तो आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कैसे दी जा सकती है। यदि यही हाल रहा तो देश में धार्मिक व जाति टकराव निरंतर बढ़ता जाएगा।
- यह वस्तुएं उन विदेशी ताकतों को खूब रास आएंगी जो पहले देश को बांटने की फिराक में बैठे हैं।
- मॉब लिंचिंग विदेशी ताकतों के काम को आसान कर रही है।
- यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनेताओं की धर्म के नाम पर भड़काऊ बयानबाजी ऐसी परिस्थितियों की जड़ है।
- एक नेता दूसरे को देश छोड़ने के लिए कहता है और दूसरा कहता है कि देश तो उसके बाप का है।
- जब संवैधानिक पदों पर बैठे नेता ऐसे स्तरहीन बयान देंगे तो आम जनता में धर्मों के नाम पर टकराव होने से कौन रोकेगा।
- सच्चाई यही है कि सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं को धार्मिक टकराव में अपनी राजनीति चमकती नजर आती है।
- ताजा हालात देश में धु्रवीकरा को बढ़ावा दे रहे हैं जो चिंता का विषय है।
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