सोशल मीडिया मंच बढ़ा रहे हिंसा, अंकुश जरूरी

Media Rumors

आजकल फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब जैसे सोशल मंचों पर ऐसी सामग्री परोसी जा रही है, जो अशिष्ट, अभद्र, हिंसक, भ्रामक एवं राष्ट्र-विरोधी होती है, जिसका उद्देश्य राष्ट्र को जोड़ना नहीं, तोड़ना है। इन सोशल मंचों पर ऐसे लोग सक्रिय हैं, जो तोड़-फोड़ की नीति में विश्वास करते हैं, वे चरित्र-हनन और गाली-गलौच जैसी ओछी हरकतें करने के लिये तत्पर रहते हैं तथा उच्छृंखल एवं विध्वंसात्मक नीति अपनाते हुए अराजक माहौल बनाते हैं। एक प्रगतिशील, सभ्य एवं शालीन समाज में इस तरह की हिंसा, नफरत और भ्रामक सूचनाओं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, लेकिन विडम्बना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कानून के चलते सरकार इन अराजक स्थितियों पर काबू नहीं कर पा रही है। कहने को ट्विटर, यू-ट्यूब, फेसबुक सामाजिक मेल-जोल के मंच कहे जाते हैं, लेकिन इन मंचों पर जितनी राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक नफरत एवं द्वेष फैलाया जा रहा है, वह चिन्ताजनक है।

फेसबुक के आंतरिक दस्तावेजों के मुताबिक फेसबुक भारत में भ्रामक सूचना, नफरत वाले भाषण और हिंसा को लेकर जश्न मनाने वाले कंटेंट को रोक नहीं पा रहा है, पर बड़ा सवाल है कि वह क्यों नहीं रोक पा रहा है? क्या यह भारत के खिलाफ एक षड्यंत्र का संकेत है? जाहिर है, इससे उपद्रवी और संकीर्ण मानसिकता के लोगों को एक खुला मैदान मिल गया है, जो देश की शांति एवं सौहार्द की स्थितियों को खंड-खंड करना चाहते हैं या अपने संकीर्ण स्वार्थों को आकार देना चाहते हैं। इन भ्रामक सूचनाओं के माध्यम से चुनाव को प्रभावित करने की साजिश भी होती रही है।आम-जनता को गुमराह करने और उसका मनोबल कमजोर करने के लिये जो लोग उजालों पर कालिख पोत रहे हैं, इससे उन्हीं के हाथ काले होने की संभावना है। राष्ट्र की एकता और अखण्डता, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं प्रगति के नये अध्याय रचती सरकारें- इस देश की संस्कृति है, विरासत है, उसे इस तरह के ओछे हथकंडों से पस्त नहीं किया जा सकता।

फेसबुक जैसे मंच निर्बाध हैं, वहां बिना कोई शुल्क अदा किए किसी को भी अपना खाता खोलने की आजादी है। आजकल हर हाथ में स्मार्टफोन आ गया है, उससे बहुत सारे लोगों को इस मंच का बेलगाम इस्तेमाल करने की लत-सी लग गई है। लेकिन इस लत से नुकसान राष्ट्र का होता है। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों इन सामाजिक मंचों को अनुशासित बनाने का प्रयास किया था, पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक व्यवस्था इसमें बड़ी बाधा है। हालांकि सोशल मीडिया के ये मंच स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक भूमिका भी निभाते देखे जाते रहे हैं। उन पर कड़ाई से बहुत सारे ऐसे लोगों के अधिकार भी बाधित होने का खतरा है, जो स्वस्थ तरीके से अपने विचार रखते और कई विचारणीय मुद्दों की तरफ ध्यान दिलाते हैं। मगर जिस तरह बड़ी संख्या में वहां उपद्रवी, हिंसक, राष्ट्रीय और सामाजिक समरसता को छिन्न-भिन्न करने वाले तत्त्व सक्रिय हो गए हैं, उससे चिंता होना स्वाभाविक है। उन पर अंकुश लगाने एवं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान करना जरूरी है।

 

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